30 अक्टूबर को है शरद पूर्णिमा, आसमान से होती है अमृत वर्षा
ज्योतिष : प्रत्येक वर्ष शरद पूर्णिमा आश्विन मास की पूर्णिमा को होती हैं। इस बार शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर, शुक्रवार को पड़ रही है। वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। शरद पूर्णिमा को कौमुदी व्रत, कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से जानते हैं। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचा था। कहते हैं शरद पूर्णिमा की रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का विधान है।
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एक साहुकार के दो पुत्रियां थीं। दोनों पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। हुआ यह कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा को पूरे विधि-विधान से पूजा करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है। उसने शरद पूर्णिमा का व्रत किया। तब छोटी पुत्री के यहां संतान पैदा हुई, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गई। उसने अपनी संतान के लिटाकर ऊपर से कपड़ा ढक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और उसी जगह पर बैठने को कहा, जहां उसने अपनी संतान को उसने कपड़े से ढका था। बड़ी बहन जब बैठने लगी, तो उसका घाघरा बच्चे का छू गया और घाघरा छूते ही बच्चा रोने लगा। बड़ी बहन बोली- ‘तुम मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।’ तब छोटी बहन बोली, ‘यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। इस घटना के बाद से वह हर वर्ष शरद पूर्णिमा का पूरा व्रत करने लगी।’ इस दिन स्नान कर उपवास रखे।
तांबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढंकी हुई लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित कर उनकी पूजा करें, सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चांदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलाएं। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करें, उसे चन्द्रमा की चांदनी में रखें। जब एक प्रहर यानी 3 घंटे बीत जाएं, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें।
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