विवेक ओझा

सोसा समझौता से मिलेगी भारत अमेरिका रक्षा संबंधों को नई ऊर्जा, जानें भारत यूएस रक्षा संबंध की स्थिति

नई दिल्ली ( विवेक ओझा) : भारत और अमेरिका ने अपने प्रतिरक्षा संबंधों को एक नई ऊंचाई देते हुए रक्षा सहयोग को बढ़ाने के सिक्योरिटी ऑफ सप्लाई एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कर दिया है। भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अमेरिका यात्रा के दौरान इस समझौते को मूर्त रूप दिया गया है। इसके माध्यम से दोनों देशों के बीच डिफेंस ट्रेड को बढ़ावा दिया जा सकेगा। सप्लाई चेन की रुकावटों को हल करने में आसानी होगी। इसके साथ ही संपर्क अधिकारियों की नियुक्ति समझौते के तहत भारत इंडो पैसिफिक कमांड फ्लोरिडा में विशेष ऑपरेशन कमांड और बहरीन में अमेरिकी नेतृत्व वाली बहुराष्ट्रीय संयुक्त समुद्री सेना में तीन कर्नल स्तर के अधिकारियों को तैनात करेगा।

भारत को लेकर यूएस अब तक 17 देशों के साथ कर चुका है ये समझौता : अमेरिका ने अपने नाटो सहयोगियों समेत 17 देशों के साथ एसओएसए ( SOSA Agreement) समझौते किए हैं और भारत उसका 18वां साझेदार है। अमेरिका ने जिन अन्य देशों के साथ यह समझौता किया है, उसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, इजराइल, इटली, जापान, लातविया, लिथुआनिया, नीदरलैंड, नॉर्वे, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, स्पेन, स्वीडन और ब्रिटेन आदि शामिल हैं। इस समझौते से क्षेत्रीय सुरक्षा, हिंद प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा, चीन पर दबाव आदि मामले में दोनों देश एक दूसरे को और सहयोग कर पाएंगे।

भारत अमेरिका प्रतिरक्षा संबंधों के विविध आयाम: भारत विश्व में सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है , वहीं वर्तमान में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता देश बन गया है। अमेरिका ने भारत को प्रमुख रक्षा भगीदार का दर्जा भी वर्ष 2016 में दिया था । इतना ही नही, दोनों देशों के मध्य रक्षा क्षेत्र में सम्बन्ध क्रेता विक्रेता तक सीमित न होकर अब संयुक्त उत्पादन और सह अनुसंधान के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे है। इसी क्रम में हाल के वर्षों में भारत अमेरिका के मध्य अनेक महत्वपूर्ण रक्षा समझौते भी सम्पन्न हुए है। जैसे–

लॉजिस्टिक विनिमय समझौता ( लेमोआ ) :अमेरिकी और भारतीय नौसेना के मध्य लॉजिस्टिक के आदान प्रदान हेतु यह समझौता वर्ष 2016 में किया गया है। इसके तहत दोनों देशों की नौसेनाएं आवश्यकता की स्थिति में ईंधन के लिए , मरम्मत के लिए या अन्य स्थिति में सहयोग प्राप्त कर सकेंगे। इस समझौते से हिन्द प्रशांत क्षेत्र में भारतीय नौसेना के प्रभाव में वृद्धि होगी और ब्लू वॉटर नेवी बनने की दिशा में भी सहायता मिलेगी।

संचार संगतता व सुरक्षा समझौता ( कॉमकेसा ) : यह समझौता अमेरिकी सरकार को एक वैधानिक रूपरेखा प्रदान करता है,जिससे वे भारत को संवेदनशील संचार उपकरण दे सकेंगे। यह समझौता भारत को अमेरिकी खुफिया तंत्र के बिग डेटा आधार तक पहुंच देगा। साथ ही भारत को अमेरिकी कोडेड उपकरण प्राप्त हो सकेंगे। वर्ष 2018 में भारत और अमेरिका के बीच पहली 2 प्लस 2 वार्ता के तहत कॉमकासा एग्रीमेंट किया गया। कम्युनिकेशन कंपैटीबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट दोनों देशों के मध्य सैन्य सूचना बिल्कुल सटीक समय पर एक दूसरे को साझा करने का समझौता है । इससे भारत को सी 17, सी 130 जे , पी8I जैसे अमेरिकी सैन्य और समुद्री निगरानी एयरक्राफ्ट के जरिए सूचनाएं मिलने लगेगीं। भारत को सी गार्डियन ड्रोंस मिलने लगेगें। इन सैन्य प्लेटफार्मों का लाभ यह होगा कि यदि मलक्का जलडमरूमध्य में अमेरिका के जहाज ने चीन की किसी पनडुब्बी को आते जाते देखा , तो उस पनडुब्बी की गति , दिशा , अवस्थिति जैसी जानकारी मिनटों में भारतीय नौसेना के मुख्यालय पर 2019 में ही स्थापित कम्युनिकेशन सिस्टम तक रियल टाइम में पहुंचा दी जाएगी जबकि भारत ऐसी ही कोई सूचना अमेरिकी सेंट्रल एंड पैसिफिक नेवल कमांड तक पहुंचा देगा ।

यदि दोनों देशों के लिए घातक कोई आतंकी किसी तीसरे देश में वार्ता कर रहा है , या योजना बना रहा है तो इसकी भी सूचना मिनटों में पहुंचा दी जा सकेगी । यह सुविधा कॉमकैसा समझौते के तहत मिलेगी। हाल ही में भारतीय नौसेना ने ओमान के सलालाह क्षेत्र से समुद्री डकैती को रोकने के लिए पी- 8I लॉन्ग रेंज मैरीटाइम सर्विलांस एयरक्राफ्ट तैनात किया है । भारतीय नौसेना ने हिंद महासागर के क्षेत्र में मिशन आधारित तैनाती के तहत अदन की खाड़ी में गश्त लगाने के लिए यह कदम उठाया है । मिशन आधारित तैनाती अवधारणा के तहत भारतीय नौसेना हिन्द महासागर क्षेत्र में हर चोक प्वाइंट पर किसी भी समय एक जहाज तैनात रखती है।

स्ट्रेटेजिक ट्रेड ऑथराइजेशन – 1 ( सैट-1 ) का दर्जा : भारत 37 वां देश है जिसे अमेरिका ने स्ट्रेटेजिक ट्रेड ऑथराइजेशन – 1 ( सैट – 1) का दर्जा दिया है । भारत, जापान और दक्षिण कोरिया के बाद तीसरा एशियाई देश है जिसे अमेरिका ने यह महत्वपूर्ण दर्जा दिया है। भारत के लिए इस दर्जे का महत्व इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि अमेरिका ने अपने सबसे मजबूत साझेदार इजरायल को अभी अभी यह दर्जा नहीं दिया है । यह अमेरिका द्वारा नाटो के सहयोगी देशों को दिया जाने वाला दर्जा है। यह दर्जा प्राप्त करने के लिए संबंधित देश को 4 नाभिकीय गतिविधि नियंत्रण व्यवस्था में शामिल होना चाहिये – नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह , आस्ट्रेलिया समूह , वासैनार समूह और मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजीम । हालांकि भारत नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य नही है , फिर भी उसे यह दर्जा दिया गया है । यह दर्जा प्राप्त करने के बाद भारत का अब बिना किसी विशिष्ट लाइसेंस के अमेरिका के अति उन्नत हथियारों तक पहुंच सुनिश्चित हो गई है । साथ ही रक्षा बाजार के क्षेत्र में भारत की छवि अग्रणी देश के रूप में स्थापित हुई है । इसके तहत अब असैन्य अंतरिक्ष और प्रतिरक्षा क्षेत्र में अमेरिकी उच्च प्रौद्योगिकी उत्पादों का विक्रय भारत को करना संभव हो हो गया है।

भारत को नाटो के सहयोगी सदस्य का दर्जा :वर्ष 2019 में अमेरिका के कानून निर्माताओं ने कांग्रेस के उच्च सदन सीनेट में देश के शस्त्र नियंत्रण निर्यात संधि में संशोधन के लिए एक विधेयक पेश किया है, जिसका मूल उद्देश्य भारत को नाटो सहयोगी सदस्य का दर्जा देना है । नाटो में पूर्ण सदस्यता के स्तर पर भी विस्तार जारी है। कुछ ही समय पहले मॉन्टेनिग्रो को इसका नया सदस्य बनाया गया था । वहीं 2019 में मेसिडोनिया को 30 वा सदस्य बनाने का निर्णय लिया गया है । नाटो के इस विस्तार से उसके बढ़ते सामरिक महत्व का पता चलता है। नए कानून के जरिए भारत को वैसा ही नाटो सहयोगी सदस्य बनाने का प्रस्ताव किया गया है जैसे कि इज़राइल, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, और दक्षिण कोरिया हैं । इससे उच्च प्रौद्योगिकी सैन्य उपकरणों को प्राप्त करने में भारत को मदद मिलेगी । भारत को नाटो प्लस से जोड़ने के सोच के पीछे अमेरिका के दीर्घकालिक हित काम कर रहें हैं । एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन को प्रतिसंतुलित करने के तरीके अमेरिका लगातार खोज रहा है । चीन के दक्षिण चीन सागर के स्पार्टले और पारासेल द्वीपों और पूर्वी चीन सागर में डियायू अथवा सेनकाकू द्वीपों पर अवैध कब्जे करने का प्रयास , चीन द्वारा पापुआ न्यू गिनी में नौसैनिक अड्डे के निर्माण का प्रस्ताव , वन बेल्ट वन रोड पहल , मैरीटाइम सिल्क रूट , मोतियों की लड़ी की नीति के जरिए समूचे हिन्द महासागर को अड्डों का नेटवर्क बनाने का प्रयास , हिन्द महासागर में इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी से पॉलिमेटालिक सल्फाइड के निष्कर्षण का ठेका प्राप्त करने जैसी बातें अमेरिका के हित में नहीं है और दूसरी तरफ चीन के साथ व्यापार में अमेरिका को लगातार क्षति हो रही है । इस दृष्टि से भारत को नाटो से जोड़कर अमेरिका क्वाड्रीलैट्रल ग्रुप यानी क्वाड और मालाबार , रिंपैक और युद्ध अभ्यास जैसे संयुक्त अभ्यासों को एशिया पैसिफिक क्षेत्र को बचाने के लिए एक नई ऊर्जा भर सकता है । नाटो के पास उसके मुख्यालय ब्रुसेल्स में एक आतंकवाद आसूचना प्रकोष्ठ है जो नाटो के सभी आतंक निरोधी गतिविधियों में समन्वय स्थापित करता है । यह अपने अवाक्स इंटेलिजेंस फ्लाइट्स के जरिए भी आतंक से लड़ने में निपुण है । हिन्द महासागर और प्रशांत क्षेत्र में समुद्री डकैती से निपटने में भी नाटो भारत का बेहतर सहयोगी साबित हो सकता है । हॉर्न ऑफ अफ्रीकन देशों सोमालिया , जिबूती , इथोपिया और इरीट्रिया से उच्च सागर जो किसी अन्तर्राष्ट्रीय कानून से संचालित नहीं होता , को बचाने के लिए भी नाटो का सामरिक महत्व है । नाटो ने पहले भी अमेरिकी हितों , यूरोपीय हितों की रक्षा के लिए कोसोवो, हैती, रवांडा , बोस्निया और हर्जेगोविना में बमवर्षा की है । नाटो सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांत के साथ अमेरिकन और यूरोपीय हितों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है । भारत के अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा और और प्रादेशिक अखंडता की रक्षा में नाटो एक महत्वपूर्ण कारक साबित हो सकता है

भारत अमेरिका का सामरिक क्षेत्र में सहयोग :वर्तमान वैश्विक शक्ति समीकरण में अमेरिका भारत के माध्यम से चीन की बढ़ती आक्रमकता को प्रतिसन्तुलित करना चाहता है। साथ ही अपनी अर्थव्यवस्था के पुनरोद्धार के लक्ष्य के साथ वह भारत के बड़े बाजार का दोहन करना चाहता है। दूसरी भारत हिन्द प्रशांत क्षेत्र के नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाने का इच्छुक है , जहाँ अपने पड़ोस में चीन की बढ़ती उपस्थिति से वह चिंतित है । ऐसे में भारत की अमेरिका से सामरिक भागीदारी उसे चीन पर बढ़त बनाने का अवसर दे सकता है । यही कारण है कि हिन्द प्रशांत क्षेत्र के सम्बंध में दोनों देशों के दृष्टिकोणों में साम्यता देखी जा सकती है । दोनों ही देश इस क्षेत्र में आधिपत्यवादी व वर्चस्ववादी नीतियों का विरोध करते हैं और अंतरराष्ट्रीय कानूनों पर आधारित सामुद्रिक व्यवस्था के समर्थक है ।

दोनों देशों के मध्य बढ़ते सामरिक सहयोग के निम्नलिखित उदहारण देखे जा सकते है– अमेरिका द्वारा अपनी सामुद्रिक सुरक्षा रणनीति में एशिया प्रशांत क्षेत्र का नाम बदलकर हिंद प्रशांत क्षेत्र कर दिया गया है , जो इस क्षेत्र में भारत की केंद्रीय भूमिका को मान्यता देता है। दोनों देशों के मध्य विदेश और रक्षा मंत्री के स्तर पर 2+2 वार्ता प्रारम्भ की गई है जिसके तहत वैश्विक आतंकवाद , साइबर सुरक्षा , महासागरीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सामरिक वार्ता की जा रही है ।

जापान,अमेरिका और भारत(JAI) के मध्य मालाबार नौसैन्य अभ्यास का आयोजन हो रहा है और इसमें ऑस्ट्रेलिया को भी जोड़े जाने पर विचार चल रहा है जिससे हिन्द प्रशांत और एशिया प्रशांत के सुरक्षा परिदृश्य को मजबूती दी जा सके।- जापान, अमेरिका, भारत और आस्ट्रेलिया के मध्य क्वैड के रूप में सामरिक बैठकें हो रही हैं । इन बैठकों का एक मुख्य मकसद चीन की एकाधिकारवादी मानसिकता को नियंत्रित करना है । चीन के वन बेल्ट वन रोड पहल के नकारात्मक प्रभावों पर ये राष्ट्र आपस में चर्चा कर अपनी प्रभावी कार्यवाही को संपन्न करने के लिए रणनीति निर्मित करते हैं । – हाल ही में दोनों देश एशिया और अफ्रीका में वैश्विक विकास हेतु त्रिपक्षीय सहयोग के तहत किसी तीसरे देश मे संयुक्त परियोजना संचालित करने पर भी सहमत हुए है।भारत अमेरिका के मध्य बढ़ते इस सामरिक सहयोग के भारत के संबंध में निम्नलिखित सकारात्मक निहितार्थ देखे जा सकते हैं — भारत और अमेरिका के मध्य बढ़ती घनिष्ठता के कारण भारत के वैश्विक और क्षेत्रीय प्रभाव में वृद्धि देखी जा रही है । इससे भारत को हिन्द प्रशांत क्षेत्र के नेतृत्वकर्ता के रूप में मान्यता भी मिल रही है। यह सामरिक भागीदारी हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन पर मनोवैज्ञानिक दवाब के रूप में भी कार्य कर रही है और इसके साथ ही एक वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के सामरिक आर्थिक भागीदारों की संख्या में वृद्धि हो रही है ,जिससे भारत के व्यापारिक व सामरिक संबंधों को नई ऊर्जा मिल रही है।- सॉफ्ट पाॅवर के साथ साथ अब भारत की छवि हार्ड पॉवर देश के रूप में स्थापित हो रही है , जो वर्तमान शक्ति राजनीति के दौर में भारत के सामरिक हितों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

अमेरिका के सहयोग से भारत की भूमिका तीसरी दुनिया के देशों में बढ़ रही है , जहाँ भारत को सुरक्षा प्रदायक और विकास भगीदार के रूप में देखा जा रहा है।हालांकि इस बढ़ती सामरिक निकटता के कुछ नकारात्मक पक्ष भी है,जो निम्नलिखित हैं — भारत अमेरिका के मध्य मजबूत होते सामरिक गठबंधन ने भारत को अवांछित रूप में शक्ति राजनीति का भाग बना दिया है , जहाँ भारत को चीन के विरुद्ध देखा जा रहा है। इससे भारत और चीन के मध्य संबंधों में तनाव बढ़ने की संभावना मजबूत हो रही है।

भारत की महाशक्तियों से बढ़ती निकटता भारत की सामरिक स्वायत्तता और स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करेगा। ईरान और वेनेजुएला के साथ संबंधों को समाप्त करने के लिए अमेरिकी दबाव को इस संदर्भ में देखा जा सकता है। इसके अलावा अमेरिका से बढ़ती निकटता के कारण भारत की अनेक परम्परागत भागीदारों विशेषकर रूस से दूरी बढ़ सकती है।- अमेरिका के साथ निकटतम सामरिक सहयोग भारत की परम्परागत विदेशनीति पर भी प्रश्नचिन्ह उपस्थित करता है क्योंकि अब भारत की आवाज तीसरी दुनिया के संरक्षक के रूप में अमेरिका सहित विकासशील देशों के विरुद्ध प्रभावी रूप में नही देखी जा रही । भारत द्वारा अब गुटनिरपेक्ष आंदोलन को भी अपेक्षित महत्च नही दिया जा रहा है । अतः तीसरी दुनिया के नेतृत्वकर्ता के स्थान पर भारत पर अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने का आरोप लग रहा है।- इसके अतिरिक्त अनेक मुद्दों पर अमेरिका भारत के आत्म सम्मान और प्रतिष्ठा के विरुद्ध भी कार्य कर रहा है। जैसे-अफगानिस्तान में भारतीय सेना न भेजने के निर्णय का अमेरिका द्वारा उपहास करना , भारत की आपत्ति के बावजूद अमेरिका द्वारा भारत और पाकिस्तान के मध्य मध्यस्थता का दावा प्रस्तुत करना आदि। इन घटनाओं ने भारत की विदेशनीति में दुविधा और असमंजस को उत्पन्न कर दिया।

Related Articles

Back to top button