दस्तक-विशेष

कहानी -मेंढक और सांप

लेखक- जंग हिन्दुस्तानी

पहाड़ से आने वाली नदी में तेज रफ्तार से पानी बह रहा था। इस पानी में एक पहाड़ी सांप भी बह रहा था जो बुरी तरह घायल हो चुका था। तमाम पत्थरों से टकराते टकराते उसके शरीर की खाल तक निकल चुकी थी। सिर्फ उसके शरीर में प्राण शेष था जो पता नहीं कहां पर अटका हुआ था। अब सांप पानी की रफ्तार के साथ बह रहा था और बचने का कोई प्रयास नहीं कर रहा था। बहते बहते वह उस जगह पर जा करके फंस गया जहां पर शिकारियों ने मछली फसाने के लिए जाल लगाया हुआ था। रात भर जाल में फंसा रहा और जब उसे होश आया तो उसने देखा कि उसी जाल के उपर एक मेढक बैठा हुआ है। मेंढक काफी बड़ा दिखाई पड़ रहा था।उसने सोचा कि जब प्राणों पर संकट हो तो दुश्मन से भी मदद मांग लेनी चाहिए। उसने मेढ़क से अनुनय विनय करते हुए कहा कि “वह उसे जाल से आजाद करा दे और उसके प्राणों की रक्षा करे। सुबह होते ही जब शिकारी आएंगे और उसे जाल में फंसा देखेंगे तो उसका प्राण ही ले लेंगे।” मेंढक को उस दुबले पहले सांप पर तरस आ गया और कहा “भाई तुम खुद जाल को काटने का प्रयास करो अगर सफलता मिल गई तो आप के प्राण बच जाएंगे।”

सांप ने कहा “भाई तुम्ही कुछ प्रयास करो, मेरे तो दांत इतने काम के नहीं हैं कि मैं उनसे इस मजबूत सूत को काट सकूं।” मेंढक ने कहा “ठीक है मैं प्रयास करता हूं”और इसके बाद वह जाल को काटने का प्रयास करने लगा। काफी देर के बाद सफलता मिल गई और सांप बाहर निकल आया। मैंढक सांप की पूछ को पकड़कर पानी की धार को काटते हुए किनारे पर ले आया। यहां पर उसने नदी के किनारे पर रहने वाले अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलवाया। सभी सदस्य सांप को देखकर डर गए और कहने लगे ” इन से हमारी दोस्ती नहीं हो सकती क्योंकि यह हमारे जन्मजात दुश्मन हैं। इस समय मौका अच्छा है हमें इन्हें मार कर तुरंत खा लेना चाहिए।”

मेंढक में डांटते हुए कहा- ” एक तो वैसे ही इनका पूरा शरीर टूट चुका है किसी तरह इनके प्राण बचे हैं ऊपर से आप लोग ऐसी बात कर रहे हो। हो सकता है कि उनके खानदान में किसी से हमारा दुश्मनी रहा हो लेकिन कोई जरुरी नहीं की हर सांप हमारा दुश्मन हो। हमें संकट के इस छण में इनकी मदद करना चाहिए।”

मेढ़क परिवार में काफी बड़ा था और बुजुर्ग भी। इस नाते बाकी सदस्यों ने उसकी बात को नहीं टाला और सब लोगों ने मिलकर कई महीनों तक उस दुबले पतले सांप की सेवा की । सांप चुपचाप बिल में पड़ा रहता था और मेढ़क का परिवार उसके लिए भोजन लेकर आता था। अब सांप पूरी तरह तंदुरुस्त हो चुका था और आलसी भी। पुराने दुख दर्द भूल चुका था। मेंढक के बच्चे सांप के साथ खेलते रहते थे।बड़े मेंढक को विश्वास हो गया था कि सांप किसी प्रकार से कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहा था।अतः वह बिल्कुल निश्चिंत हो गया था ।

एक दिन मेंढक सांप को अपना परिवार सौंप करके जल यात्रा पर चला गया। इधर सांप ने सोचा कि अब मेंढक वापस नहीं आएगा इस नाते उसने एक एक करके धोखे से पूरे परिवार को खाकर समाप्त कर दिया। इसी बीच अचानक जब मैंढक वापस आया तो उसने अपने परिवार के सदस्यों के बारे में सांप से पूछा तो सांप ने बताया कि सभी सदस्य जलयात्रा पर गए हुए हैं। सांप की बात पर मेंढक को विश्वास नहीं हुआ। उसने बिल के बाहर पड़ी हुई हड्डियों को सूंघकर देखा तो उसे विश्वास हो गया कि सांप की ही यह करामात है।उसने बेफिक्र होकर परीक्षा लेने के और सच जानने के उद्देश्य से सांप से कहा ” मेरे परिवार के सदस्य मेरे काबू में नहीं हैं।कोई उन्हें मार डाले तो कोई गम नहीं।सब धोखेबाज हैं इसलिए जब वह लौट करके वापस आएं तो तुम उन्हें खा लेना।”

सांप ने कहा “हम आपकी चिन्ता को समझते थे इसीलिए हमने आपके आने के पहले ही उन्हें खा लिया है। अब आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।नया परिवार बसाइए।” इतना सुनते ही मेंढक ने मन में कहा कि मेरा शक सही निकला इसने तो मेरा वंश विनाश ही कर दिया है। इसे तरकीब से मारना चाहिए। मेंढक ने कहा कि आज मैं बहुत खुश हूँ। तुमने बहुत अच्छा काम किया है। आंख बंद करो। मैं तुम्हारा मुंह चूमना चाहता हूँ। सांप ने जैसे ही आंख बंद करके मेंढक की ओर मुंह किया मेंढक ने पूरे गुस्से से उसके मुंह को अपने मुंह में दबा लिया और तब तक दबाए रहा जब तक सांप की मौत नहीं हो गई। आज मेंढक अकेला हो गया है। उसको इस बात पर अफसोस हो रहा था जब उसने उस सांप की जाल में फंसे होने पर मदद क्यों की थी?

(कहानी काल्पनिक है।)

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