मुंबई : इंडिया गठबंधन की मुंबई में होने वाली बैठक से पहले शरद पवार के कदम पर विपक्ष के सभी घटक दलों की नजर है। इस बीच एनसीपी सुप्रीमो ने अपने भतीजे अजित पवार के साथ किसी भी मतभेद की खारिज कर दिया है। ”इसमें कोई मतभेद नहीं है कि अजित पवार हमारे नेता हैं। एनसीपी में कोई विभाजन नहीं है। किसी पार्टी में फूट कैसे पड़ती है? ऐसा तब होता है जब राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा समूह पार्टी से अलग हो जाता है, लेकिन आज एनसीपी में ऐसी कोई स्थिति नहीं है। हां, कुछ नेताओं ने अलग रुख अपनाया लेकिन इसे फूट नहीं कहा जा सकता। वे लोकतंत्र में ऐसा कर सकते हैं।”
आपको बता दें कि अजित पवार बागी तेवर अपनाते हुए कुछ विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गए। इसके बाद शरद पवार के कदम पर हर किसी की निगाहें टिकी हुई हैं। उन्होंने अबी तक अपने भतीजे के खिलाफ कोई भी ठोस कानूनी कदम नहीं उठाया है। महाराष्ट्र में जिस दिन अजित पवार सरकार में बतौर उपमुख्यमंत्री शामिल हुए उसी दिन से शरद पवार को लेकर विपक्षी दल संशय की स्थिति में हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इस पूरे सियासी प्रकरण में उनकी भी सहमति थी। इस सियासी घटना के बाद कई बार वह अपने भतीजे से मिल चुके हैं। हाल ही में एक कारोबारी के घर पर दोनों नेताओं की गुफ्त बैठक हुई थी। इसके बाद कांग्रेस ने शरद पवार से स्थिति साफ करने के लिए कहा था। हालांकि, शरद पवार लगातार केंद्र की भाजपा सरकार पर हमलावर हैं।महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ दिनों पहले इस खबर ने सरगर्मी बढ़ा थी कि शरद पवार या उनकी बेटी को केंद्रीय कैबिने में शामिल किया जा सकता है। हालांकि सुप्रिया सुले ने ऐसे किसी भी ऑफर की बात को खारिज कर दिया था।
शरद पवार ने कहा कि प्याज के निर्यात पर लगाया गया 40 प्रतिशत शुल्क हटाया जाना चाहिए और उन्होंने यह दावा भी किया कि केंद्र सरकार चीनी के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा सकती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने पुणे जिले की पुरंदर तहसील में बृहस्पतिवार को एक कार्यक्रम में कहा कि प्याज के उचित मूल्य सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा, ”पिछले कई दिनों से नासिक क्षेत्र के किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं…वे अपनी प्याज की उपज के लिए उचित मूल्य की मांग कर रहे हैं। देश से प्याज निर्यात किया जाता है, लेकिन सरकार ने निर्यात पर 40 फीसदी शुल्क लगा दिया है। लागत मूल्य देखते हुए प्याज उत्पादकों को उचित मूल्य देना सरकार की जिम्मेदारी है और इसकी मांग करना किसानों का अधिकार है, लेकिन सरकार ने अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है।”