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सातवें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष आलेख: कोरोना महामारी के बीच बढ़ता योग का कद तथा उभरती अपेक्षाएँ

डा० योगी रवि

कोरोना महामारी के पिछले दो वर्षों में दुनिया ने स्वास्थ्य और आरोग्यता का नया पाठ सीखा। इक्कीसवीं सदी में पहली बार हुआ जब प्रतिरक्षा तन्त्र की महात्वपूर्णता को इतना नजदीक से समझा गया। प्रकृति की विशेषता है यह बड़ी सम्पूर्णता से सिखाती है। महात्वपूर्ण यह कि हम इस सीख के प्रति कितने सजग बने हैं। सवाल यह भी है कि प्रतिरक्षा तन्त्र को क्या कुछ औषधियों तथा जीवन शैली के कुछ दिनों के परिवर्तन से सक्षम बनाया जा सकता है।

‘प्रतिरक्षा तन्त्र’ विगत दो वर्षों में विशेष रुप से चर्चा का विषय बन चुका है। किन्तु भारतीय जनमानस में प्रतिरक्षा तन्त्र की व्यापक समझ का अभाव है। उसके विभिन्न पहलुओं का ज्ञान, कार्यशैली तथा सुरक्षा शक्ति के पैमाने की व्यापक समझ का ना होना भविष्य की चुनौतियों के भयावह होने की ओर इशारा करता है।

योग का अभ्यास ज्ञान अज्ञान दोनों पहलुओं को स्वीकार कर स्वास्थ्य की सम्भावनाएँ प्रदान करता है। मानव संस्कृति सदियों से इसी प्रकार समृद्ध होती रही है। कोरोना महामारी के इस विश्वव्यापी प्रभाव में योग अत्यधिक प्रासंगिक बनकर उभरा है। जनमानस में योग के प्रति अधिक सम्भावना तथा स्वास्थ्य की अधिक अपेक्षाएँ उभरी हैं। लोगों में आसन, प्राणायाम व ध्यान जैसी योग की प्रविधियों की चर्चा आम हो चुकी है। योग के प्रति फैलती तथा आम होती योग की धारणा स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का एक महात्वपूर्ण कदम है। परन्तु इस धारणा को अभ्यास की निरन्तरता का रूप लेने का भी वक्त आ गया है। कोरोना महामारी की तीसरी लहर हो या आने वाली और नयी चुनौतियाँ, यह सभी स्वास्थ्य तथा प्रति रक्षा तन्त्र की आगे कड़ी परीक्षा लेने वाली हैं, यह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है।

अभ्यास की निरन्तरता बड़ी चुनौती है। आधुनिक जीवन शैली की बड़ी परेशानियाँ हैं। कम समय में अधिक काम पूरा करने का दबाव तथा तनाव, जल्दी भोजन तथा समय पर ना होने की समस्या, रात्रि जागरण के अपने कारण तथा जो योगाभ्यास को पसन्द करते हुए भी ना करने का मन। योगाभ्यास के लिए मन को ढालना होगा, नियमितता लाने के लिए मन को अधिक संकल्पशाली बनाना होगा, मन को योग की उपयोगिता को अधिक स्पष्टता तथा गहराई से समझाना होगा। ध्यान रखने वाला तथ्य यह है कि यदि निरन्तरता में एक बार ढ़ल पाये तो आगे योग के लाभ पाने की रोज की आदत कभी रुकने नहीं देगी।

कोरोना महामारी में हमारे बीच योग का कद बहुत बढ़ा है तथा महामारी से लड़ने की अपेक्षा भी बढ़ी है। बस आवश्यकता है योग की निरन्तरता को सचमुच अपनाने की। उनसे सचमुच प्रेरित होने की जो निरन्तर हो चुके हैं। उन आदतों से आगे बढ़ने की जो निरन्तरता को बाधित करने की सचमुच वजह हैं। आइये! उस आने वाले कल की ओर बढ़ चलें, जहाँ से हम अपने स्वास्थ्य तथा वर्तमान को सम्पूर्णता से जी सकें।

लेखक-
योग विशेषज्ञ व प्राकृतिक चिकित्सक हैं

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