SC ने पूछा, वेदों-उपनिषदों में स्त्री-पुरुषों में भेदभाव नहीं, तो सबरीमाला मंदिर में क्यों?
दस्तक टाइम्स एजेंसी/
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करेगा कि क्या 10 साल से 50 साल के बीच की उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में पूरी तरह बैन लगाया जा सकता है जबकि ऐसा कोई महिला और पुरुष के बीच भेदभाव वेद, उपनिषद या किसी शास्त्र में नहीं है।
मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मंदिर बोर्ड और सरकार से पूछा कि
– सबरीमाला मे महिलाओं का प्रवेश कब बंद हुआ? इसके पीछे क्या इतिहास है?
– कोर्ट इस मामले मे ये देखना चाहता है कि समानता के अधिकार और धार्मिक स्वंत्रतंता के मामले में से रोक कहां तक ठीक है।
– कोर्ट दोनों अधिकारों के बीच संतुलन बनाना चाहता है।
– मंदिर एक धार्मिक घटना है और इसे तय पैमाने में होना चाहिए।
गीता भी कहती है, भगवान सबमें हैं
धार्मिक ग्रंथ गीता के अनुसार भगवान कृष्ण हर जगह हैं और हर किसी में वास करते हैं। भगवान ने महिला और पुरुषों में किसी तरह का भेदभाव नहीं किया है। भगवद गीता ग्रंथ में भी इसका जिक्र है। ऐसे में भगवान के मंदिर में किसी महिला के प्रवेश पर कैसे पाबंदी लगाई जा सकती है। क्या हिंदू धर्म में ऐसा कोई नियम है कि जो यह कहता हो कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है।
भावनात्मक दलील नहीं चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में केरल सरकार से कहा कि इस मामले को लेकर नियम व कानून की बात करें और कोई भावनात्मक दलील न दें। अगर हिंदू धर्म में इस बात का उल्लेख है कि किसी को भगवान के घर अर्थात मंदिर में प्रवेश से रोका जा सकता है तो वह उस कानून व ग्रंथ की जानकारी अदालत को दे। यहां पर तर्क सुना जाएगा, भावनात्मक अपील नहीं। यह मंदिर की व्यवस्था तो कही जा सकती है, मगर कानून नहीं। कानून के अनुसार महिला और पुरुष समान हैं और दोनों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति है।
मंदिर बोर्ड की दलील
हालांकि मंदिर बोर्ड ने कहा कि…
– ये प्रथा एक हजार साल से चल रही है। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले को क्यों उठा रहा है।
– सिर्फ सबरीमाला मंदिर ही नहीं बल्कि पूरे सबरीमाला पर्वत पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।
सुप्रीम कोर्ट ने जवाब के लिए 6 हफ्ते का वक्त दिया है और वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन और के रामामूर्ति को कोर्ट का सहायक नियुक्त किया है।
केरल सरकार का यू टर्न
पिछली सुनवाई पर केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दायर करते हुए कहा था कि सबरीमाला मंदिर में कई दशकों से महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है। यह व्यवस्था लोगों की धार्मिक आस्था के अनुसार पहले से ही तय है। इसलिए सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं दी जा सकती। सरकार ने कहा था कि कई सदियों पुरानी परंपरा का बचाव करना हमारा कर्तव्य है। राज्य सरकार ने अपने हलफ़नामे में ये भी कहा था कि ये महज़ पुरानी परंपरा की बात नहीं है। हमारा संविधान भी मंदिरों को ये अधिकार देता है कि वो मंदिर में किसे प्रवेश देता है किसे नहीं। साथ ही संविधान हमें धार्मिक स्वतंत्रता का हक़ भी देता है। केरल सरकार ने अपनी पूर्व की बात से यू टर्न लेते हुए 2007 में तत्कालीन केरल सरकार के हलफ़नामे को वापस ले लिया था और नया हलफ़नामा दायर किया था। पूर्व में वर्ष 2007 में सीपीआई सरकार ने अपने हलफ़नामे में कहा था कि कोर्ट इस मामले में खुद ही निर्णय ले।
क्या है मामला
सुप्रीम कोर्ट केरल के प्रख्यात सबरीमाला मंदिर में प्रवेश संबंधी यंग लायर्स एसोसिएशन की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट सभी आयु की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश का आदेश पारित करे। अभी तक मासिक धर्म वाली उम्र की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक है। इस आयु वर्ग से पूर्व की लड़कियों और उसके बाद की प्रौढ़ महिलाओं और वृद्धाओं के प्रवेश पर सबरीमाला मंदिर में कोई रोक नहीं है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 अप्रैल को होगी।