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छात्राओं कें लिए मुफ्त सैनिटरी पैड के मामलेे में राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस दिया, जिन्होंने स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए मासिक धर्म स्वच्छता पर एक समान राष्ट्रीय नीति के गठन पर जवाब दाखिल नहीं किया।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने चेतावनी दी कि उनके निर्देश का पालन करने में असफल राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। केंद्र ने सूचित किया था कि अब तक केवल चार राज्यों ने जवाब प्रस्तुत किया है। पीठ देश भर के सरकारी स्कूलों में कक्षा 6 से 12 तक पढ़ने वाली लड़कियों को मुफ्त सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि अब तक केवल दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पास जवाब दाखिल किए हैं। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, “निर्दिष्ट समय के भीतर अदालत के आदेश का पालन करने में विफलता हमें कानून के कठोर हथियार का उपयोग करने के लिए मजबूर करेगी।”

हालांकि, एएसजी के सुझाव पर कोर्ट ने बाकी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को 31 अगस्त तक अपना जवाब दाखिल करने की इजाजत दे दी। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए मासिक धर्म स्वच्छता के संबंध में एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने के लिए सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ समन्वय करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण सचिव को नोडल अधिकारी नियुक्त किया था। इसने केंद्र सरकार से मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने और देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए एक मॉडल विकसित करने के लिए भी कहा था।

मध्य प्रदेश की डॉक्टर जया ठाकुर द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि 11 से 18 वर्ष की आयु वर्ग की किशोर लड़कियां, जो गरीब पृष्ठभूमि से आती हैं, उन्हें शिक्षा तक पहुंच की कमी के कारण शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 ए के तहत एक अधिकार है और यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत मुफ्त और अनिवार्य है।

याचिका में कहा गया, “ये किशोर लड़कियां खराब आर्थ‍िक हालत व अजागरूकता के कारण स्‍वच्‍छता से वंचित रहती है, इसके कारण इन्‍हें बीम‍ारियां भी होती हैं और इन्‍हें स्‍कूल भी छोड़ना पड़ता है।”

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