कहानी – बाघ और बन्दर
![](https://dastaktimes.org/wp-content/uploads/2022/10/WhatsApp-Image-2022-10-05-at-8.51.46-AM.jpeg)
लेखक- जंग हिन्दुस्तानी
सारी रात जंगल में घूमने के बाद वापस आकर बाघ घने जंगल के बीच लैंटाना की झाड़ियों से घिरे हुए गुफा जैसे दिखने वाले स्थान पर आकर सो गया।आज रात उसे शिकार भी नहीं मिला था। सुबह हो गई थी। सूरज निकल आया था और जंगली जानवर इधर से उधर भोजन की तलाश में निकल रहे थे। एक लंगूर बंदर जो स्वभाव से बहुत आजाद प्रवृत्ति का था और बिना किसी डर भय के जंगल में अकेले ही घूमता रहता था। जहां बाघ सोया हुआ था बंदर उधर से होकर गुजरा। बाघ को सोते हुए देख कर के उसने चुपके से जाकर उसकी पूंछ पकड़कर खींची और पेड़ पर चढ़ गया। बाघ ने आंख खोलकर देखा तो ऊपर बंदर बैठा नजर आया। बंदर ने कहा-” मैंने आलसी तो बहुत देखे लेकिन तुम्हारे जैसा नहीं देखा। सूरज निकल आया है लेकिन अभी तक तुम सो रहे हो। अपने आप को जंगल का राजा कहते हो और इस तरह से सोते हो?”
बाघ उसकी बात को अनसुनी करते हुए सोने का प्रयास कर रहा था लेकिन बंदर अपनी बकवास छेड़े ही जा रहा था। बंदर ने कहा “जो लोग सुबह ब्रह्म मुहूर्त में नहीं जागते हैं वह जीवन में कभी तरक्की नहीं कर पाते हैं। इसलिए उठो और पराक्रम करो” सोते हुए बाघ के मुंह में कभी हिरण नहीं आएगा।”बाघ बंदर के प्रवचन को आंख मूंदकर सुनता रहा। उसकी एक एक बात बाघ के दिल को चुभ रही थी उसके मन में आ रहा था कि बन्दर को पकड़कर जान से मार दे लेकिन पतले पेड़ पर बैठे होने के नाते वह बंदर के साथ कोई प्रयोग नहीं करना चाहता था। उस पर चढ़ना और बन्दर को पकड़ पाना बाघ के बस से बाहर था इसलिए बाघ सोने का नाटक करता रहा।
एक बार पुनः बंदर ने नीचे उतर कर उसकी पूंछ खींची। बाघ ने कहा- “गुरूदेव , आपके जैसा गुरु अगर मुझे बचपन में मिला होता तो मैं भी सुबह उठता। इस तरह से आलस करके सोने की आदत हमारी जो पड़ चुकी है, वह कभी नहीं पड़ती। लेकिन तुम बहुत देर में मिले। अब तो मैं बुजुर्ग हो गया हूं चल फिर भी नहीं पाता इसलिए आराम कर रहा हूं।” “कृपा करके अगर आप मेरा गुरु बन जांए तो मैं धन्य हो जाऊंगा।” बाघ की बात को सुनकर बंदर बहुत खुश हुआ और मन ही मन गर्व से फूल गया। जीवन में पहली बार किसी ने उसके हुनर को पहचाना था। यह वानर जाति के इतिहास में भी पहली बार था कि जब वह किसी बात का गुरु बनने जा रहा था।
बाघ ने कहा-” गुरूदेव! देर न करो, अब मैंने आपको अपने मन से गुरु मान लिया है।अब जल्दी से आ कर गुरु मंत्र दे दो। मेरे कान मैं आपके गुरु मंत्र पढ़ते ही मैं ऊर्जावान हो जाऊंगा और मेरे शरीर का आलस्य समाप्त हो जाएगा। आप जैसा उपदेशक और महान गुरू मुझे कहां मिलेगा।” बंदर ने कहा ” मैं सभी को अपना चेला तो नहीं बनाता हूं लेकिन आप जंगल के राजा हैं इस नाते आपको चेला बना कर मुझे बहुत खुशी होगी। इतना कह कर के बंदर उतर कर के बाघ के कान के पास पहुंचा। बाघ तो इसी मौके की तलाश में ही था। उसने तुरंत झपट्टा मारकर दबोच लिया। बाघ ने कहा – मूर्ख बंदर, बंदर चाहे जितना बड़ा ज्ञानवान बन जाए बाघ का गुरु नहीं बन सकता। आज तुम ब्रह्म मुहूर्त में जागे थे । उसका लाभ देने जा रहा हूं। पहले दान दक्षिणा देता हूँ फिर गुरू मंत्र लुंगा।” बाघ ने एक ही झटके में बंदर का काम तमाम कर दिया और बैठे बैठाए अपनी भूख मिटाकर फिर सो गया।
(कहानी काल्पनिक है)