सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पलटा, मौत की सजा पाए व्यक्ति को किया बरी
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा पाए एक कैदी को बरी कर दिया। इस व्यक्ति पर अपनी बच्ची समेत परिवार के सदस्यों की हत्या करने का आरोप था। अदालत ने कहा कि किसी आरोपी को केवल संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने दोषी के पड़ोसी की गवाही को खारिज कर दिया। पड़ोसी ने कहा था कि दोषी और उसके परिवार के सदस्यों मां और पत्नी के बीच कथित तौर पर झगड़े होते थे।
पीठ ने कहा, ‘‘यह स्थापित कानून है कि संदेह, चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, उचित संदेह से परे सबूत का स्थान नहीं ले सकता। किसी अभियुक्त को केवल संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। किसी अभियुक्त को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उसे उचित संदेह से परे दोषी साबित न कर दिया जाए।” पीठ ने निचली अदालत और बम्बई हाईकोर्ट के फैसलों में दी गई मौत की सजा को खारिज कर दिया। गवाही पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने घटना के दिन से पड़ोसी के बयान को दर्ज करने में छह दिन की देरी की ओर ध्यान दिलाया और साथ ही यह भी कहा कि इसकी पुष्टि करने वाला कोई नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवाही से यह साबित नहीं होता कि पड़ोसी ने घटना देखी थी या नहीं। पीठ ने कहा कि गवाह की गवाही के अभाव में मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य का होगा। उच्चतम न्यायालय ने अभियोजन पक्ष द्वारा दोषी पर अपराध के लिए लगाए गए आरोप को भी खारिज कर दिया। महाराष्ट्र के पुणे जिले के रहने वाले विश्वजीत कर्बा मसकलर को अपने परिवार के सदस्यों की कथित तौर पर हत्या करने के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी, क्योंकि परिवार के सदस्यों ने उसकी दूसरी महिला से शादी करने की इच्छा पर आपत्ति जताई थी।
पड़ोसी की गवाही के अनुसार उसने अपनी पत्नी को तलाक देने का फैसला कर लिया था। विश्वजीत ने चार अक्टूबर 2012 को पुलिस नियंत्रण कक्ष को अपने घर पर डकैती की सूचना दी थी तथा बताया था कि उनकी मां, पत्नी और बेटी की हत्या कर दी गई है तथा कुछ नकदी और आभूषण चोरी हो गए हैं। पुलिस ने हालांकि उसे हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था।