साहित्य
सौंदर्य
कजरा है नैनों में जैसे, मन मेरा ही समाया है।
खुली रेशमी जुल्फों में, काले बदरा का साया है।
शायद आपके होठों से, ये दिल मेरा मुस्काया है।
देख आपका मुखड़ा लगता, चांद निकल कर आया है।
पिछले कुछ ही सालों से, करीब में मेरे रहते हो।
सोचा न था तुम ये कहो कि नसीब में मेरे रहते हो।
मोहब्बत की वो तलाश हमें, इस मोड़ पर ले आई थी।
खामोशी भी थक गई थी और रूह करीब ले आई थी।
कुछ भी कहने की हमको, शायद नहीं ज़रूरत थी।
एक दूजे पर मरते हैं, ये कहती अपनी सूरत थी।
खाली खाली दोनों थे फिर, आखिर मिलना कहीं हुआ।
जो होना था हो ही गया और जो भी हुआ सब सही हुआ।
कवि – उमेश पंसारी
युवा समाजसेवी, नेतृत्वकर्ता और कॉमनवेल्थ स्वर्ण लेखन पुरस्कार विजेता