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ज्ञात-अज्ञात पितरों का तर्पण का दिन है सर्वपितृ महालया अमावस्या

पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन अपने सामर्थ्य अनुसार दान जरूर करना चाहिए. इससे आपके ज्ञात अज्ञात संकट कट जाएंगे। आश्विन मास के कृष्णपक्ष का सम्बन्ध पितरो से होता है. इस मास की अमावस्या को पितृ विसर्जन अमावस्या कहा जाता है. इस दिन धरती पर आए हुए पितरों को याद करके उनकी विदाई की जाती है. अगर पूरे पितृ पितृ पक्ष में अपने पितरों को याद न किया हो तो केवल अमावस्या को उन्हें याद करके दान करने से और निर्धनों को भोजन कराने से पितरों को शान्ति मिलती है. मान्यता है कि ऐसे पितर इस दिन नदी तट या घर द्वार पर आते हैं। जिनका श्राद्ध नहीं होने पर वे निराश व नाराज भी हो जाते हैं। इस दिन दान करने का फल अमोघ होता है साथ ही इस दिन राहु से सम्बंधित तमाम बाधाओं से मुक्ति पायी जा सकती है. मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इस दिन मृत्यु लोक से आए हुए पितृजन वापस लौट जाते हैं। यदि आप पितृपक्ष में श्राद्ध कर चुके हैं तो भी सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करना जरूरी होता। इस दिन किया गया श्राद्ध पितृदोषों से मुक्ति दिलाता है। साथ ही यदि कोई श्राद्ध तिथि में किसी कारण से श्राद्ध न कर पाया हो या फिर श्राद्ध की तिथि मालूम न हो तो सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है

सुरेश गांधी

पितृ पक्ष में पितरों की शांति और उनकी उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है. पितृ पक्ष का अंतिम दिन महालया अमावस्या कहलाता है. बता दें, हिंदू धर्म में पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने का विधान है. इससे पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस कार्य के लिए हिंदू धर्म ग्रन्थों में पितृ पक्ष को सबसे उत्तम दिन बताया गया है. हिंदू पंचांग के अनुसार पितृपक्ष हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आश्विन मास की अमावस्या तिथि तक होता है. इन 15-16 दिनों में परिजन अपने पितरों के नाम पर उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध कर्म करते हैं. पितृ पक्ष के अंतिम दिन आश्विन अमावस्या होती है. इस अमावस्या को महालया अमावस्या कहते है. इसे सर्व पितृ अमावस्या भी कहा जाता है.

इस साल महालया अमावस्या 25 सितंबर को है. महालया अमावस्या पर लोग पवित्र नदी में स्नान करके अपने पूर्वजों का तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर उनकी विदाई करते हैं. वे लोग जो अपने पितरों की मृत्यु तिथि भूल गए हों. वे इस दिन अपने पितरों के नाम पर श्राद्ध कर्म कर सकते हैं. मान्यता है कि महालया अमावस्या पर श्राद्ध करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होती है और जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं. अमावस्या को श्राद्ध तर्पण करने का एक विशेष कारण ये भी है कि अमावस्या के दिन पितरों के नाम की धूप देने से मानसिक और शारीरिक शांति प्राप्त होती है। इसके साथ ही जातक के घर में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही जातक के सर्वकष्ट दूर हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि पितृ मोक्ष अमावस्या को पितृ अपने प्रियजनों के पास यमलोक से पृथ्वी पर श्राद्ध की भावना लेकर आते हैं और तब उनका पिंडदान नहीं होने पर वो श्राप दे जाते हैं। जिस कारण घर की सुख-शांति भंग हो जाती है और कलह बनी रहती है। इसलिए इस दिन भूल-चूक या अज्ञात श्राद्ध कर्म करना आवश्यक है। हिंदू पंचाग के अनुसार इस साल अश्विविन माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि की शुरुआत 25 सितंबर की सुबह 03 बजकर 11 मिनट से शुरू हो रही है. इसका समापन 26 सितंबर की सुबह 03 बजकर 22 मिनट पर होगी. ऐसे में पितृ विसर्जन 25 सितंबर को मनाया जाएगा.

शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: 25 सितंबर को प्रातः 4ः35 से शुरू होकर 5ः23 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: 25 सितंबर को प्रातः सुबह 11ः48 बजे से दोपहर 12ः37 बजे तक
गोधुली मुहूर्तः 25 सितंबर को सायं 06ः02 बजे से सायं 6ः26 बजे तक
विजय मुहूर्त: 25 सितंबर को दोपहर 2ः13 बजे से 3ः01 बजे तक

लाभ-हानि
श्राद्ध पक्ष का समापन सर्वपितृ, पितृविसर्जनी या महालया अमावस्या के साथ रविवार को होगा। इस दिन ज्ञात व अज्ञात आत्माओं की शांति के लिए तर्पण व श्राद्ध का किया जाता है। जिन पितरों की तिथि ज्ञात नहीं हो उनका श्राद्ध व तर्पण इस अमावस्या पर किया जाता हैै। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार अमावस्या पर गजछाया का विशेष योग बन रहा है। जिसमें पितृ कार्य विशेष फलदाई होगा। श्राद्ध एक अनुष्ठान व पितरों के प्रति सम्मान का प्रतीक ही नहीं है। बल्कि, मृत्यु के बाद भी जीव की विभिन्न लोकों व योनियों की यात्रा में सहयोगी प्रक्रिया है। शास्त्रों के अनुसार जीवात्मा मनुष्य के रूप में उत्पत्ति व मृत्यु तक ही सीमित नहीं है। इससे पहले भी वह यात्रा करता हुआ आता है और मृत्यु के बाद भी उसकी यात्रा जारी रहती है। ऐसे में श्राद्ध कर्म मनुष्य जन्म से इतर भी उस जीव की यात्रा में उसके भोजन- पानी व अन्य सुविधाओं की प्रक्रिया है। जिसे पूरा करना हर व्यक्ति का धर्म है। इसी धर्म को अमावस्या के अतिरिक्त श्राद्ध पक्ष में निभाने का विशेष विधान है। जिसमें भी सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व है। श्राद्ध पक्ष में पितरों को विदा करने की यह अंतिम तिथि होती है। शास्त्रों के अनुसार 15 दिन तक पितृ घर में विराजते हैं। जिनकी सेवा कर हम इस दिन उन्हें विदा करते हैं। इसीलिए इसे ’पितृविसर्जनी अमावस्या’, ’महालय समापन’ या ’महालय विसर्जन’ भी कहते हैं।

पंच बलि कर्म करने का दिन
महालय विसर्जन श्राद्ध पंचबलि अर्थात गोबलि, श्वानबलि, काकबलि और देवादिबलि कर्म करने का दिन है। इस दिन और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्म विपाक आदि के द्वारा पापों का प्रायश्चित भी किया जाता है। महालय अमावस्या के दिन पितरों की शांति, प्रसन्नता व आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गीता के दूसरे और सातवें अध्याय का पाठ करने का विशेष महत्व माना गया है। एक पात्र में दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ मिला पीपल की जड़ सींचने का भी विधान है। इसी दिन पितृ विसर्जन के निमित्त रात्रि में मुख्य द्वार पर तेल का दीपक जलाकर पितृ विसर्जन किया जाता है। सभी सनातनियों को पितृ विसर्जन जरूर करना चाहिए। इसके साथ श्राद्ध की समाप्ति हो जाएगी। इसी दिन से दशहरा महोत्सव की शुरुआत भी होती है।

संकल्प के साथ करें तर्पण
इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य को जल अर्पित करें। पवित्र नदियों में स्नान करें। घर में बने भोजन में से सर्वप्रथम गाय के लिए, फिर श्वान के लिए, कौए के लिए, चीटियों के लिए भोजन का अंश प्रदान करें। श्राद्ध में चना, मसूर, उड़द, सत्तू, मूली, काला जीरा, खीरा, बासी या अपवित्र फल या अन्न का उपयोग नहीं करना चाहिए। बिना संकल्प के श्राद्ध पूरा नहीं माना जाता, इसलिए अंतिम दिन हाथ में अक्षत, चंदन, फूल और तिल लेकर पितरों का तर्पण करें।

कैसे करें श्राद्ध
हमारे पूर्वजों का स्मरण कर उनके प्रति आदर, श्रद्धा रखते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए स्नान, दान, तर्पण आदि हर कोई करता है। इसके लिए जिस दिन आपके घर श्राद्ध तिथि हो उस दिन सूर्योदय से लेकर 12 बजकर 24 मिनट की अवधि के मध्य ही श्राद्ध करें। प्रयास करें कि इसके पहले ही ब्राह्मण से तर्पण आदि करालें। श्राद्ध करते समय दूध, गंगाजल, मधु, वस्त्र, कुश, अभिजित मुहूर्त और तिल का विशेष ध्यान रखें। तुलसीदल से पिंडदान करने से पितर पूर्ण तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं। इस दिन आमंत्रित किए गए ब्राह्मण के पैर धोना चाहिए, ध्यान रहे इस कार्य के समय पत्नी को दाहिनी तरफ होना चाहिए। वहीं श्राद्ध तिथि के दिन तेल लगाने, दूसरे का अन्न खाने, और स्त्रीप्रसंग से परहेज करें। श्राद्ध में राजमा, मसूर, अरहर, गाजर, कुम्हड़ा, गोल लौकी, बैगन, शलजम, हींग, प्याज-लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, कैंथ, महुआ और चना ये सब वस्तुएं श्राद्ध में वर्जित मानी गई हैं। गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड़, चांदी तथा नमक इन्हें महादान कहा गया है। भगवान विष्णु के पसीने से तिल और रोम से कुश कि उत्पत्ति हुई है अतः इनका प्रयोग श्राद्ध कर्म में अति आवश्यक है। ब्राहमण भोजन से पहले पंचबलि गाय, कुत्ते, कौए, देवतादि और चींटी के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालें। दक्षिणाभिमुख होकर कुश, तिल और जल लेकर पितृतीर्थ से संकल्प करें और एक या तीन ब्राह्मण को भोजन कराएं। भोजन के उपरांत यथा शक्ति दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करें तथा निमंत्रित ब्राह्मण की चार बार प्रदक्षिणा कर आशीर्वाद लें।

करें ये उपाय
पितृ विसर्जन यानी सर्वपितृ अमावस्या के दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य को लाल पुष्प और लाल चंदन मिलाकर जल चढ़ाएं. साथ ही आंटे की गोलियां तालाब या नदी के किनार जाकर मछलियों को खाने के लिए दें. मान्यता है कि ऐसा करने से पितृ देव प्रसन्न होकर हमे आशीर्वाद देते हैं और हमारे जीवन से सभी परेशानियां दूर हो जाती है. पितृ विसर्जन के दिन पितृदेव से क्षमा याचना मांगे. इसके साथ ही काली चींटियों को शक्कर मिला हुआ आटा खिलाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से हमारे सभी पापों का नाश होता है और पितरों की कृपा से हमारी सभी मनोकामना पूरी होती है. सर्वपितृ अमावस्या के दिन ब्राम्हणों को घर बुलाकर इज्जत पूर्वक भोजन कराना बहुत पुण्यदायी होता है. ध्यान रहे की ब्राम्हण गण को भोजन शुद्धता के साथ कराएं. भोजन के पश्चात उन्हें सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा दें. ऐसी मान्यता है कि इस दिन ब्राम्हणों को कराया गया भोजन सीधे पितरों को मिलता है.

श्राद्ध विधि एवं मंत्र
नदी या सरोवर के तट पर शुद्ध मन से संकल्प पूर्वक पितरों को काला तिल के साथ तिलांजलि देनी चाहिए, जिसका मन्त्र इस प्रकार है। “ॐ तत अद्य अमुक गोत्रः मम पिता अमुक नाम वसु स्वरूप तृप्यताम इदम सतिलम जलम तस्मै नमः।।”
इसी प्रकार क्रम से कहते हुए अपने पिता, पितामह (बाबा), प्रापितामह (परबाबा) को तीन-तीन अंजली जल काले तिल के साथ देकर तर्पण करना चाहिए। तत्पश्चात् पितरों को प्रणाम कर प्रार्थना करें।

पितृभ्यःस्वधायिभ्यःस्वधा नमः।
पितामहेभ्यःस्वधायिभ्यःस्वधा नमः।
प्रपितामहेभ्यःस्वधायिभ्यःस्वधा नमः।
सर्व पितृभ्यःतृप्यन्त पीतरः पितरःशुन्ध्व्म।
स्वधास्थ तर्पयत में सर्व पितृन।
ॐ तृप्यध्वम। तृप्यध्वम।। तृप्यध्वम।।
पितरों की तृप्ति हेतु जल देने का मन्त्र
नरकेशु समस्तेषु यातनासु च ये स्थिताः।
तेषामप्यायनायैतत दीयते सतिलम जलम मया।
तृप्यन्तु पितरःसर्वे मात्रिमाया महादयः।
तेषाम हि दत्तमक्षयम इदम अस्तु तिलोदकम।।
ॐवासुदेव स्वरूप सर्व पितर देवो नमः।।

अन्त में हाथ में जल लेकर श्राद्धकर्म को विष्णु स्वरूप पितरों को इस प्रकार समर्पित करें- “यथाशक्ति श्राद्ध-कर्म कृतेंन पितृस्वरूपी जनार्दन वासुदेव प्रियताम नमम।।” तीन बार ॐ विष्णवे नमः। विष्णवे नमः।। विष्णवे नमः।।

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