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संघ प्रमुख मोहन भागवत ने टैरिफ पर दिया ‘स्वदेशी’ का मंत्र और बोले- निर्भरता मजबूरी में न बदल जाए

नई दिल्ली: RSS को आज 100 साल पूरे हो चुके हैं। इसके चलते आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी समारोह और विजयादशमी उत्सव नागपुर में बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। इस समारोह में भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे। इनके अलावा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी भाग लिया।

संघ प्रमुख मोहन भागवत बोले-
मोहन भागवत नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय से विजयादशमी के अवसर पर संबोधिक किया। अपने संबोधन में भागवत जी ने स्वीकार किया कि दुनिया आज एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। वहीं उन्होंने चेतावनी दी कि व्यापार के लिए दूसरे देशों पर हमारी निर्भरता कहीं मजबूरी या लाचारी में नहीं बदलनी चाहिए। उन्होंने कहा, “देश आर्थिक रूप से प्रगति कर रहा है, और युवाओं में उद्यमिता का उत्साह दिख रहा है। अमेरिका ने भले ही टैरिफ नीति अपने हित में अपनाई हो, लेकिन कोई भी देश अकेला नहीं रह सकता। विश्व आपसी निर्भरता से चलता है।”

स्वदेशी: मजबूरी को रोकने का रास्ता-
भागवत जी ने यह भी साफ किया कि इस निर्भरता को मजबूरी बनने से रोकने के लिए भारत को स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को अपनाना होगा। उनके अनुसार हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है। उन्होंने यह भी इस बात का ज़िक्र भी किया कि ट्रंप के टैरिफ का प्रभाव हम सब महसूस करते हैं। इसके अलावा उन्होंने पड़ोसी देशों में अस्थिरता को भारत के लिए चिंता का विषय बताया।

समाज में बदलाव लाने पर ज़ोर दिया-
आरएसएस प्रमुख ने भारतीय युवाओं में बढ़ती देशभक्ति पर खुशी व्यक्त की। उन्होंने समाज में बदलाव लाने पर भी ज़ोर दिया, यह मानते हुए कि जैसी सोसायटी होती है, वैसी ही व्यवस्था बनती है। इसलिए समाज को नए आचरण में ढालना ज़रूरी है, जो परिवर्तन की पहली शर्त है। उन्होंने लोगों को संदेश दिया,”आप जैसा देश चाहते हैं, आपको वैसा बनना होगा।”

भागवत ने कहा कि संघ का अनुभव बताता है कि व्यक्तिगत परिवर्तन से सामाजिक परिवर्तन और फिर व्यवस्था में परिवर्तन लाया जा सकता है। उन्होंने संघ की शाखाओं को आदतें बदलने, व्यक्तित्व निर्माण और राष्ट्रभक्ति को बढ़ावा देने वाली एक व्यवस्था बताया। अंत में उन्होंने दोहराया कि संघ को राजनीति में आने का निमंत्रण मिला, लेकिन उसने इसे स्वीकार नहीं किया।

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