देहरादून: श्रीमद्भगवद्गीता रामायण महाभारत वेद उपनिषद जैसे धार्मिक ग्रंथ भारत के नैतिक मूल्यों और विश्वासों की कहानी कहते हैं। इन धार्मिक ग्रंथों से प्राप्त मूल्यों के आधार पर ही भारत विश्व गुरु बन पाया और हर समय और देश काल में मानवता के हित में संदेश दे पाया। हिंदू सनातन परंपरा की मजबूती के लिए इन आध्यात्मिक धर्म ग्रंथों से प्राप्त मूल्य का अनुसरण करना जरूरी है और इसीलिए देवभूमि उत्तराखंड की सरकार ने इस संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है। उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री ने 2 मई को कहा है कि राज्य सरकार धार्मिक ग्रंथों जैसे श्रीमद्भगवद्गीता , वेद पुराण और उपनिषद को स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल करेगी। अगर इस निर्णय के औचित्य को देखा तो कई महत्वपूर्ण बातें निकल कर सामने आती हैं ।
वर्तमान समय में तेज गति से बढ़ते आधुनिकीकरण , पश्चिमीकरण, अंग्रेजी शिक्षा के बढ़ते प्रभाव और क्रिश्चियनिटी के मूल्यों के चलते पारंपरिक हिंदू धर्म ग्रंथों में स्कूली छात्रों , युवाओं की आस्था कम होती देखी गई है। समाज में कई ऐसे तत्व विद्यमान रहे हैं जिन्होंने हिन्दू धर्म ग्रंथों के मूल्यों , प्रतीकों , नैतिक उपदेशों का मजाक उड़ाते हुए उनकी प्रासंगिकता पर सवाल खड़े करने की कोशिश की है। संस्कृत के अध्ययन की भी लंबे समय तक उपेक्षा होती रही है। देवी देवताओं को काल्पनिक पात्र कहकर उनका मजाक उड़ाया जाता रहा है , जबकि ऐसे हिंदू धर्म विरोधी तत्वों को शायद पता नहीं की मानव सभ्यता का उद्भव ,प्रगति, उसका विकास हिंदू धर्म के मूल्यों से ही हुआ है।
इस दृष्टिकोण से उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री द्वारा श्रीमद्भगवतगीता के लिए कही गई बात काफी महत्वपूर्ण है। शिक्षा मंत्री ने इस बात का तो उल्लेख नहीं किया कि कब से इस निर्णय को अमल में लाया जाएगा लेकिन उन्होंने यह साफ कर दिया है कि राज्य सरकार की ऐसी मंशा है। शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने देहरादून में दून यूनिवर्सिटी में आयोजित उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग के परीक्षा पर्व-4 कार्यक्रम में कहा कि भविष्य में विद्यालयी शिक्षा के पाठ्यक्रम में वेद, उपनिषद सहित गीता को शामिल करने का प्रयास किया जाएगा। इसके लिए जल्द ही विभाग की ओर से आम लोगों के सुझाव भी आमंत्रित किए जाएंगे। उनका कहना था कि आम लोगों की राय मिलने के बाद ही आगे का फैसला लिया जाएगा।
शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने यह भी कहा कि धार्मिक ग्रंथों का स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल करने का उद्देश्य स्कूली छात्रों को भारतीय संस्कृति और परंपरागत भारतीय ज्ञान से परिचित कराना है। धन सिंह रावत ने यह भी कहा है कि उत्तराखंड आगामी शैक्षणिक सत्र में न्यू एजुकेशन पॉलिसी को क्रियान्वित करने वाला पहला राज्य होगा। गौरतलब है कि उत्तराखंड से पहले गुजरात और हिमाचल प्रदेश भी अपने स्कूली पाठ्यक्रमों में श्रीमद्भगवद्गीता के मूल्यों के अध्ययन को शामिल कर चुके हैं। इसी साल गुजरात के शिक्षा मंत्री ने गुजरात विधान सभा में कहा था कि कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों के पाठ्यक्रम में शैक्षणिक सत्र 2022-23 से भगवत गीता को शामिल करने के फैसला किया गया है। इस तरह सरकारी स्कूलों में भारतीय ज्ञान प्रणाली ( इंडियन नॉलेज सिस्टम) शुरू करने के उद्देश्य से जून 2022 से भगवत गीता के मूल्यों और सिद्धांतों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा।उत्तराखंड सरकार की ही तरह गुजरात सरकार का मानना है कि स्कूली छात्रों को गीता और उसके श्लोकों की समझ होनी चाहिए।
भागवत गीता का परिचय कहानी सुनाने और पाठ के रूप में किया जाएगा। कक्षा 9 से 12 के लिए, भगवत गीता के मूल जैसे मानवतावाद, समानता, कर्म योग की अवधारणा, निस्वार्थ सेवा की अवधारणा के साथ-साथ प्रबंधन की अवधारणाएं और गीता में नेतृत्व पाठ गुजराती विषय की पाठ्यपुस्तकों का एक हिस्सा होंगे। ऐसा गुजरात तय कर चुका है और अब उत्तराखंड ने भी अपने यहां आध्यात्मिक मूल्य आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने का निर्णय कर लिया है। श्रीमद्भागवत गीता रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ वैश्विक स्तर पर भारत के सॉफ्ट पावर का प्रतिनिधित्व भी कर रहे हैं। पिछले साल खबर आई थी कि सऊदी अरब ने अपने स्कूली पाठ्यक्रम में रामायण और महाभारत जैसे हिन्दू धर्म ग्रंथों के अध्ययन को शामिल किया है।
( लेखक दस्तक टाइम्स के उत्तराखंड संपादक हैं )