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जानें कब है षटतिला एकादशी, किस तरह से करें इस दिन पूजा

जानें कब है षटतिला एकादशी, किस तरह से करें इस दिन पूजा

माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन काले तिलों के दान का विशेष महत्त्व है। शरीर पर तिल के तेल की मालिश, जल में तिल डालकर उससे स्नान, तिल जलपान तथा तिल पकवान की इस दिन विशेष महत्ता है। इस दिन तिलों का हवन करके रात्रि जागरण किया जाता है। ‘पंचामृत’ में तिल मिलाकर भगवान को स्नान कराने से बड़ा मिलता है। षटतिला एकादशी पर तिल मिश्रित पदार्थ स्वयं भी खाएं तथा ब्राह्मण को भी खिलाना चाहिए।

एकादशी व्रत कब से कब तक

  • एकादशी तिथि प्रारंभ 7 फरवरी प्रात: 6.26 बजे से
  • एकदशी तिथि पूर्ण 8 फरवरी प्रात: 4.47 बजे तक
  • पारणा स्मार्त के लिए 8 फरवरी दोपहर 1.49 से 4.04 बजे तक
  • पारणा वैष्णव के लिए 9 फरवरी प्रात: 7.02 से 9.18 बजे तक

महत्त्व

‘षटतिला एकादशी’ के व्रत से जहाँ शारीरिक शुद्धि और आरोग्यता प्राप्त होती है, वहीं अन्न, तिल आदि दान करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। इससे यह भी ज्ञात होता है कि प्राणी जो-जो और जैसा दान करता है, शरीर त्यागने के बाद उसे वैसा ही प्राप्तय होता है। अतः धार्मिक कृत्यों के साथ-साथ दान आदि अवश्य करना चाहिए। शास्त्रों में वर्णन है कि बिना दान आदि के कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं माना जाता।

कैसे करें षटतिला एकादशी व्रत

किसी भी एकादशी के व्रत में संयमित जीवन का बड़ा महत्व होता है। व्रत से एक दिन पूर्व ही व्रती को संकल्प लेकर काम, क्रोध, लोभ, मोह से दूर हो जाना चाहिए। खानपान पर, निद्रा पर, भोग विलास से व्रती को दूर हो जाना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व जागकर, उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान भुवन भास्कर को जल का अ‌र्घ्य अर्पित करें। पूजा स्थान में साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनकर पहले नित्य पूजा करें, फिर एक चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

एकादशी व्रत का संकल्प लें और विधि-विधान से पूजन करें। विष्णुजी को तिल से बनी मिठाई का नैवेद्य लगाएं। एकादशी व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। एक मिट्टी, तांबे या कांसे के पात्र में तिल भरकर उसका पूजन करें। सुख-सौभाग्य की कामना के साथ यह पात्र किसी ब्राह्मण को दान दें। दूसरे दिन द्वादशी के दिन व्रत का पारण करें।

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