अमेरिका में शर्मसार लोकतंत्र
सुरेश हिन्दुस्थानी : दुनिया में लोकतांत्रिक देशों की सूची में सबसे ऊपर माने जाने वाले अमेरिका में लोकतंत्र पर कुठाराघात हुआ है। हालांकि जहां तक लोकतंत्र की बात है तो सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि लोकतंत्र में जनमत का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसमें यह भी महत्व का विषय है कि जनता अपने वोट के आधार पर यह तय करती है कि उसे क्या पसंद है और क्या नापसंद।
इसी के आधार पर सत्ता का रास्ता तैयार होता है। लोकतांत्रिक पद्धति में जहां एक पक्ष को जय मिलती है, तो दूसरे को पराजय का सामना करना पड़ता है। पराजय निश्चित तौर पर एक सबक होती है, जो स्व का अवलोकन करने की ओर प्रेरित करती है। लेकिन कुछ दल ऐसे भी हैं जो आत्म मंथन करने की बजाय यह सिद्ध करने की कुचेष्टा करते हैं कि हम ही सही हैं, बाकी सब गलत। इस प्रकार की सोच रखना कहीं न कहीं लोकतांत्रिक मूल्यों की राह में घातक ही होती हैं।
अमेरिका में अभी मात्र दो माह पूर्व हुए राष्ट्रपति के चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी के निवर्तमान होने की ओर बढ़ रहे राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प को हार का सामना करना पड़ा, वहीं डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार बाइडेन को जीत हासिल हुई है। परिणामों से स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है कि बाइडेन को अमेरिका की जनता ने राष्ट्रपति बनाने के लिए समर्थन दिया है। हालांकि मतदान के तुरंत बाद ही यह लगभग तय हो गया था कि बाइडेन ही अमेरिका के राष्ट्रपति होंगे। लेकिन विसंगति यह है कि डोनाल्ड ट्रंप अपनी पराजय को पचा नहीं पा रहे। इसीलिए उन्होंने निरंकुशता की मर्यादा को भी लांघ दिया है। डोनाल्ड ट्रंप को अपनी पराजय के बारे में यह चिंतन करना चाहिए कि आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसके चलते हार का सामना करना पड़ा। ट्रम्प की मानसिकता से यह भी पता चलता है कि वह अभी इस पद पर और बने रहना चाहते थे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सवाल यह आता है कि क्या ट्रम्प राष्ट्रपति पद को हथियाना चाहते है? अगर ऐसा है तो फिर लोकतंत्र कहां रहा। उन्हें चाहिए कि जहां कमी रह गई, उसे सुधारें और अगली बार की तैयारी करें।
आज अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनके समर्थकों की हरकतों से लोकतंत्र शर्मसार है। क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप लोकतंत्र को अपने हिसाब से चलाना चाहते है, जो लोकतांत्रिक पद्धति में प्रथम दृष्टया स्वीकार करने योग्य नहीं कहा जा सकता है। लोकतंत्र की खूबसूरती भी यही है कि जो जीतकर आए, उसको लोकतांत्रिक पद्धति से नियमों के अंतर्गत सत्ता सौंप देना चाहिए। अगर ऐसा कर पाने का सामर्थ्य नहीं है तो फिर अपने आपको लोकतांत्रिक कहना भी बंद कर देना चाहिए। लोकतंत्र में जिस प्रकार जीत का स्वाद अच्छा लगता है, उसी प्रकार हार में भी प्रसन्न होना चाहिए। सत्ता का हस्तांतरण करना भी एक स्वस्थ लोकतंत्र का हिस्सा है।
जहां तक ट्रम्प की हार का सवाल है तो उसके बारे में यही कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति रहते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने कई महत्वपूर्ण विषयों पर संजीदगी से काम नहीं किया। चीनी वायरस कोरोना के चलते अमेरिका ने जिन हालातों का सामना किया,उसके लिए भी ट्रम्प को ही जिम्मेदार माना जा रहा है। और वे कुछ हद तक जिम्मेदार हैं भी। क्योंकि जिस प्रकार हमारे देश में प्रधानमंत्री देश का मुखिया होता है, उसी प्रकार अमेरिका में राष्ट्रपति को ही मुखिया माना जाता है। इसलिए मुखिया ही जिम्मेदार होता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका आर्थिक दृष्टि से भी बहुत पीछे होता जा रहा है। हम जानते ही है दक्षिण कोरिया जैसे देश के तानाशाह शासक ने अमेरिका जैसी वैशिव महाशक्ति को झुकने को विवश कर दिया। यह भी डोनाल्ड ट्रंप को कमजोर करने के कारण हो सकते हैं।
अमेरिकी संसद में जिस प्रकार से उत्पात मचाया गया, वह केवल इसीलिए था कि नए राष्ट्रपति बाइडेन की राह में रोड़े स्थापित किए जाएं, क्योंकि संसद के सत्र में बाइडेन की जीत की आधिकारिक घोषणा की जानी थी। हम जानते ही हैं कि नवंबर माह के प्रथम सप्ताह में आए राष्ट्रपति पद के लिए आए चुनाव परिणामों में जहां बाइडेन को 306 मत प्राप्त हुए, वहीं डोनाल्ड ट्रंप को 232 वोट मिले। इसके बाद सब कुछ साफ था, लेकिन ट्रम्प ने आरोप लगा दिया कि चुनाव में धांधली हुई है। इसके ट्रम्प के समर्थकों ने कई राज्यों में मामले भी दर्ज कराए, लेकिन सच तो सच ही रहता है। आखिरकार वे सभी मामले प्रथम दृष्टया खारिज हो गए। इसी प्रकार दो याचिकाएं वहां का सर्वोच्च न्यायालय भी खारिज कर चुका है। इन सबके बाद भी ट्रम्प क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि वे हार चुके हैं।
अमेरिकी संसद में लोकतांत्रिक व्यवस्था को तमाचा मारते हुए दुर्दशा का जो दुखद अध्याय लिखा है, वह विश्व के अनेक ऐसे देशों को हंसने का अवसर प्रदान कर रहा है जो लोकतंत्र के विरोधी हैं। ऐसे में दुनिया के तमाम देशों को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाला अमेरिका लोकतंत्र की बात उठा पाएगा। कहा जा रहा है कि अमेरिकी संसद में डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थकों ने लोकतंत्र के मुख पर कालिख पोतने का ही काम किया है। इस कृत्य की विश्व भर में निंदा हो रही है। खुद ट्रम्प की पार्टी के कुछ सांसद इस अलोकतांत्रिक कृत्य की निंदा कर रहे हैं। कुल मिलाकर अमेरिकी संसद में जो कुछ घटित हुआ वह कम से कम लोकतांत्रिक देशों में उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। अमेरिका में भी नहीं।
(लेखक सामयिक विषयों के टिप्पणीकार हैं)