देवभूमि में सजी खेलों की महफिल
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 जनवरी की शाम जब देहरादून के राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय खेल स्टेडियम में करीब 25 हजार दर्शकों से उनके मोबाइल की फ्लैश लाइट जलवाकर 38वें राष्ट्रीय खेलों का शुभारंभ किया तो लगा जैसे आसमान से हजारों सितारे खेल के इस विशाल मैदान में उतर आए हों। पीएम ने एलान किया कि भारत दुनिया की तीसरी आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है और इसमें स्पोट्र्स इकोनॉमी बड़ा हिस्सा बनेगी। पहाड़ों से घिरे इस खूबसूरत राज्य को अस्तित्व में आने के 24 साल बाद पहली बार राष्ट्रीय खेल की मेज़बानी का मौका मिला और इस अवसर को राज्य के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ऐतिहासिक बनाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी। खेल संपादक संजीव मिश्र की एक रिपोर्ट।
देश को बछेंद्री पाल, अभिनव बिंद्रा, जसपाल राणा, मीर रंजन नेगी जैसे खेल के अनमोल नगीने देने वाली देवभूमि उत्तराखंड में खेलों की महफिल पूरे शबाब पर है। उत्तराखंड को अपने राज्य में इन खेलों के आयोजन के जरिए अपने यहां खेलों के उत्थान, व्यवसाय और पर्यटन को बढ़ावा देने का अवसर भी हासिल हुआ है। राष्ट्रीय खेलों की मेज़बानी से खेल और पर्यटन केन्द्र के रूप में उत्तराखंड की प्रतिष्ठा बढ़ी है। दरअसल पारंपरिक खेलों का समावेश आयोजन की विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाता है। यही वजह रही कि उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ओलंपिक खेलों की याद आ गई। उन्होंने कहा कि भारत 2036 में ओलंपिक की मेज़बानी के लिए पूरा जोर लगा रहा है। जब भारत में ओलंपिक होगा तो हमारे खेलों को नए आसमान पर ले जाएगा। उन्होंने कहा, हमने खेलों के विकास को प्राथमिकता दी है। खेल बजट तीन गुना बढ़ाया है। देश के खिलाड़ी मुझे पीएम यानी प्रधानमंत्री नहीं, परम मित्र बुलाते हैं। मोदी ने कहा, देवभूमि आज और दिव्य हो उठी है। बाबा केदार की पूजा के साथ नेशनल गेम्स शुरू हो रहे हैं। यह उत्तराखंड का 25वां वर्ष है। इन गेम्स में देश के कोने-कोने से आए युवा अपना हुनर दिखाएंगे।
14 फरवरी 2025 तक चलने वाले इस आयोजन में कुल 36 खेल प्रतियोगिताएं हो रही हैं। इनमें से 34 मेडल टेली गेम और दो डेमो गेम शामिल हैं। खास बात यह है कि योग व मलखंब को इस बार मेडल टेली गेम में शामिल किया गया है। राष्ट्रीय खेल में पूरे देश से कोई दस हजार खिलाड़ी अपनी खेल प्रतिभा दिखा रहे हैं। ये खेल प्रतियोगिताएं प्रदेश के आठ जिलों में चल रही हैं। राष्ट्रीय खेलों की थीम ग्रीन गेम है, इसलिए पदकों से लेकर तमाम कार्यक्रमों में हरित पहल की छाप दिख रही है। इस बार राष्ट्रीय खेल के शुभंकर का नाम मौली है जो उत्तराखंड के राज्य पक्षी मोनाल से प्रेरित है। मशाल को तेजस्विनी नाम दिया गया है। समापन समारोह 14 फरवरी को हल्द्वानी में होगा।
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दिलकश थीम सॉन्ग
रंगारंग उद्घाटन समारोह में सैनिक स्कूल घोड़ाखाल की बैंड टीम के नेतृत्व में 36 राज्य व एक केन्द्रशासित प्रदेश के खिलाड़ियों ने मार्च पास्ट किया। खेल विभाग ने यूपीएल और युवा महोत्सव में परफॉर्मेंस देखने के बाद थीम सॉन्ग के लिए पांडवाज ग्रुप को जि़म्मेदारी सौंपी थी। यह सॉन्ग एथलीटों को खूब पसंद आया। खेल विभाग ने नेशनल गेम्स के थीम सॉन्ग को हिंदी, गढ़वाली और कुमाऊंनी में बनाने का प्रोजेक्ट पांडवाज को दिया था। बॉलीवुड सिंगर जुबिन नौटियाल, पवनदीप राजन के साथ पांडवाज बैंड ने शानदार प्रस्तुतियों से समा बांधा। पीएम नरेंद्र मोदी ने युवा सीएम धामी के साथ सफेद और लाल गुलाबों से सजी गाड़ी में बैठकर जब मैदान के चारों ओर चक्कर लगा दर्शकों का अभिवादन किया तो पूरा स्टेडियम जय श्रीराम के नारों से गूंज उठा।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राष्ट्रीय खेलों को ग्रीन गेम्स की थीम पर रखा गया है। हम खेलों के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने में भी सफल होंगे। खेल मंत्री रेखा आर्य ने कहा कि आज देवभूमि के लिए ऐसा पल आया है जब हम संकल्प से शिखर तक जाने के अपने आह्वान को साक्षात होते हुए देख रहे हैं। उद्घाटन समारोह को भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पीटी उषा ने भी संबोधित किया। पीएम ने उत्तराखंड के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों से मुलाकात भी की। इस दौरान मंच पर केन्द्रीय खेल राज्यमंत्री रक्षा निखिल खडसे, केन्द्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा, विधानसभा अध्यक्ष ऋतु भूषण खंडूड़ी, राज्यसभा सांसद व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष महेंद्र भट्ट, राष्ट्रमंडल खेल महासंघ के अध्यक्ष क्रिस जेनकिंस समेत कई अन्य अतिथि उपस्थित थे।
खेलों में आगे बढ़ रहा है उत्तराखंड
कहते हैं कि किसी भी देश या राज्य की समृद्धि खेल में उसकी ताकत से पता चल सकती है। कभी उत्तर प्रदेश का हिस्सा होने वाला उत्तराखंड खेलों में धीरे-धीरे आगे बढ़ने वाला राज्य है। भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने जब 2025 के राष्ट्रीय खेलों के 38वें संस्करण के लिए उत्तराखंड को मेजबान घोषित किया था तब आईओए अध्यक्ष पी.टी. ने उत्तराखंड में पारंपरिक और आधुनिक दोनों खेलों को बढ़ावा देने के लिए एक ऐतिहासिक आयोजन का वादा किया था, इसकी झलक अब तक हुई प्रतियोगिताओं के दौरान मिली भी हैं। इन खेलों में कलारीपयट्ट, योगासन, मल्लखंब और राफ्टिंग जैसे खेलों को शामिल कर एथलीटों को नए अवसर दिए जा रहे हैं। साथ ही भारत की समृद्ध विरासत का सम्मान करने की प्रतिबद्धता भी नज़र आ रही है।
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गोवा में महाराष्ट्र शीर्ष पर था
भारत में राष्ट्रीय खेल एक तरह से ओलंपिक खेलों के लिए व्यापक तैयारी है जो राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के एथलीटों को पदक के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक साथ लाता है। राष्ट्रीय खेलों के इस संस्करण में 32 खेल और चार प्रदर्शनी खेल शामिल हैं। राष्ट्रीय खेलों का आयोजन पिछली बार 2023 में गोवा में हुआ था, जिसमें पांच शहर- मापुसा, मडगांव, पंजिम, पोंडा और वास्को शामिल थे। महाराष्ट्र 80 स्वर्ण सहित 228 पदकों के साथ पदक तालिका में शीर्ष पर रहा। 2015 के आयोजन के सात साल बाद गुजरात में आयोजित 2022 के राष्ट्रीय खेलों के दौरान, सर्विसेज 61 स्वर्ण सहित 128 पदक जीतकर शीर्ष टीम के रूप में उभरी थी।
खेलों का बुनियादी ढांचा तैयार
खेलों का एक बड़ा आयोजन किसी राज्य की तस्वीर और तकदीर बदलने के लिए पर्याप्त होता है। जब किसी देश या राज्य में खेलों के बड़े आयोजन होते हैं तो वहां खेलों का बुनियादी ढांचा भी तैयार हो जाता है, जो कुछ वर्षों में अच्छे खिलाड़ियों के रूप में आउटपुट देना शुरू कर देता है। देश में बड़े आयोजनों के होने से इनको इवेन्ट्स भी मिलते रहते हैं।
पहली बार एक ही प्रदेश में सभी इवेंट
उत्तराखंड नेशनल गेम्स के सभी इवेंट को अपने ही स्टेट में आयोजित करने वाला पहला स्टेट होगा। अब तक हुए सभी नेशनल गेम्स में शॉटगन, शूटिंग और साइकिलिंग इवेंट के लिए किसी भी राज्य को दिल्ली का रुख करना पड़ता है। राष्ट्रीय खेल के सभी इवेंट उत्तराखंड में ही होंगे।
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चक दे उत्तराखंड
देवभूमि उत्तराखंड में अलग-अलग जगहों पर चल रहे नेशनल गेम्स इवेंट्स युवा खिलाड़ियों के लिए अपनी प्रतिभा को दुनिया में दिखाने का एक बड़ा प्लेटफॉर्म है। जहां तक उत्तराखंड में खेल के विकास की बात है तो वहां पर डेवलपमेंट तो हुआ है लेकिन खेलों के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है और ऐसे में यह नेशनल गेम्स उत्तराखंड के लिए मील का पत्थर साबित होने जा रहे हैं। इस राज्य में जहां-जहां पर इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है वहां उसे डेवलप किया गया है। जहां-जहां पर खेलों के प्रति जागरूकता पैदा करने की जरूरत है वहां पर मीडिया पब्लिसिटी से लोगों में जरूर खेल के प्रति दिलचस्पी पैदा हुई होगी और यह उत्तराखंड के स्पोट्र्स के लिए भी बहुत अच्छा होगा। मैं चाहता हूं जितने भी खिलाड़ी पूरे देश से उत्तराखंड पहुंचे हैं, उन्होंने अब तक जो कुछ भी सीखा है वहां अपनी पूरी एकाग्रता से अपना बेस्ट करके दिखाएं, क्योंकि यह बात भी तय है कि यह प्लेटफॉर्म उनके लिए नेशनल कैम्प में आने का बहुत बड़ा मौका लेकर आया है। पिछले नेशनल गेम्स में जिन खिलाड़ियों ने अच्छा प्रदर्शन किया वे आज देश के जितने भी कोर ग्रुप हैं, उनमें नज़र आते हैं। विशेषकर हॉकी, फुटबाल या जो भी टीम गेम्स हैं, उनमें खेलते हैं। वहीं से ये खिलाड़ी देश के लिए चुने जाते हैं। उत्तराखंड पहुंचे खिलाड़ियों और आयोजकों को मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं हैं। चक दे इंडिया, चक दे उत्तराखंड।
-मीररंजन नेगी (मीररंजन नेगी भारत के ऐसे पूर्व हॉकी गोलकीपर हैं, जिन पर चक दे इंडिया फिल्म बनी।)
देवभूमि के खिलाड़ियों की कुंडली बदल जाएगी
जब आपको कोई बड़ा आयोजन मिलता है तो उससे पूरे राज्य के खेलों का नक्शा बदल जाता है। खिलाड़ियों को अपने राज्य में स्किल डेवलपमेंट के लिए बेहतरीन सुविधाएं मुहैया हो जाती हैं। इसके बाद धीरे-धीरे उस राज्य का खेल शक्ति बनना शुरू हो जाता है। हालांकि रातों-रात ऐसा नहीं होता, बल्कि उसमें थोड़ा समय लगता है, क्योंकि यह सतत और निरंतर प्रयास से होता है। जरा 1982 के दिल्ली एशियन गेम्स की याद कीजिए। उससे पहले हम ओलंपिक की मैडल टैली में बस हॉकी के पदक से ही अपनी उपस्थिति दर्ज करवा पाते थे। एशियाड के बाद धीरे-धीरे खेलों में हमारा ग्राफ ऊपर उठता गया। उत्तराखंड के लिए भी यह उतना ही बड़ा आयोजन है। निश्चित रूप से यह बड़ा खेल महोत्सव इस राज्य के खिलाड़ियों की नई कुंडली बनाने जा रहा है। पहाड़ों की कठिन जीवनशैली के दौरान खिलाड़ियों के लिए नाम मात्र के संसाधनों के साथ मैदानी शहरों के खिलाड़ियों को किसी टूर्नामेंट में टक्कर देना काफी मुश्किल होता है, लेकिन जब उन शहरों जैसी सुविधाएं पहाड़ों पर भी मुहैया हो जाएंगी हैं तो वे शारीरिक दमखम से कम से कम पॉवर गेम्स में तो कठिन प्रतिद्वंद्वी साबित जरूर होंगे।
-गीता टंडन कपूर, वेटरन इंटरनेशनल टेबल टेनिस खिलाड़ी और इनकम टैक्स ऑफिसर