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शिक्षा के अधिकार का जमकर उड़ाया जा रहा मजाक

अमरेंद्र प्रताप सिंह

कागजी स्कूलों को खोजते भटक रहे अभिभावक

लखनऊ, 26 जुलाई, दस्तक (अमरेंद्र प्रताप सिंह) : शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों को कमजोर व अलाभित वर्ग के बच्चों के लिये पच्चीस प्रतिशत ऐसे बच्चों का प्रवेश लेना अनिवार्य है। ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया में आवेदक के निवास स्थान के आस-पास संबंधित विद्यालयों की सूची दिखायी पड़ती है। जिसमें से आवेदक अपनी पसंद का विद्यालय चुन कर भर देता है। लॉटरी में नाम आने पर प्रवेश प्रक्रिया आरम्भ होती है। आरटीई के द्वारा होने वाले प्रवेश के लिये दो लिस्ट निकल चुकी है परन्तु आवेदकों को विद्यालय ढूढ़े नहीं मिल रहे है। जुलाई खत्म होने को आ रहा है परन्तु अभी तक बच्चों के एडमिशन नहीं हो पा रहे है। जो विद्यालय विभाग की सूची में जिन्दा दिखाये जा रहे है हकीकत में वर्षों पहले बंद हो चुके है। या उनका अस्तित्व ही नहीं है।

ऐसा ही एक उदाहरण राजाजीपुरम स्थित सेंट जोजफ कॉन्वेट स्कूल का है जो कई वर्षों से विभाग की सूची में तो चल रहा है परन्तु राजाजीपुरम् में इसका अस्तित्व ही नहीं है। स्थानीय निवासियों को भी इस स्कूल के बारे में कोई जानकारी नहीं है। ऐसे सैकड़ों परेशान आवेदक इन गुमनाम स्कूलों को ढूंढ रहे है। और बाद में बेसिक शिक्षा विभाग के चक्कर लगा कर परेशान हो रहे है।

बेसिक शिक्षा विभाग की लापरवाही से बना आरटीई का तमाशा

शिक्षा विभाग हर साल सभी विद्यालयों से उनकी वास्तविक स्थिति उनकी कक्षावार छात्र संख्या, अध्यापकों की संख्या व विद्यालय से सम्बंधित सारे विवरण को डीसीएफ के रूप में अनिवार्य रूप से ऑनलाइन व हार्डकापी में जमा करवाता है। प्रत्येक विद्यालय की एक यू-डायस संख्या होती है। जिससे वह विद्यालय पहचाना जाता है। इस प्रकार जो स्कूल बन्द हो चुके है या संचालन में नहीं है अथवा नये खुले स्कूल आदि सबकी पूरी जानकारी विभाग को होती है। परन्तु विभागीय लापरवाही के चलते विद्यालयों की सूची को सालों से अपडेट ही नहीं किया गया है। जिसका खामियाजा गरीब अभिभावक को इधर-उधर दौड़ते हुये भुगतना पड़ रहा है। ऐसे अनेक गुमनाम स्कूलों के बारे में विभागीय कर्मचारियों को भी कुछ मालूम नहीं होता है।

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