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बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, दोषियों की रिहाई पर SC में 2 मई को सुनवाई

नईदिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस मामले में कैद के दौरान दोषियों को पैरोल दिए जाने पर मंगलवार को सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि अपराध की गंभीरता पर राज्य की ओर से विचार किया जाना चाहिए था। जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की बेंच बिलकिस मामले की सुनवाई कर रही है। पीठ ने मंगलवार को कहा कि जब समाज को बड़े पैमाने पर प्रभावित करने वाले ऐसे जघन्य अपराधों में छूट देने पर विचार किया जाता है, तो सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए शक्ति का प्रयोग होना चाहिए। जस्टिस जोसेफ ने कहा, ‘सवाल है कि क्या सरकार ने अपना दिमाग लगाया। आखिर किस सामग्री को इस फैसले का आधार बनाया गया। (न्यायिक) आदेश में दोषियों को उनके प्राकृतिक जीवन के लिए जेल में रहने की आवश्यकता है। आज यह महिला (बिलकिस) है तो कल यह आप या मैं भी हो सकते हैं। वस्तुनिष्ठ मानक होने चाहिए। अगर आप हमें कारण नहीं बताते हैं तो हम अपने निष्कर्ष निकालेंगे।’

एससी ने यह भी कहा कि ‘सेब की तुलना संतरे से नहीं की जा सकती’, इसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती। न्यायालय ने बिलकिस बानो मामले में दोषियों को छूट देने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए अगली तारीख 2 मई तय की। मालूम हो कि यह पीठ दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इनमें खुद पीड़िता की ओर से दायर याचिका भी शामिल है। जस्टिस जोसेफ ने कहा, ‘वेंकट रेड्डी के मामले में कानून निर्धारित है। इसमें ‘अच्छा आचरण’ होने के कारण छूट देने को अलग रखा गया। इसके लिए बहुत उच्च मापदंड होने चाहिए। भले ही शक्ति मौजूद हो, कारण भी दिए जाने की जरूरत होती है।’

गुजरात में 2002 के दंगों के बिलकिस बानो मामले में उम्रकैद की सजा पाने वाले सभी 11 आरोपियों को दोषी ठहराया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात सरकार की ओर से गया कि इस समय राज्य में प्रचलित माफी नीति के तहत रिहा किया गया। शीर्ष अधिकारी ने मामले में केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के उल्लंघन के दावों को खारिज कर दिया था। गुजरात सरकार के गृह विभाग के सीनियर अधिकारी का यह बयान विपक्ष के उन दावों के आलोक में आया, जिसमें दोषियों को माफी केंद्र के दिशानिर्देश का उल्लंघन बताया गया। विपक्ष का कहना था कि गोधरा दंगा के बाद गर्भवती बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात अन्य सदस्यों की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषियों को माफी केंद्र के दिशानिर्देश का उल्लंघन है।

पिछले साल जून में केंद्र सरकार ने आजादी का अमृत महोत्सव के जश्न के मद्देनजर कैदियों की रिहाई से संबंधित विशेष दिशानिर्देश राज्यों को जारी किए थे। इसमें बलात्कार के दोषियों के लिए समय पूर्व रिहाई की व्यवस्था नहीं थी। हालांकि, गुजरात के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजकुमार के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि वह राज्य की माफी नीति के तहत इन 11 दोषियों की समय पूर्व रिहाई पर विचार करे, जो उस वक्त प्रभावी था, जब निचली अदालत ने ममाले में उन्हें दोषी ठहराया था।

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