दस्तक-विशेष

कोदा, झंगोरा से बनी मिठाइयां, स्वाद और सेहत का अनमोल खजाना

कोदा झंगोरा की बर्फी/ मिठाई।।
जी हां आज बात करते हैं कोदा,झंगोरा, मंडुवा, चुकंदर और लौकी की बर्फी और मिठाई की।
आजतक सभी ने झंगोरा की खीर के बारे में ही सुना होगा। लेकिन अपना उत्तरकाशी इससे दो कदम आगे निकल चुका है।
इधर अलग राज्य उत्तराखण्ड के आंदोलन में
“कोदा झंगोरा खायेंगे उत्तराखण्ड बनाएंगे”का नारा भी साकार हो गया। राज्य भी मिल गया और कोदा झंगोरा को राष्ट्रीय के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय पहचान भी मिल गई।
बात करते हैं फिर से मोटे अनाज की मिठाइयों की।
नागथली मणि,
जी हां उत्तरकाशी से चिन्यालीसौड़ से मणि कुमराड़ा होते हुए देहरादून के लिए जाते हुए एक छोटा सा स्टेशन है नागथली मणि। इसी छोटे से बाजार में मिठाई चाय की एक दुकान में जब मैं चाय पीने के लिए रुका तो मिठाई के काउंटर पर सजी मिठाइयों पर उनके नाम के बोर्ड लगे थे। गौर से देखा तो कोदा की बर्फी, झंगोरा की बर्फी, लौकी की बर्फी, चुकंदर की बर्फी के साइन बोर्ड देखकर मैं हतप्रभ था। लेकिन दुकान इन्ही मोटे अनाज से बनी मिठाइयों से सजी थी। लोग भी आ रहे थे और इन मोटे अनाज से बनी मिठाइयों को खरीद भी रहे थे और मौके पर खा भी रहे थे।

उत्सुकता बस मैंने भी इन मोटे अनाज से बनी मिठाई के बारे में दुकान के मालिक श्री दयाल सिंह कोतवाल जी ने इनके बारे में विस्तार से बताया।।देश में ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), जौ, कोदो, झंगोरा, कौणी, मार्शा, चीणा, सामा, बाजरा, सांवा, लघु धान्य या कुटकी, कांगनी और चीना फसलों को मोटे अनाज के तौर पर जाना जाता है।

आदिकाल से अपने पहाड़ में मोटे अनाज की भरमार हुवा करती थी। लेकिन तब मोटे अनाज को खाने वालों को लोग दूसरे दर्जे का मानते थे ये धारणा थी समाज की। मोटे अनाज की उपयोगिता और इसके गुणों से ज्यादा विंज्ञ नही थे लोग। जानकारी का अभाव भी था।। समय के साथ साथ मोटे अनाज की पैदावार भी कम होने लगी क्योंकि लोगों ने मोटे अनाज की जगह दूसरी फसलों को तबज्जो देना शुरू कर दिया और समाज की धारणा के अनुसार लोग चावल धान की फसल की ओर बढ़ गए।

समय फिर लौट के आया और स्वस्थ स्वास्थ्य के लिए मोटे अनाज के भरपूर गुणों से लोग परिचित हुए। फिर से बाजार में इस पहाड़ी मोटे अनाज की भारी मांग होने लगी। लेकिन इस दौर के आते आते मोटा अनाज बाजार से भी गायब था और खेतों से भी। बाजार में मोटे अनाज की डिमांड मांग ज्यादा होने लगी तो मोटा अनाज फिर से खेतों में लौटने लगा। ग्रामीण भी मोटे अनाज की फसलों को उगाने में रुचि दिखाने लगे।। आज पहाड़ों के बाजार से मोटा अनाज प्राप्त करना भी अपनेआप में एक चमत्कार है। बाजार में मोटा अनाज कम और मांग ज्यादा है। इधर मोटे अनाज ने समूचे देश में जगह बना ली है।

दुनियाभर में आज मोटे अनाज में स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक फायदेमंद होने के प्रमाणों से इसके प्रति लोगों का भारी आकर्षण बढ़ा है। अपने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के अथक प्रयासों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2023 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने मोटे अनाज का वर्ष घोषित किया है। दरअसल मार्च 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा भारत की ओर से पेश एक प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया था जिसके तहत वर्ष 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ (International Year of Millets) घोषित किया गया है। इस प्रस्ताव का 70 से अधिक देशों ने समर्थन किया था।

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने एक बार फिर सभी का ध्यान मोटा अनाज की तरफ आकर्षित किया। प्रधानमंत्री जी ने बीजेपी की संसदीय दल की बैठक में सभी सांसदों को मोटा अनाज खाने की सलाह दी। इतना ही नहीं इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि जी20 की बैठकों में भी मोटा अनाज के व्‍यंजन ही परोसे जाएंगे। यह पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री ने मोटा अनाज की तारीफ की हो। इससे पहले भी उन्होंने अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ के जरिए मोटा अनाजों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए लोगों से अपील की थी। मोटा अनाज तासीर में गर्म होते हैं। ऐसे में सर्दियों में इसके सेवन से शरीर को गर्माहट मिलती है, जिससे हम ठंड से बचे रहते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद कई पोषक तत्‍व भी शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं।

मिलेट्स यानी मोटा अनाज खाने से हमारे पाचन तंत्र को भी काफी फायदा मिलता है। दरअसल, इसके सेवन से पेट दुरुस्‍त रहता है, जिससे कब्ज, गैस, एसिडिटी जैसी समस्याओं दूर रहती हैं। इन दिनों डायबिटीज की समस्या काफी आम हो चुकी है। कई लोग इस गंभीर समस्या से परेशान है। ऐसे में मोटा अनाज का सेवन कई तरह के मधुमेह में फायदामंद है। डायबिटीज के मरीजों के लिए गेहूं हानिकारक माना जाता है। ऐसे में बाजरा, रागी, ज्वार आदि ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में काफी अहम भूमिका निभाते हैं।

इधर उत्तरकाशी के ग्रामीण ने दो कदम आगे बढ़कर इस मोटे अनाज से मिठाई बनाकर नई क्रांति ला दी है। इस मोटे अनाज से बनी मिठाई ने बाजार में बनी दूसरी मिठाइयों यानी नकली मावे से बनी मिठाई को चुनौती दे डाली। आज हम सभी का प्रयास होना चाइए कि श्री दयाल सिंह कोतवाल जी द्वारा मोटे अनाज द्वारा बनी मिठाई को बड़े स्तर पर बाजार में उतारा जाए ताकि लोगों को जहरीली और नकली मावे से बनी मिठाई से निजात मिल सके और लोगों का स्वास्थ्य भी ठीक रहे। यानी कि मोटे अनाज का मोटा अनाज और मिठाई की मिठाई। इस मोटे अनाज की बनी मिठाई को सरकार द्वारा जी 20 की उत्तराखण्ड में प्रस्तावित बैठकों में आमंत्रित विदेशी मेहमानों की थाली में परोसने की पहल करनी होगी।

इधर मोटे अनाज के खाने पकाने के परंपरागत तरीकों में भी बदलाव आने लगा। झंगोरा को सामान्य चावल की तरह खाने की बजाय। “झंगोरा की खीर” लोकप्रिय और प्रचलित हो गई। झंगोरा की खीर गांव की थाली से होकर बाजार के होटलों से होते हुए फाइव स्टार तक पहुंच गई।। शादी समारोह और पार्टियों में मोटे अनाज से बने खाद्य महत्वपूर्ण डिश हो गए। कंडाली की सब्जी, कोदे की रोटी, गहत का गहतवाणी/सूप, गहत का फाणू किसी भी समारोह में स्टेटस सिंबल बन गया है।गरीब पहाड़ी ग्रामीण की थाली से मोटा अनाज आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की थाली तक जा पहुंचा।

उत्तरकाशी से लोकेंद्र सिंह बिष्ट की रिपोर्ट

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