सियाचिन ग्लेशियर का भारत के लिए है विशेष रणनीतिक महत्व , राष्ट्रपति मुर्मू पहुंची सियाचिन
नई दिल्ली ( विवेक ओझा) : भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज 26 सितंबर, 2024 को सियाचिन बेस कैंप का दौरा किया है और वहां तैनात सैनिकों के साथ बातचीत कर उनका मनोबल बढ़ाया है। उच्च अक्षांशों पर स्थित भारत के रणनीतिक महत्व के स्थलों पर जाकर सैनिकों की हौसलाअफजाई करना इंडियन आर्मी को यह संदेश देना है कि भारत सरकार हर वक्त आपके साथ खड़ी है। भारत सियाचिन ग्लेशियर पर पाकिस्तान के किसी भी नापाक हरकतों को सफल नही होने देना चाहता। इसलिए दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित युद्धस्थल के रूप में कहे जाने वाले सियाचिन ग्लेशियर में भारत में पर्याप्त संख्या में अपने सैनिकों को निगरानी के लिए तैनात कर रखा है।
सियाचिन ग्लेशियर का भारत के लिये महत्त्व:
सियाचिन ग्लेशियर हिमालय में पूर्वी काराकोरम रेंज में स्थित है, जो प्वाइंट NJ9842 के उत्तर-पूर्व में है, यहाँ भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा समाप्त होती है। जिसका गलत फायदा पाकिस्तान उठा सकता है। एलओसी जहां खत्म होगी दूसरे शब्दों में जहां नहीं होगी वहां पाकिस्तान अपने अवैध दावों और भारत विरोधी मंसूबों के लिए स्पेस खोज सकता है। साल 1984 में पाकिस्तान के सैनिकों ने पर्वतारोहियों के वेश में भारत के नियंत्रण वाले सियाचिन में प्रवेश किया था और वहां बिलाफोंड दर्रा, सिया ला जैसे दर्रों पर अपना नियंत्रण कर लिया था। वर्ष 1984 भारत ने वहां ऑपरेशन मेघदूत चलाकर सियाचिन को फिर से भारत के प्रशासनिक नियंत्रण में ले लिया था।
आपको बता दें कि सियाचिन ग्लेशियर उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित है। इसका उद्गम इंदिरा कोल वेस्ट में 6,115 मीटर की ऊँचाई पर होता है, जो इंदिरा कटक पर एक कोल (निचला बिंदु) 3,570 मीटर की ऊँचाई तक आता है। ताजिकिस्तान के ‘यज़्गुलेम रेंज’ में स्थित ‘फेडचेंको ग्लेशियर’ दुनिया के गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों का दूसरा सबसे लंबा ग्लेशियर है। सियाचिन ग्लेशियर उस जल निकासी विभाजन क्षेत्र के दक्षिण में स्थित है, जो काराकोरम के व्यापक हिमाच्छादित हिस्से में यूरेशियन प्लेट को भारतीय उपमहाद्वीप से अलग करता है, जिसे कभी-कभी ‘तीसरा ध्रुव’ भी कहा जाता है। नुब्रा नदी सियाचिन ग्लेशियर से निकलती है। सियाचिन ग्लेशियर विश्व का सबसे ऊँचा युद्धक्षेत्र है।
सियाचिन ग्लेशियर का पहला GSI सर्वेक्षण : सियाचिन ग्लेशियर का पहला GSI सर्वेक्षण जून 1958 में GSI के सहायक भूविज्ञानी वी.के. रैना द्वारा किया गया था। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय भू-भौतिकीय गतिविधियों के हिस्से के रूप में हिमालय ग्लेशियर प्रणालियों का अध्ययन करना था। GSI टीम ने ग्लेशियर में विभिन्न अध्ययन और सर्वेक्षण करने हेतु लगभग तीन महीने तक कार्य किया। यह सर्वेक्षण भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह सियाचिन ग्लेशियर की आधिकारिक भारतीय खोज का प्रतीक है, यह एक ऐसा क्षेत्र है जो बाद में भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का कारण बन गया।
पाकिस्तान का दावा:
प्रारंभ में वर्ष 1958 में GSI सर्वेक्षण के दौरान पाकिस्तान ने ग्लेशियर पर भारतीय उपस्थिति को लेकर कोई विरोध या आपत्ति नहीं जताई। इसका श्रेय दोनों देशों द्वारा वर्ष 1949 के कराची युद्धविराम समझौते की शर्तों का पालन करने को दिया जा सकता है, जिसमें ग्लेशियरों तक युद्धविराम रेखा को रेखांकित किया गया था और आपसी सीमांकन का आह्वान किया गया था। हालाँकि क्षेत्र में वैज्ञानिक दौरों और अन्वेषणों में पाकिस्तान की रुचि की कमी ने भी एक भूमिका निभाई होगी। केवल 25 वर्ष बाद अगस्त 1983 में पाकिस्तान ने यथास्थिति को चुनौती देते हुए अपने विरोध नोट में NJ9842 से काराकोरम दर्रे तक नियंत्रण रेखा (LOC) को एकतरफा बढ़ा दिया। इस कदम ने भारत में चिंताएँ बढ़ा दीं, जिसके परिणामस्वरूप अप्रैल 1984 में भारतीय सेनाओं द्वारा रणनीतिक साल्टोरो हाइट्स पर पूर्व-नियंत्रित कब्ज़ा कर लिया गया। तब से पाकिस्तान के दावे और कार्रवाइयाँ कराची युद्धविराम समझौते तथा शिमला समझौते जैसे ऐतिहासिक समझौतों की अलग-अलग व्याख्याओं पर आधारित हैं।