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एनिमिया पर वार, मिलकर करेंगे 12 के पार

राज्यस्तरीय संगोष्ठी में स्वास्थ्य विभाग, महिला एवं बाल विकास व केजीएमयू के प्रमुख व विशेषज्ञ एक प्लेटफार्म पर आए, महिला शिक्षक, प्रधान, स्वयं सहायता समूह व आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को लीडर बनाकर समुदाय में काम करने की सिफारिश, 180 दिनों के लिए आईएफए का सेवन सुनिश्चित कराने पर जोर

लखनऊ : प्रदेश में 46 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जो माँ और बच्चे दोनों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का कारण बनती है। इस प्रदेशव्यापी जटिल समस्या से पार पाने के लिए बुधवार को स्वास्थ्य विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग व किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के प्रमुख व विशेषज्ञ एक प्लेटफार्म पर जमा हुए और मंथन कर इस नतीजे पर पहुंचे कि महिला शिक्षक, महिला प्रधान, स्वयं सहायता समूह की महिलाओं व आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की नेतृत्व क्षमता बढ़ाकर समुदाय में एनीमिया के प्रति महिलाओं को सजग किया जाए। शपथ ली गई कि मिलकर करेंगे हीमोग्लोबिन 12 के पार।

केजीएमयू व सेंटर आफ एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) के संयुक्त प्रयास से एक स्थानीय होटल में आयोजित हुई संगोष्ठी में स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव अमित घोष ने कहा कि जब हम 2047 तक देश को विकसित भारत बनाने की बात करते हैं तो एनीमिया इसमें बड़ा अवरोधक है। इस समस्या को खत्म करने के लिए शासनस्तर पर सारी व्यवस्थाएं की जा चुकी हैं। व्यवस्थाओं में जो कमी है वह हमारे प्रयासों के कारण है। उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद महिला शिक्षकों, प्रधानों, आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों व स्वयं सहायता समूह की महिलाओं से कहा कि आप सभी स्वस्थ हैं। आप सब को उन महिलाओं तक पहुंचना है जो किन्ही कारणों से स्वास्थ्य केंद्रों तक नहीं पहुंच पाती हैं। आप लोग बतौर लीडर ऐसी वंचित महिलाओं से संवाद करें।

प्रमुख सचिव महिला व बाल विकास लीना जौहरी ने प्रमुख सचिव-स्वास्थ्य की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि उनका विभाग बच्चों, गर्भवती व धात्री महिलाओं को टेक होम राशन (टीएचआर) के माध्यम से सुपोषित आहार उपलब्ध कराता है। आंगनबाड़ी केंद्र पर विशेष पोषण अभियान चलाया जाता है। इसके अलावा पोषण पाठशाला के माध्यम से समुदाय में जागरूकता की जाती है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग व महिला एवं बाल विकास विभाग की संयुक्त गाइडलाइंस के अनुसार हर बच्चे को छह माह में सात बार संपर्क कर हालचाल जानने की प्रक्रिया भी अपनाई जा रही है।

केजीएमयू की कुलपति डॉ.सोनिया नित्यानंद ने कहा कि इस मुद्दे को और जटिल बनाने वाला तथ्य यह है कि केवल 22.3% गर्भवती महिलाएं कम से कम 100 दिनों के लिए आईएफए की खुराक लेती हैं, और केवल 9.7% ही अनुशंसित 180 दिनों तक इसका सेवन कर पाती हैं। ये आंकड़े राष्ट्रीय औसत से काफी कम हैं, जो प्रदेश में हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता को उजागर करता है। उन्होंने कहा कि बच्चों (66.4%) और प्रजनन आयु की महिलाओं (50.6%) सहित अन्य कमजोर आबादी में एनीमिया की उच्च दर से समस्या और बढ़ जाती है। इससे खराब मातृ स्वास्थ्य का दुष्चक्र बनता है, जिससे कम वजन वाले शिशुओं का जन्म होता है और पीढ़ियों के बीच कुपोषण बना रहता है, जिससे राज्य की समग्र प्रगति और विकास में बाधा आती है। इस व्यापक एनीमिया के दीर्घकालिक परिणाम दूरगामी हैं, जो न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, बल्कि राज्य की आर्थिक उत्पादकता को भी प्रभावित करते हैं।

दूसरे सत्र में विशेषज्ञों ने विभाग प्रमुखों की बात को आगे बढ़ाया। क्वीनमैरी अस्पताल की विभागाध्यक्ष डॉ अंजू अग्रवाल ने कहा कि इस बहुआयामी चुनौती का समाधान करने के लिए एक व्यापक और समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें वैज्ञानिक मार्गदर्शन, निर्णायक सरकारी कार्रवाई और सक्रिय सामुदायिक भागीदारी शामिल हो। जागरूकता बढ़ाने और व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए इस सहयोगात्मक प्रयास को रणनीतिक मीडिया जुड़ाव और मजबूत वकालत अभियानों द्वारा प्रभावी ढंग से समर्थित किया जाना चाहिए। आईसीडीएस विभाग की उपनिदेशक अनुपमा सानडिल्य ने मातृ एवं शिशु पोषण में पिता की भागीदारी बढ़ाने व किशोरियों का एनीमिया टेस्ट करने की बात कही। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की संयुक्त निदेशक डॉ शालू गुप्ता ने आईएफए सप्लाई व रियल टाइम मानिटरिंग को सुदृढ़ करने की बात कही।

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