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लखनऊ के ‘ललित” की केसरिया किस्म अरुणाचल के सेब का दे रही अहसास

लखनऊ: अरुणाचल के याचुली में लखनऊ में विकसित अमरुद की केसरिया किस्म “ललित” पहुंचकर सेब की तरह रंगीन फल दे रही है. रंग और स्वाद दोनों ही बेमिसाल जैसे अधिक ठण्ड से किन्नौर का सेब रंगीन होने के साथ स्वादिष्ट भी हो जाता  है. डॉ राजन जिन्होंने इस किस्म को विकसित किया, उनका कहना है कि जीवन में इतने स्वादिष्ट एवं आकर्षक ललित के फल देखने को नहीं मिले जबकि ललित किस्म देश में हजारों हेक्टेयर में उगाई जा रही है. पेटी में रखे गए अमरूद के फलों को देखकर सेब का भ्रम हो जाता है. नई किस्मों के अमरूद के एक  लाख पौधे लगाने की महत्वाकांक्षी योजना का प्रयास याचुली के लिखा माज के द्वारा किया गया.

याचुली के लिखा माज ने की नई किस्मों के अमरूद के एक  लाख पौधे लगाने की महत्वाकांक्षी पहल 

यहाँ 5500 फीट ऊँचे स्थान पर उबड़-खाबड़ पथरीली पहाड़ी जमीन में अमरूद की खेती करना आसान नहीं था  जहां पौधा लगाने के लिए गड्ढा खोदना एक महंगा और मुश्किल काम है. गड्ढे खोदने के बाद लखनऊ से इस पहाड़ी दूरस्थ स्थान तक सकरी फिसलन वाली मिटटी की सड़क पर ट्रक से लाखों पौधे पहुंचाना भी दुष्कर है.  इस कार्य के लिए लाखों रुपए का खर्च करके पौधों को पगडंडियों के सहारे पहुंचाया गया. सीआईएसएच ने अमरूद की आधुनिक खेती की ट्रेनिंग के साथ कलमी पौधे भी प्रदान किए. अमरूद के इन किसानों को लखनऊ के संसथान में एक हफ्ते की ट्रेनिंग भी दी गई तथा नियमित रूप से व्हाट्सएप एवं फोन के माध्यम से लखनऊ से मार्गदर्शन किया जाता रहा. इस जंगली क्षेत्र में ट्राइबल युवकों की एक टीम ने अमरुद का सफल उत्पादन किया और याचुली की ठंडी रातों और दिन में खिली हुई धूप ने साथ दिया. इस ठंडी रातों ने ललित के रंग और स्वाद को निखारा. फल में मिठास के साथ खटास का अनुपम मिश्रण एक बार चखने के बाद बार-बार खाने के लिए मजबूर कर देता है.

बेहतरीन स्वाद और लाल रंग का है ललित अमरुद

वैसे तीन साल पहले याचुली में स्थानीय लोग अपने घरों में अमरुद के बीजू  पौधे लगाते तो हैं परंतु फल हरे, अधिक बीज वाले तथा कम स्वादिष्ट होते हैं. इन परिस्थितियों में अमरूद की खेती को व्यवसाय के रूप में सोचना भी सामान्य नहीं था. लिखा माज ने किसान के तौर पर संस्थान से संपर्क किया और निदेशक डॉ राजन ने अरुणाचल के इस हिस्से में सफलतापूर्वक अमरूद की खेती की संभावनाओं और तकनीक प्रदान के लिए भी आश्वासन दिया. अरुणाचल  की परिस्थितियों में किस्मों का परीक्षण करने के लिए ललित, श्वेता, लालिमा इलाहाबाद सफेदा, लखनऊ-49 (सरदार) आदि किस्मों के हजारों पौधे लगाए. इसका मुख्य उद्देश्य यहां की स्थितियों में उपुक्त किस्म का चुनाव एवं स्थानीय मार्केट में मांग के बारे में परीक्षण था.

आसान नहीं थी 5500 फीट ऊँचे स्थान पर उबड़-खाबड़ पथरीली पहाड़ी जमीन में अमरूद की खेती

याचुली की जलवायु का विश्लेषण करके अधिक संख्या में ललित के पौधे लगाने की संस्तुति की. डॉ राजन की परिकल्पना सही निकली क्योंकि ललित अमरूद के पौधों को अन्य किस्मों की तुलना में पांच गुना अधिक संख्या में लगाना सफल हुआ. लखनऊ में ललित किस्म का फल केसरिया-पीले रंग का और गूदा  गुलाबी होता है. याचुली में यह  किस्म गुलाबी गूदे के साथ बाहर से सेब के रंग वाली हो गई. फल सुखद सुगंध के साथ मीठे-हल्के अम्लीय होते हैं. सभी ने टेस्ट की गई किस्मों में से ललित को इस क्षेत्र के लिए सर्वश्रेष्ठ माना. ललित एक दोहरे उपयोग  वाली किस्म है. फल समूचा या काट कर खाने के लिए उपभोग किया जाता है. यह प्रसंस्करण के लिए उपयोग की जाने वाली प्रमुख किस्म है. गुलाबी गूदा विभिन्न उत्पादों जैसे पल्प, आरटीएस, चमकदार जेली और साइडर बनाने के लिए अत्यधिक उपयुक्त है.

क्षेत्र में ललित की वैज्ञानिक खेती अरुणाचल प्रदेश में फल और प्रसंस्कृत-उत्पाद उत्पादन को देगी बढ़ावा 

ललित पोषक तत्वों एवं स्वास्थवर्धक गुणों से भरपूर किस्म है. लाइकोपीन, फाइबर, विटामिन सी से भरपूर और मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कब्ज एवं प्रोस्टेट कैंसर के रोगियों के लिए उत्कृष्ट है. इसको देख कर अरुणाचल  के डिप्टी सीएम ने राज्य में अमरूद की व्यावसायिक उत्पादन की सलाह दी. मुख्य सचिव नरेश कुमार ने श्री लिखा द्वारा यचुली में उत्पादित ललित अमरूद फलों की गुणवत्ता की सराहना की. उन्होंने आगामी वर्षों में प्रदेश में ललित के एक बड़े उत्पादक क्षेत्र को  विकसित करने का सुझाव दिया. डॉ राजन  ने सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले रोपण सामग्री और अमरूद की उच्च स्तरीय उत्पादन तकनीक हेतु किसानों और अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए कार्य योजना बनाई. यह प्रयास ताजे फल की मांग और प्रसंस्करण के लिए फलों की आपूर्ति में सुधार करेगा. प्रदेश में निर्माणाधीन फूड पार्क को प्रति माह कई टन फलों की आवश्यकता होगी और इस प्रकार ललित के तहत क्षेत्र का विस्तार राज्य के बागवानी विकास के लिए एक उपयुक्त कदम है.
याचुली में अमरूद की खेती प्रणाली जैविक खेती की आवश्यकताओं के साथ अच्छी तरह से फिट बैठती है. अमरूद की खेती के लिए सीमित संसाधनों की आवश्यकता होती है. इस  छेत्र में रोग एवं कीटों द्वारा हानि न के बराबर है. जैविक उत्पादित अमरूद के उत्पाद का घरेलू और निर्यात बाजार में उत्तम बाजार होगा.

 

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