देहरादून ( विवेक ओझा) : उत्तराखंड की धरती ऐसे जांबाज शूरवीरों की धरती रही है जिन्होंने अपने अदम्य साहस और सैन्य कौशल से कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए देश और समाज को सुरक्षित किया। इन्हीं में एक बड़ा नाम था दरबार सिंह नेगी जिनकी आज जयंती है । मुख्यमंत्री धामी द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि दी गई है।
ब्रिटेन के सबसे बड़े सैनिक सम्मान विक्टोरिया क्रॉस विजेता दरबान सिंह नेगी का जन्म 4 मार्च 1881 को हुआ था और वे उन पहले भारतीयों में से थे जिन्हें ब्रिटिश राज का सबसे बड़ा युद्ध पुरस्कार मिला था। वे करीब 33 साल के थे जब 39वीं गढ़वाल राइफल्स की पहली बटालियन में नायक के पद पर तैनात थे। उन्हें 4 दिसम्बर 1914 को विक्टोरिया क्रॉस पुरस्कार प्रदान किया गया।
दरबान सिंह और उनकी टुकड़ी को ब्रिटिश सरकार की तरफ से प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस के फेसटुबर्ट शहर में भेजा गया था जहां उन्होंने अपना युद्ध कौशल दिखाया था। प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस के फेस्टबर्ट शहर में उनकी टुकड़ी ने दुश्मनों पर धावा बोला था। युद्ध में दोनों तरफ से भयंकर गोलीबारी हुई इनकी टुकड़ी के कई साथी घायल और शहीद हो गये। इन्होंने खुद कमान अपने हाथ में लेते हुए दुश्मनों पर धावा बोल दिया। दरबान सिंह के सर में दो जगह घाव हुए और कन्धे पर भी चोट आई, परन्तु घावों की परवाह न करते हुए अदम्य साहस का परिचय देते हुए आमने-सामने की नजदीकी लड़ाई में गोलियों और बमों की परवाह ना करते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए।
दरबान सिंह नेगी सूबेदार के पद से सेवा निवृत्त हुए थे। विक्टोरिया क्रॉस ग्रहण करने के समय इनसे अपने लिए कुछ मांगने को कहा गया था तो इन्होंने कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बनाने की मांग की थी। दरबान सिंह नेगी की मांग को मानते हुए ब्रिटिश सरकार ने 1924 में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन का सर्वे कार्य पूरा करा लिया था।
24 जून 1950 को आजादी के दो साल बाद दरबान सिंह नेगी का निधन हो गया। जब तक वह जीवित थे तब तक उनका सपना रहा, लेकिन बदलते वक्त और बदलते दौर के साथ अब कर्णप्रयाग तक रेल पहुंचाने की कवायद तेज हो गई है। अब दरबान सिंह नेगी का सपना हकीकत बनने जा रहा है, सरकार का दावा है कि 2024 तक कर्णप्रयाग तक हमें रेलवे दोड़ते हुए दिखेगी।