अजब-गजब

कहानी – संकट के साथी

लेखक -जंग हिन्दुस्तानी

जाड़े की सुबह थी। हल्की-हल्की धूप खिली हुई थी।जंगल के बीच मौजूद घास के मैदान में बंदरों का पूरा समूह उछल कूद कर रहा था। बंदरों के बच्चे आपस में कलाबाजी कर रहे थे। एक दूसरे को दौड़ते हुए कबड्डी कर रहे थे। उन बच्चों के के माता-पिता घास की जड़ों को निकाल कर दांतों से इस तरह से काट रहे थे जैसे लग रहा था कि दातुन कर रहे हों। पूरे मैदान में सिर्फ एक रोहिणी का पेड़ था जो इतना घना था कि उसमें छुप कर बैठा हुआ तेंदुआ उन बंदरों को दिखाई नहीं पड़ रहा था। तेंदुआ ताक में था कि इनमें से किसको अपना शिकार बनाए। बड़े बंदरों का झुंड उससे लगभग 100 मीटर की दूरी पर था। बंदरों के छोटे-छोटे बच्चे खेल कूद करते हुए उस पेड़ की तरफ बढ़ रहे थे।

कहीं से उड़ता हुआ एक कौवा उस पेड़ के पास आकर डाल पर बैठा लेकिन तेंदुए को देखकर तुरंत ही कांव-कांव करते हुए उड़ चला। उसकी आवाज से थोड़ी देर के लिए बंदरों का समूह चौकन्ना हुआ लेकिन फिर अपने काम पर लग गया। अब बंदर के एक छोटे बच्चों ने समूह से अलग होते हुए पेड़ की तरफ दौड़ लगाई। उस बच्चे की मां ने उसे ऐसा करते हुए देखा तो वह भी उसके पीछे दौड़ने लगी। तेंदुआ को लगा कि यही अच्छा मौका है और वह पेड़ से कूद कर बच्चे की तरफ दौड़ पड़ा ।उस बच्चे की मां ने छलांग मार करके बच्चे को सीने से चिपका लिया और तेंदुए से बचा लिया लेकिन खुद वह तेंदुए के चक्कर से बच नहीं सकी। तेंदुए ने उसकी पीठ को मुंह में दबा दिया और लेकर चल दिया। बच्चा अपने मां के सीने से चिपका रहा। मां ने बार-बार कहा “

भाग जा बेटा। अपनी जान बचा ले वरना मेरे साथ तू भी मारा जाएगा। बच्चे ने रोते हुए कहा- “नहीं, आपने अपनी जान जोखिम में डाल करके मुझे बचाया है तो मैं कैसे आपको इस हालत में छोड़ दूं। मेरी तो जान जा चुकी थी लेकिन आपने जो जान बचाई है उसे अब आपके साथ ही मुझे नष्ट कर देना है। आखिर यह शरीर आपका ही दिया हुआ है। मैं आपके साथ छोड़ दूंगा तो लोग कहेंगे कि बंदर भी इंसान की तरह हो गया और बंदर व इंसान में क्या अंतर रह गया? मां मैं इंसान नहीं हूं कि दुःख में अपनी मां को छोड़ दूं। मैं आपको बचाने का हर संभव प्रयास करूंगा। नहीं बचा पाया तो अपनी जान दे दूंगा, लेकिन आपका साथ नहीं छोडूंगा।” बच्चे ने जोर-जोर से आवाज लगाई तो बंदरों का सारा समूह तेंदुए की तरफ दौड़ पड़ा। बंदर के बच्चे ने तेंदुए की खोपड़ी पर बैठकर दोनों हाथों से उसकी आंख बंद कर ली।

अब तेंदुआ चारों तरफ से घिर चुका था और सारे बंदर मिलकर उसे नोच रहे थे। अंततः उसे मादा बंदर को छोड़ना ही पड़ा। यद्यपि तेंदुए की पकड़ से उस मादा बंदर की जान निकल चुकी थी लेकिन पूरा समूह को उसे नन्हे से बच्चे के मातृ प्रेम पर गर्व महसूस हो रहा था। बच्चा अब भी मां के पेट से चिपका हुआ था। समूह के साथियों ने उस मादा बंदर को अंतिम विदाई दी और उस बच्चे को अपने साथ लेकर जंगल की ओर चले गए।

(कहानी काल्पनिक है)

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