वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार की शक्ति को मानने से इन्कार करना पूरी तरह अतार्किक और अनुच्छेद 239 (एए) की गलत व्याख्या है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में सुशासन के लिए दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल के बीच सत्ता संतुलन को जरूरी बताया है। जस्टिस एके सीकरी और आरके अग्रवाल की पीठ ने कहा कि सभी देशों में राजधानी वाले शहर की स्थिति अलग है। 1992 में जब दिल्ली में विधानसभा का गठन हुआ, तबसे अब तक ऐसी स्थिति पहले नहीं आई थी।
दिल्ली सरकार की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम ने प्रशासन पर नियंत्रण के मामले में केंद्र सरकार के रवैये को गलत बताया। सुब्रह्मण्यम ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार की शक्ति को मानने से इन्कार करना पूरी तरह अतार्किक और अनुच्छेद 239 (एए) की गलत व्याख्या है।
दिल्ली सरकार का गठन संविधान के तहत हुआ है, जिसकी कुछ जवाबदेही भी है। इसलिए राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासन पर केंद्र का स्वाभाविक नियंत्रण नहीं माना जा सकता।
सुब्रह्मण्यम ने कहा कि दिल्ली सरकार के साथ उप राज्यपाल के अधीनस्थ जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा दायर कई याचिकाओं पर दिल्ली हाई कोर्ट ने उप राज्यपाल की प्रधानता को बरकरार रखा था।
दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। दिल्ली सरकार का कहना है कि पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि संबंधी मामलों को छोड़कर उसे उप राज्यपाल को परामर्श देने का अधिकार है।