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झुलसा रोग से बचाव को आलू की सिंचाई के साथ ही दवा का करें छिड़काव

झुलसा रोग से बचाव को आलू की सिंचाई के साथ ही दवा का करें छिड़काव

लखनऊ : बदल रहा मौसम पछेती आलू की फसल को खराब कर सकता है। इसमें झुलसा रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। इसके साथ ही कीटों का भी प्रभाव बढ़ने की संभावना रहती है। इससे आलू की खेती चौपट हो सकती है।

इसके लिए किसानों को खेत की नमी बनाये रखने पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उसकी नमी बने रहने पर रोग की संभावना कम हो जाती है। इसके साथ ही फंफूद नाशक दवा का छिड़काव करना चाहिए।

क्या कहते है डाइरेक्टर एसबी शर्मा

इस संबंध में उद्यान विभाग के डाइरेक्टर एसबी शर्मा ने बताया कि जिन किसानों ने फफूंद नाशक दवा का पत्तों पर छिड़काव अभी तक नहीं किया है। उन्हें तत्काल मैन्कोजेब, प्रोपीनेब, क्लोरोथेलोंनील युक्त फफूंदनाशक दवा का रोग सुग्राही किस्मों पर .2- 2.5 प्रतिशत की दर से अर्थात .2 से 2.5 किग्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव तुरंत करना चाहिए।

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फफूंदनाशक को दस दिन के अंतराल पर दोहराये

इसके साथ ही यदि बीमारी प्रकट हो चुकी है तो उनमें किसी भी फफूंद नाशक-साईमोक्सेनिल, व मैन्कोजेब का तीन किग्रा प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी की दर से अथवा डाईमेथोमार्फ के साथ एक किग्रा में मेन्कोजेब दो किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। फफूंदनाशक को दस दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है, लेकिन बीमारी की तीव्रता के आधार पर ध्यान रखना होगा कि एक ही फफूंदनाशक का बार-बार छिड़काव न करें।

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