कहानी- सेमल और सागौन
लेखक- जंग हिन्दुस्तानी
गांव में वृक्षारोपण का कार्यक्रम चल रहा था । ट्राली में तमाम तरह के पौधे रखे हुए थे जिन्हें लगाने की तैयारी चल रही थी।रखे हुए पौधों के मन में यह बात चल रही थी कि पता नहीं कौन सी जमीन पर मुझे स्थापित किया जाएगा और पड़ोसी कौन होगा? सब जानते थे कि पड़ोसी अच्छा नहीं मिला तो किसी दिन वह खुद डूबेगा और दूसरे को भी लेकर डूब जाएगा।
थोड़ी देर में पौधे उतारे गए और खाली पड़ी जमीन में उन्हें लगाकर के पानी दे दिया गया। लोगों ने फोटो खिंचवाया और चले गए। सेमल ने देखा कि उसके पड़ोस में सागौन का पौधा लगाया गया था जो सूख रहा था।सेमल ने जान पहचान बढ़ाने के उद्देश्य से सागौन से कहा- भाई ,सूख क्यों रहे हो ?
सागौन ने कहा- जिन लोगों ने मुझे यहां लाकर लगाया है वह दोबारा पानी लेकर कब आएंगे।एक बार पानी दिया था। मैं उनके सहारे हूं कि वह दोबारा पानी देने आएंगे।
सेमल ने कहा – अब भाई उनका इंतजार मत करो, वह फोटो खिंचवा कर चले गए। वह दोबारा हमारे पास नहीं आएंगे। हमें अपने बलबूते अपने जीवन की रक्षा करनी होगी । आकाश की तरफ देखने के बजाय जमीन की तरफ देखो। देखो भाई, अब तो जीवन के अंतिम क्षणों तक हम दोनों को साथ साथ रहना होगा। हम लोग एक दूसरे से सीखेंगे और आपसी तालमेल से जीवन की यात्रा पूरी करेंगे। सागौन ने कहा- भाई, हमारे साथ धोखा हुआ है। हमारी पूरी बिरादरी नर्सरी में हमारे साथ रहती थी। हम तो समझते थे कि हमें हमारे बिरादरी के लोगों के साथ ही रखा जाएगा लेकिन यहां पर अब हमें दूसरी बिरादरी के साथ रहना पड़ेगा। लकड़ियों में मैं ऊंची जाति वाला हूं। मुझे अब छोटी जाति के पेड़ो के साथ रहना पड़ेगा। सेमल को सागौन की जातिवादी सोच से बड़ा दुख हुआ।
खैर,समय के साथ दोनों बढ़ते चले गए । एक स्थान पर एक ही वातावरण में रहने के बावजूद दोनों के आपसी विचार अलग-अलग थे।
एक दिन सेमल ने सागौन से कहा – मुझे देख कर अपनी ऊंचाई बढ़ाने में ही ध्यान मत दो कुछ गहराई और अपनी जड़ों की ओर भी ध्यान दो।
सागौन ने कहा- मुझे पता है कि मेरे तेजी से बढ़ने की इच्छा से आपको जलन हो रही है।
सेमल ने कहा -ऐसा क्यों सोचते हो भाई ! मैं तुम्हें मजबूत देखना चाहता हूं।
सागौन ने कहा – मेरी तो किस्मत ही फूटी थी जो मुझे बिरादरी से अलग करके तुम लोगों के साथ में लाकर के रोप दिया गया।
सेमल जब भी सागौन को समझाने की कोशिश करता , सागौन हमेशा उल्टी दिशा में ही सोचता था।
दिन बीते जा रहे थे। दोनों ही युवावस्था में पहुंच चुके थे।
जेठ महीने की दुपहरी थी। अचानक तेज हवाओं का चलना शुरू हो गया। देखते देखते तेज आंधी आ गई । आसमान काला हो गया। आंधी ने सेमल और सागौन दोनों पेड़ों को खूब झकझोरा। गहरी जड़ों के कारण सेमल का तो बाल बांका नहीं हुआ लेकिन कमजोर जड़ों के कारण सागौन जड़ से उखड़ कर सेमल के पेड़ पर जा गिरा।
सेमल की मजबूत बांहों ने सागौन को जमीन पर गिरने नहीं दिया।
आंधी के चले जाने के बाद सागौन अपनी दुखद स्थिति पर जोर जोर से रोने लगा तो सेमल ने सागौन को समझाते हुए कहा- मैं इसी दिन के लिए तुम्हें तैयार कर रहा था, लेकिन तुमने अपनी जड़ों की ओर ध्यान नहीं दिया। चलो, कोई बात नहीं, मैं तुम्हारा एक पड़ोसी हूं और एक अच्छा पड़ोसी होने के नाते मैं जीवन भर मैं तुम्हें जमीन पर गिरने नहीं दूंगा। तुम मेरी बाहों में आराम से रह सकते हो।
सेमल की बात को सुनकर सागौन के दिल को बहुत संतोष पहुंचा और उसने अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की।
मजबूत जड़ों के कारण आज भी सेमल सीना ताने खड़ा है और सागौन भी उसके सहारे हरा भरा है। जो भी देखता है वही कहता है कि पड़ोसी हो तो ऐसा ही हो।
(कहानी काल्पनिक है।)