कहानी-हाथियों का परिवार
लेखक-जंग हिन्दुस्तानी
हाथियों का एक झुंड नेपाल के पहाड़ों से नीचे उतर कर उत्तर भारत में तराई के जंगल में आ चुका था। हाथियों का झुंड इसके पहले भी कई बार नेपाल से भारत में आया था।तराई की आबोहवा नेपाल के हाथियों को बहुत पसंद आ रही थी। उन के झुंड में 25-26 नर मादा हाथियों के साथ लगभग 6 बच्चे भी थे जो हाथियों के बीच में बीच में चल रहे थे। एक बुजुर्ग नर हाथी पूरे दल का नेतृत्व कर रहा था। जहां कहीं भी रास्ते में सड़क पार करना होता था तो वह सड़क पर सूंड़ में लकड़ी लेकर ट्राफिक हवलदार की तरह खड़ा हो जाता था । जब पूरा समुदाय रास्ता पार कर जाता था तब वह भी जंगल की ओर चला जाता था। पूरा यातायात बंद हो जाता था। क्या मजाल था कि कोई उनके झुंड के बीच से होकर निकल जाए।
हाथियों ने आपस में गजब का अनुशासन बना रखा था। उन्हीं हाथियों के झुंड में गज्जू नाम का एक नर हाथी था जो अक्सर अनुशासन तोड़ दिया करता था । कई बार बुजुर्ग हाथी ने उसे समझाया लेकिन उसकी समझ में नहीं आ रहा था। उसकी इच्छा जंगल में पत्तियाँ खाने के बजाए किसानों की फसल चरने में ज्यादा थी जबकि समूह के लोगों का कहना था कि हमें अपना भोजन जंगल से ही प्राप्त करना चाहिए। किसानों के खेत में नुकसान करने से हमें कोई फायदा नहीं होगा हम प्रतिदिन 3 कुंटल से अधिक चारा खाते हैं। अगर हम उनके खेतों में फसल खाने के लिए चले जाएंगे तो फिर उनके लिए तो कुछ भी नहीं बचेगा। लेकिन गज्जू परिवार के अन्य सदस्यों को भड़काते हुए कहता था कि हम कब तक जंगल की गूलर, बांस, बबूल खाते रहेंगे? खाते खाते मेरा मन ऊब चुका है। इस पर अन्य हाथियों ने भी गज्जू को धमकाया कि अगर तुमने हम लोगों का कहना नहीं माना तो हम तुम को धक्का मारकर संगठन से बाहर कर देंगे। हमारे साथ छोटे-छोटे बच्चे हैं। हमें इंसानी बस्तियों में जाने से बचना चाहिए।गज्जू को पारिवारिक सदस्यों की बात बुरी लगी लेकिन उत्तर देने के बचाए चुप रहा। हाथियों को इस जंगल में आए एक हफ्ता बीत चुका है।
आज हाथियों का पूरा झुंड गांव के किनारे से निकलता हुआ जा रहा था। गांव में लगे हुए केले के पेंडो़ को देखकर गज्जू का मन बार बार उधर जाने को कर रहा था लेकिन उसके हिम्मत नहीं हो रही थी । देर रात गांव के किनारे के जंगल में सभी हाथियों का झुंड एक जुट खड़ा था। मौका देख कर गज्जू चुपचाप झुंड से बाहर निकलकर खेतों में आ गया। पहले तो धान की लहलहाती हुई फसल को खाने में लगा और इसके बाद सीधा केले की बाग में आ गया। गांव वालों को भनक लगी तो गांव वालों ने ढोल तमाशा गोला डांटते हुए उसे दौड़ा लिया। गज्जू भागता हुआ वापस अपने झुंड में पहुंचा तो गुस्साए हाथियों ने उसे सूंड़ से मार मार कर बाहर कर दिया। गज्जू तो पहले ही अपने समुदाय से आजाद होना चाहता था । उसने सब को देख लेने की धमकी देते हुए झुंड छोड़ दिया।
परिवार से अलग होने पर झुंड के अधिकतर सदस्य उसके जाने से बहुत दुखी थे लेकिन वह ऐसे लालची और दुष्ट हाथी को अपने साथ भी नहीं रह सकते थे। झुंड से दूर होने के बाद गज्जू टस्कर हाथी बन चुका था और अकेले ही जंगल में घूमता रहता था ।अक्सर रात में खेतों में आकर के फसलों को नुकसान पहुंचाता था। कोई इंसान अकेला आता हुआ रास्ते में मिल जाता था तो उसे मार भी दिया करता था । उसे अपनी ताकत पर इतना घमंड हो गया था कि वह रास्ता चलते जिन पेड़ों की पत्तियों को खाता था उन पेंडो़ को बल पूर्वक ढहा दिया करता था। जंगल में एक दोनों की मुलाकात आपस में कई बार हुई लेकिन कोई बातचीत नहीं हुई। एक छोटा सा किशोर हाथी हाल-चाल लेने के लिए तस्कर हाथी के पास पहुंचा तो और पूछा-
“कैसे हो चाचाजी”
गज्जू हाथी ने कहा- हम तो बिल्कुल ठीक हैं। जहां मेरा मन होता है वहां जाते हैं और जो मन में आता है वह खाते हैं। देखो मैं कितना दुबला पतला था और आप कितना तंदुरुस्त हो गया हूं।
पूरी आजादी है भतीजे।
“अकेले मन लगता है चाचा जी”
“अरे भतीजे अकेले में रहने का मजा ही कुछ और है। तुम कब उस खडूस मुखिया के परिवार से बाहर आ रहे हो?”
उस छोटे हाथी ने कोई जवाब नहीं दिया और सिर्फ इतना कहा कि चाचा अपना ख्याल रखना।
इसके बाद कुछ दिनों के बाद नर हाथियों का झुंड लगभग सैकड़ों किलोमीटर तक जंगल में घूमने के चला गया।
आज छःमाह बाद वापस नेपाल पहाड़ की तरफ हाथियों का झुंड चल पड़ा है। पूरा झुंड वापस नेपाल की ओर जाने के लिए सीमा के जंगल को पार कर रहा है। अचानक एक आवाज पर सभी हाथी पूर्व की तरफ दौड़ चले।वहाँ पहुंचने पर देखा कि एक बाघिन तथा उसके तीन बच्चे तालाब के चारों ओर खड़े हैं। तालाब की दलदल में गज्जू फंसा हुआ था और निकलने की जितना कोशिश करता था उतना ही धंसता हुआ चला जा रहा था। करीब पहुंच कर जब झुंड ने देखा तो गज्जू को देखकर पूरी झुंड ने मुंह मोड़ लिया और वापस होने लगे। गज्जू पुरे झुंड से माफी मांगते हुए मदद की गुहार लगा रहा था।लेकिन हाथी वापस जा रहे थे तभी अचानक झुंड के बीच हाथी के छोटे से बच्चे ने आगे निकलते हुए घूमकर के सब को रोक लिया और कहने लगा कि मैं मानता हूं कि चाचा हमारे दुष्ट प्रकृति के हैं और वह हम सभी के संगठन से बहुत दूर रह चुके हैं लेकिन आज वह मुसीबत में हैं हमें उनकी मदद करना चाहिए। छोटू की बात को सुनकर
ना चाहते हुए भी हाथियों का काफिला वापस लौट पड़ा और जोर जोर की आवाज करते हुए तालाब की तरफ दौड़ा तो बाघिन और उसके बच्चे भाग खड़े हुए ।
काफी जद्दोजहद के बाद सूंड से सूंड़ फंसाकर गज्जू को बाहर निकाल लिया। गज्जू क्षमायाचना की मुद्रा में परिवार के सामने झुका हुआ था और रो रहा था। भविष्य में कभी भी गलती न करने की कसम भी खा रहा था ।सभी हाथियों ने उसे माफ़ करते हुए अपने पुनः झुंड में शामिल कर लिया और सकुशल पूरा परिवार लेकर वापस नेपाल की ओर चले गये।
(कहानी काल्पनिक है)