सिडनी : दुनिया की एक तिहाई आबादी अवसाद, दुश्चिंता और तनाव जैसी मानसिक मुश्किलों से जूझ रही है। इन चुनौतियों की वजह से लोगों को व्यक्तिगत और सामाजिक तौर पर बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। इसके लिए लोग लंबे समय तक दवाएं खाते हैं और नियमित रूप से मनोवैज्ञानिक परामर्श लेते हैं लेकिन, सप्ताह में 150 मिनट की कसरत से अवसाद और तनाव से बचा जा सकता है। इस नतीजे तक पहुंचने के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ता बेन सिंह, कैरोल महेर और जैकिंटा ब्रिंसली ने 97 शोध परीक्षणों के नतीजों का अध्ययन किया। यह अध्ययन हाल ही में ब्रिटिश जर्नल ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन (Study) में दावा किया गया है कि खासतौर पर अवसाद के मामले में शारीरिक गतिविधियां, जैसे- चलना, दौड़ना, खेलना या किसी भी तरह की कसरत असल में दवाओं और परामर्श की तुलना में ज्यादा कारगर हैं। अध्ययन के दौरान 97 अलग-अलग शोध, 1,093 परीक्षण और 1,28,119 भागीदारों के नतीजों की तुलना की गई। अध्ययन में दावा किया गया है कि दवाओं और परामर्श की तुलना में कसरत 150 फीसदी ज्यादा लाभकारी साबित हुई है। मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के साथ ही कसरत के दूसरे लाभ भी होते हैं। इससे संपूर्ण स्वास्थ्य लाभ होता है, शरीर का वजन संतुलित होता है, हड्डियां मजबूत होती हैं और संज्ञानात्मक क्षमताओं के लिहाज से भी लाभ होता है।
अध्ययन में सामने आया कि कसरत या शारीरिक गतिविधि का सबसे ज्यादा लाभ प्रसव पश्चात अवसाद (पोस्टमार्टम डिप्रेशन) से जूझ रही महिलाओं में देखा गया। इसके अलावा एचआईवी व किडनी जैसे रोगों की वजह से अवसाद या तनाव का सामना कर रहे लोगों में भी अच्छे नतीजे मिले हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि प्रसव पश्चात अवसाद से जूझ रही महिलाओं के अलग-अलग समूहों की तुलना की गई, जिनमें एक समूह ने सिर्फ दवाएं लीं, एक समूह ने दवाओं के साथ नियमित रूप से मनोवैज्ञानिक परामर्श लिया और तीसरे समूह में महिलाओं ने छह से 12 सप्ताह तक कसरत की थी। इनमें सबसे ज्यादा सुधार उन महिलाओं में दिखा, जिन्होंने कसरत की, जबकि सिर्फ दवा खाने वाली महिलाओं में दवाओं पर निर्भरता के संकेत दिखे।