राजिम: राजिम माघी पुन्नी मेला में एक ओर संस्कृति के रंग देखने को मिल रहा है, तो दूसरी ओर साधु-संतो के वेशभूषा श्रद्धालुओ को खासा प्रभावित कर रही है। नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भभूत लगाये हुए लकड़ी के अंगेठे जलाकर बैठे रहते है और भक्तों को भभूत का प्रसाद देकर उनकी मंगल कामना करते है। तब हमें अपनी साधु परम्परा पर नाज होता है।
बुधवार को विधि विधान के साथ पेशवाई निकाली गई, जो लोमष ऋषि आश्रम में समापन हुआ। यहां पाटा पर बैठे सिद्धी विनायक आश्रम के सचिदानंद गिरी महाराज के पगड़ी लोगो के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए थे। बताना जरूरी है कि उनके पगड़ी ने पंचमुखी छोटा रूद्राक्ष जिन्हे रस्सी पर पिरोकर पगड़ी का रूप दिया गया है। पूछने पर बताया कि इसमे एक हजार संख्या से भी अधिक रूद्राक्ष लगा हुआ है जिसमे ऊॅ लिखा हुआ है।
पगड़ी में शानदार कारिगरी का नमुना देखने को मिलता है। उन्होने बड़े रूद्राक्ष के माला भी पहने हुए थे। कहते है कि रूद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर के अश्रुकण से हुई है। इनकी उपस्थिति ही भगवान शंकर के साक्षात मौजूद होना माना गया है। ऐसे ही साधु संतो के अनेक रूप मेला मे देखने को मिल रहा है।