मुकुलारण्यम महाविद्यालय में ‘संस्कृति संवर्धन में नई शिक्षा नीति की भूमिका ‘ विषयक संगोष्ठी संपन्न
वाराणसी: मुकुलारण्यम् महाविद्यालय, सिगरा, वाराणसी के संस्कृत विभाग द्वारा बसंत पंचमी के पावन अवसर पर “संस्कृति संवर्धन में नई शिक्षा नीति की भूमिका” शीर्षक विषयक संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी का आरंभ डॉ. ब्रजेश पांडेय जी द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण से हुआ तथा महाविद्यालय की छात्राओं पूजा, हर्षिता, स्वाति एवं स्निग्धा द्वारा मां सरस्वती की सुमधुर वंदना की गई।
तत्पश्चात मुख्य वक्ता प्रो.उपेंद्र त्रिपाठी का स्वागत करते हुए समाजशास्त्र विभाग के सहायक आचार्य डॉ.सुनील कुमार मिश्र ने कहा कि प्रो.उपेन्द्र त्रिपाठी जैसे श्रेष्ठ वक्ता व गुणी शोधकर्ता पूरे भारतवर्ष में विरले ही होंगे। उपेन्द्र जी ने अपना सारा जीवन वेदों के अध्ययन में समर्पित कर दिया। उत्तर प्रदेश संस्थान द्वारा प्रो. उपेंद्र जी को वेदों के गहन अध्ययन और नवीन स्थापनाओं के लिए सम्मानित किया गया है। अपनी शैक्षणिक यात्रा के साथ -साथ प्रो. उपेंद्र का सामाजिक अवदान भी बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है। प्रो. उपेन्द्र जी का सहज व्यक्तित्व व उनका वेद-वेदाङ्ग संबंधी ज्ञान संपूर्ण भारतीय जनमानस के लिए महत्वपूर्ण और प्रेरक है।निश्चित रूप से आज की संगोष्ठी में उपस्थित अतिथि विद्वानों और विद्यार्थियों के लिए यह व्याख्यान अत्यंत समीचीन व ज्ञानवर्धक सिद्ध होगा। हम कालांतर में इस व्याख्यान को शोध पत्र के रूप में भी प्रकाशित करने का कार्य करेंगे।
संगोष्ठी के विद्वान वक्ता प्रो.उपेन्द्र जी ने नई शिक्षा नीति में संस्कृति संवर्धन विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 1947 से ही संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन की पृष्ठभूमि रख दी गई थी और कोठारी कमीशन द्वारा इस क्षेत्र में विशेष काम किया गया। संस्कृति का मूल केंद्र अपना घर होता है और हमारे आचरण व चिंतन का विकास मां के द्वारा आरंभ होता है। मातृ देवो भव:, पितृ देवो भव: व आचार्य देवो भव: की शिक्षा गर्भावस्था से ही प्रारंभ हो जाती है तथा संस्कारों का महत्व गर्भाधान से लेकर अंत तक चलता रहता है। 16 संस्कारों की चर्चा हमारे ग्रंथों में की गई है।नई शिक्षा नीति में चरित्र निर्माण, नैतिकता के साथ ही रोजगार को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है । प्रो. उपेन्द्र जी ने कहा कि इससे पूर्व भी शिक्षा-नीति संस्कृति संवर्धन के लिए प्रयासरत थी लेकिन वर्तमान शिक्षा नीति प्राथमिक स्तर से ही सांस्कृतिक चेतना को लेकर निर्मित की गई है और आत्म गौरव का भाव स्थापित करने व पारंपरिक प्राचीन मूल्यों को संरक्षित करने की दिशा में सजग व सचेत है जो प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च शिक्षण संस्थाओं में प्रयुक्त होकर निश्चित ही मानवीय मूल्यों को अभिसिंचित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेगी।
मुकुलारण्यम् महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.आशीष पाण्डेय जी ने मुख्य वक्ता प्रो. उपेन्द्र जी को संस्कृति व नई शिक्षा नीति पर गंभीर वक्तव्य के लिए आभार दिया व साथ ही नई शिक्षा नीति व संस्कृति के अन्योन्याश्रित संबंध पर संक्षिप्त किंतु सारगर्भित टिप्पणी की। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में महाविद्यालय के निदेशक प्रो. शंभू उपाध्याय जी ने कहा कि 50-60 वर्षों में जो सांस्कृतिक ह्रास हम समाज में देख रहे हैं उसका पुनरुत्थान करने का कार्य नई शिक्षा नीति का अनुपालन कर किया जा सकता है।
कार्यक्रम का सफल संचालन संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य व इस संगोष्ठी के समन्वयक डॉ.ब्रजेश पाण्डेय द्वारा किया गया। संगोष्ठी में महाविद्यालय के प्रबंधक अजय तिवारी, प्राध्यापकों में डॉ. सुनील मिश्र, डॉ. सुमन सिंह, डॉ. वर्षा श्रीवास्तव, अनुराग गुप्ता, दुर्गेश मणि तिवारी, मनीष पांडेय, अश्विनी पांडेय, ज्योति श्रीवास्तव, एकता त्रिपाठी, जया तिवारी, समर्थ श्रीवास्तव सहित महाविद्यालय के सैकड़ों छात्र व अन्य महाविद्यालयों के अध्यापकगण व विद्यार्थी उपस्थित रहे।