सुप्रीम कोर्ट ने ” वेश्यावृत्ति ” को एक पेशा माना, दिए 6 सूत्री दिशा निर्देश
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने एक अहम फैसला देते हुए वेश्यावृत्ति को एक प्रोफेशन ( व्यवसाय या पेशा) माना है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पुलिस इसमें दखलंदाजी नहीं कर सकती और न ही सहमति से यह कार्य करने वाले सेक्स वर्करों के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकती है। शीर्ष कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सेक्स वर्कर भी कानून के समक्ष सम्मान व बराबरी के हकदार हैं।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने साफ शब्दों में कह दिया है कि स्वैच्छिक वेश्यावृत्ति अवैध नहीं है। केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि जब यह स्पष्ट हो जाए कि सेक्स वर्कर वयस्क है और सहमति से इस पेशे में शामिल है तो पुलिस को हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए छह सूत्रीय दिशानिर्देश :
- सेक्स वर्कर या यौनकर्मी कानून के तहत समान संरक्षण के पात्र हैं।
- आपराधिक कानून सभी मामलों में उम्र और सहमति के आधार पर समान रूप से लागू होना चाहिए।
- जब यह स्पष्ट हो जाए कि यौनकर्मी वयस्क है और सहमति से इस पेशे में भाग ले रही है तो पुलिस को हस्तक्षेप या कार्रवाई से बचना चाहिए।
- देश के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन का अधिकार है।
- सेक्स वर्करों को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए और न ही दंडित किया जाना चाहिए।
- वेश्यालयों पर छापा मारते वक्त उनका उत्पीड़न नहीं होना चाहिए।
- सेक्स वर्कर के बच्चे को सिर्फ इस आधार पर मां से अलग नहीं किया जाना चाहिए कि वह देह व्यापार में है। मानवीय शालीनता और गरिमा की बुनियादी सुरक्षा सेक्स वर्करों और उनके बच्चों के लिए भी है।
कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को सहमति से सेक्स करने वाली महिलाओं और पुरुषों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। इस दिशा में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और यूनियन टेरटरीज को आदेश दिया है कि सेक्स वर्कर्स के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।