अभिनेत्री से नर्सिंग ऑफिसर बनी शिखा मल्होत्रा
उमेश यादव/राम सरन मौर्या: जब पेशेवर चिकित्सक का साथ निभाने की बात आती है तब रोगियों की 24 घन्टे देखभाल करने के लिये नर्सेज की सुलभता और उपलब्धता रहती है। नर्सेज रोगियों के मनोबल को बढाने के साथ उनकी बीमारी नियंत्रित करने में मित्रवत, सहायक और स्नेहशील भूमिका निभाती है। इस समय कोरोना वायरस महामारी (कोविड19) से कोई देश अछूता नहीं है तब ऐसे में यह नर्सेज का हौसला ही है जो कोरोना संक्रमित मरीजों की देखभाल कर रही है।
नर्सिंग ऑफिसर के तौर पर मानव सेवा करने वाली फ़िल्म एक्ट्रेस शिखा मल्होत्रा आज देश और दुनिया में नर्सेज की रोल मॉडल बन चुकी है। वह इस समय कोरोना वारियर के रूप में निस्वार्थ हो कर निःशुल्क अपनी नर्सिंग सेवाएं दे रही है।
मुंबई बीएमसी के अस्पताल में इस समय बतौर नर्सिंग ऑफिसर काम कर रही फ़िल्म एक्ट्रेस शिखा मल्होत्रा बताती है कि आज पूरा विश्व कोरोना नामक महामारी को झेल रहा है और उस महामारी से युद्ध करने में दुनिया भर की नर्सेज़ अग्रिम पंक्ति की योद्धा बनी हुई है। पहली बार आम इंसान को यह पता चल रहा है कि नर्सेज का काम सिर्फ अस्पताल में डॉक्टर्स का साथ देना ही नहीं बल्कि अपनी नर्सिंग सेवाओं से मरीजों की कमज़ोर हो चुकी मानसिकता को फिर से मजबूती भी देना है।वह कहती है कि वैसे जो मेडिकल ऑफिसर्स इस कठिन दौर में कोरोनो मरीजों की सेवा कर रहे हैं वो सभी महान हैं।लेकिन दुनिया का मानना है की जिनका प्रोफेशन मेडिकल नहीं अगर वो जन सेवा के लिए नर्स बन जाये तो बात कुछ अलग सी लगने लगती है।
त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति बनी नर्सिंग ऑफिसर शिखा मल्होत्रा
अभिनेत्री शिखा मल्होत्रा बताती है कि वह मुम्बई फिल्मों में अभिनय करने आई थी और फैन, रनिंग शादी जैसी बड़ी फिल्मों में अहम किरदार निभाने के बाद इसी साल उन्होंने अभिनेता संजय मिश्रा के साथ लीड रोल में महिला प्रधान फ़िल्म काँचली से प्रसिद्धि पाई ही थी कि देश पर कोरोना का आक्रमण हो गया। क्यूँकि वह दिल्ली के नामी सफदरजंग अस्पताल से नर्सिंग ऑफ़िसर की डिग्री हाँसिल कर चुकी हैं इसलिए एकाएक पी एम नरेंद्र मोदी की पहली लॉक डाउन की घोषणा सुन उन्हें लगा कि देश के लिए इस संकट की घड़ी में उन्हें आगे आना चाहिए। तो 27 मार्च का दिन था जब लॉक डाउन लगा हुआ था तबसे आज तक शिखा मल्होत्रा मुंबई स्थित बीएमसी के अस्पताल में बतौर नर्सिंग ऑफिसर अपनी सेवाएं दे रही हैं।
शिखा मल्होत्रा सभी से यही अपील कर रही है कि ऐसे कठिन दौर में जाति-पाति से ऊपर उठकर मिलजुल कर सब लोग इस महामारी का सामना करें और साथ ही वह अपने मेडिकल फील्ड के फैलोज़ से भी अपील करते हुए कहती है कि उन्हें कोरोना मरीजों को छूने से परहेज़ नही करना चाहिए, ऐसे वक्त में जब मरीज़ पहले ही बीमारी से अकेले जूझ रहा होता है तो उसे मानसिक सपोर्ट की ज़रूरत होती है और नर्सेज़ ही एकमात्र उनका सहारा हो सकती है।
निःशुल्क दे रही नर्सिंग सेवाएं
शिखा मल्होत्रा कहती है कि मैं नवोदित अभिनेत्री हूँ मेरे पास दान करने के लिये लाखों करोड़ो तो नहीं है पर मेरी जान है जो मैंने देश की सेवा के लिए दांव पर लगा दी है व बतौर नर्सिंग ऑफिसर बिल्कुल निशुल्क कोरोना ग्रसित मरीजों की सेवा में जुटी रहूँगी ।
बीमारी से लड़े पर बीमार से नहीं
शिखा मल्होत्रा ने अफसोस ज़ाहिर करते हुए बताया कि आजकल आमजन कोरोना बीमारी से लड़ते-लड़ते बीमार से लड़ने लगे हैं। बीमार रोगी और उसके परिवार के साथ दुर्व्यवहार पर उतारू होने लगे हैं। उन्हें मेरी सलाह है कि कृपया स्थिति की गंभीरता को समझे, बीमारी से अवश्य लड़े पर बीमार से नहीं।
स्वयं रखे अपना ख्याल
शिखा मल्होत्रा ने इंटरनेशनल नर्सिज़ डे को अस्पताल से ही अपने फेसबुक पेज पर लाइव होकर बेहद ख़ास अंदाज़ से मनाया व सलाह दी कि अपनी नर्स ख़ुद बनें व लॉकडाउन की विषम परिस्थितियों में अपना व अपने प्रियजनों का ख़याल ख़ुद रखें, स्वस्थ रहें और सुरक्षित रहें।
सात माह के बच्चे की 26 दिन केयर की
शिखा मल्होत्रा बताती है कि बीते दो महीने से मैं मुंबई के बालासाहेब ठाकरे ट्रॉमा केयर हॉस्पिटल में बतौर नर्स काम कर रही हूं। इस दौरान कई दिल को छू लेने वाली घटनाएं देखी हैं। कईयों के साथ तो दिली जुड़ाव भी हो गया। इनमें से कई ठीक होकर घर चले गए तो कई हमारे बीच नहीं रहे।
एक पेशेंट ऐसे आए थे, जो कोरोना पॉजिटिव थे और उनकी हाफ बॉडी पैरालाइज थी। उन्हें बैठाकर मैं अपने हाथों से खाना खिलाती थी। वो हमेशा घर जाने की जिद करते थे और कहते थे कि मेरी बेटी की छोटी सी बच्ची मेरा इंतज़ार करती है। एक दिन ड्यूटी पर आई तो देखा उनका बेड खाली था, मेरे पूछने पर डॉक्टर ने बताया कि सुबह उनका निधन हो गया, मैं कुछ बोल ही नहीं पाई बस मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे। इसी तरह एक सात महीने का बच्चा मोहम्मद 26 दिनों तक उस बच्चे की केयर की, पर बच्चा तो बच्चा है। उसको मां ही चाहिए पर उसकी माँ दूसरे अस्पताल में एडमिट थी बहुत कोशिशों के बाद मैंने उसकी मां को बुलवा लिया।आखिरकार 26 दिनों के बाद वह बच्चा ठीक होकर अपने घर गया। उसके डिस्चार्ज होने पर मैं रात के दो बजे घर से उससे मिलने गयी, लेकिन किट में नहीं थी इसलिए वो मुझे पहचान नहीं पाया। जब उसे गाना गाकर सुनाया, तब मेरी आवाज पहचान कर वह मेरी गोद में लपक आया। एक तरफ जहां लोगों को आंखों के सामने दम तोड़ते देखती हूँ तो बहुत दुख होता है, वहीं दूसरी तरफ जब सात महीने का बच्चा ठीक होकर घर जाता है तो अगले दिन ड्यूटी पर आने की हिम्मत मिलती है ।
कुछ दाग अच्छे होते है
अभिनेत्री से नर्सिंग ऑफिसर बनी शिखा मल्होत्रा बताती है कि कोरोना वार्ड में निरन्तर पीपीई किट और मास्क पहकर रहना पड़ता है।जिसके चलते उनके चेहरे पर काफी दाग बन गए।पर वह बहुत खुश है और कहती है कि कुछ दाग अच्छे होते है,इसमें त्याग और समर्पण की कहानी छिपी है।