विवेक ओझा

सैफ़ुद्दीन किचलू:जलियांवाला बाग के हीरो जिन्हें बाद में सोवियत संघ ने सम्मानित किया

( पुण्यतिथि विशेष)

नई दिल्ली ( विवेक ओझा) : आज सुप्रसिद्ध भारतीय स्वाधीनता सेनानी सैफुद्दीन किचलू की पुण्यतिथि है। किचलू पहले भारतीय थे, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए लेनिन अवार्ड से सम्मानित किया गया था। उनमें नेतृत्व और समन्वय दोनों गुण मौजूद था और इसी आधार पर वे पहले पंजाब प्रांतीय कांग्रेस समिति (पंजाब पीसीसी) के प्रमुख बने और बाद में 1924 में आल इंडिया कांग्रेस कमिटी के महासचिव बने थे। उन्होंने सत्याग्रह (असहयोग) आंदोलन में भाग लिया और अपनी वकालत छोड़कर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और अखिल भारतीय खिलाफत समिति में शामिल हो गए थे।

जब भी जलियांवाला बाग़ और स्वतंत्रता आन्दोलन में उत्तर भारत और खास तौर पर पंजाब के योगदान की बात की जाती है तो एक नाम ज़बान पर ज़रूर आता है- डॉ सैफुद्दीन किचलू। एक स्वतंत्रता सेनानी, पेशे से वकील और हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर डॉ किचलू ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पुरजोर आवाज़ उठाई थी। 15 जनवरी 1888 को एक कश्मीरी नौकरशाहों और व्यापारियों के परिवार में उनका जन्म हुआ। उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे जिन्होंने बाद में स्वेच्छा से इस्लाम धर्म अपना लिया और अमृतसर आ बसे। बचपन से ही होशियार किचलू ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में प्राप्त करने के बाद कैम्ब्रिज की ओर रुख किया जहां से उन्होंने अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की और जर्मनी से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। वापस अमृतसर आकर उन्होंने वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी।

100 साल पहले जब ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट जैसा तानाशाही कानून पास किया, तब उसका विरोध सबसे पहले डॉ. किचलू ने किया था और वह सबसे आगे रहे थे। किचलू को गांधी और डॉ. सत्यपाल के साथ पंजाब में कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए गिरफ्तार किया गया था। तीनों की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए, जलियांवाला बाग में एक सार्वजनिक बैठक हुई थी, जब जनरल रेजिनाल्ड डायर और उसके सैनिकों ने निहत्थे, नागरिक भीड़ पर गोलियां चलाईं। सैकड़ों लोग मारे गए, और सैकड़ों घायल हो गए। यह कृत्य 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद से नागरिक नरसंहार का सबसे बुरा मामला था और पूरे पंजाब में दंगे भड़क उठे।

किचलू दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापकों में से एक थे, वहीं भगत सिंह द्वारा स्थापित नौजवान भारत सभा के पीछे भी उन्होंने मार्गदर्शक भूमिका निभाई थी। सैफुद्दीन किचलू की 9 अक्टूबर 1963 को ह्रदय गति रुकने से मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु पर, जवाहरलाल नेहरू ने कहा था – ‘मैंने एक बहुत ही प्रिय मित्र खो दिया है जो भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में एक बहादुर और दृढ़ कप्तान था।

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