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SC-ST को पदोन्नति आरक्षण पर बनी रहेगी मौजूदा स्थिति -सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति में आरक्षण (Reservation in promotion) देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश नहीं दिया। सर्वोच्च अदालत ने कहा, इस पर केंद्र या राज्य सरकारें ही फैसला करें। हम अपनी तरह से कोई पैमाना तय नहीं करेंगे। कोई भी फैसला करने से पहले उच्च पदों पर नियुक्ति का आंकड़ा जुटाना जरूरी है। यानी वस्तु स्थिति बरकरार रहेगी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 6 बिंदू तय किए हैं। अब अलग-अलग मामलों में इन बिंदुओं के आधार पर देखा जाएगा कि केंद्र या राज्य सरकार ने क्या किया है। ऐसे मामलों की सुनवाई अब 24 फरवरी से होगी।

जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा, पहले के फैसलों में तय आरक्षण के प्रावधानों और पैमानों को हल्के नहीं किए जाएंगे. हालांकि, कोर्ट ने कहा, केंद्र और राज्य अपनी अपनी सेवाओं में एससी एसटी के लिए आरक्षण के अनुपात में समुचित प्रतिनिधित्व को लेकर तय समय अवधि पर रिव्यू जरूर करेंगे. प्रमोशन में आरक्षण से पहले उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना जरूरी है.

अक्टूबर 2021 में फैसला रखा था सुरक्षित

सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अधिकारियों- कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इससे पहले केंद्र ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यह जीवन की सच्चाई है कि आजादी के करीब 75 साल बाद भी SC-ST के लोगों को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया गया.

सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा था कि एससी और एसटी से संबंधित लोगों के लिए समूह ए श्रेणी की नौकरियों में उच्च पद प्राप्त करना अधिक कठिन है. लेकिन अब समय आ गया है जब शीर्ष अदालत को रिक्तियों को भरने के लिए एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए कुछ ठोस आधार देने चाहिए.

शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह SC और ST को पदोन्नति में आरक्षण देने के अपने फैसले को फिर से नहीं खोलेगा क्योंकि यह राज्यों को तय करना है कि वे इसे कैसे लागू करते हैं.

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