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अहोई अष्टमी पर गणेशजी की कथा

नई दिल्ली : अहोई अष्टमी का व्रत माता संत की सलामती और लंबी उम्र के लिए पूरे दिन करती हैं और शाम को सूर्य अस्त होने के बाद निश्चय को अर्घ्य देकर यह व्रत पूरा करती हैं। अहोई अष्टमी के व्रत में अहोई माता की कथा गणेशजी के साथ इस खेड वाली की कथा का पाठ करना भी आवश्यक है।

अहोई अष्टमी पर गणेशजी की कहानी एक दिन जी महाराज चुटकी में चावल और गणेश दूध लेकर घूम रहे थे कि कोई मेरी खेड बना दो। सबने छोटा सा सामान देखकर मना कर दिया। तो एक बुढ़िया बोली – ला बेटा मैं तेरी रोटी बना दूं और वह कटोरी ले आई। तो गणेश जी बोले कि बुढ़िया माई कटोरी टॉप लेकर क्यों आई। अब बुढ़िया माई टॉप लेकर आई और जैसे ही गणेशजी ने एक छमाछमा दूध डाला तो वह दूध से भर गया। गणेश जी महाराज बोले कि मैं बाहर आता हूं। जब तक तू खेड रख ले। खेड तैयार हो गया।

अब बुढ़िया माई की बहू के मुंह में पानी आ गया। वह दरवाज़े के पीछे खेड खाने लगी तो खेड का एक छींटा ज़मीन पर गिर गया। गणेश जी का भोग लग गया। थोड़ी देर बाद बुढिया गणेश जी की पूजा हुई। तो गणेश जी बोले- बुढ़िया माई तो भोग लग गया। जब तेरी बहू ने दरवाज़े के पीछे देखा तो एक छींटा ज़मीन पर चढ़ गया था सो मेरा तो भोग लग गया।

तो बुढ़िया बोली- बेटा! अब यह क्या करूँ। गणेश जी बोले- सारी खेड अच्छे से खा-पीकर बिस्वाँट दे और बच्चा तो थाली में टाँके पर रख दे। शाम को गणेश महाराज आएं और बुढ़िया को बोलें कि बुढ़िया मेरी खेद दो। बुढ़िया खेड लिया गया तो उस थाली में मोती मोती हो गया। गणेश जी महाराज ने जैसा धन-दौलत बुढ़िया को दिया वैसा ही सभी को बताएं।

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