शिज़ोफ्रेनिया के रोगियों में लक्षणों को किया जा सकता है नियंत्रित : प्रो. जेफरी कॉन
लखनऊ: सीडीआरआई में चल रहे सीटीडीडीआर-2019 के तीसरे दिन तंत्रिका तंत्र संबंधी विकारों के सत्र में यूएसए के प्रोफेसर जेफरी कॉन ने शिज़ोफ्रेनिया (जिसे खंडित मानसिकता/पागलपन भी कहते हैं) के उपचार के लिए नवीन दृष्टिकोण पर चर्चा की जिससे शिज़ोफ्रेनिया के रोगियों में पाये जाने वाले सकारात्मक, नकारात्मक और संज्ञानात्मक लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि कैसे शिज़ोफ्रेनियाका इलाज जीपीसीआर्स के पॉजिटिव एलोस्टेरिक मॉड्यूलेटर्स से किया जा सकता है।
सीटीडीडीआर-2019: तीसरे दिन मानसिकरोग, तंत्रिका विकार, कैंसर, हृदयरोग एवं संश्लेषित. औषधीय रसायनों पर हुई चर्चा
निम्हान्स (NIMHNS), बेंगलुरु के डॉ. संजीव जैन ने कोशिका आधारित मॉडल सिस्टम्स पर अपने हालिया शोध पर चर्चा की और कहा कि “ओमिक्स” एप्रोच से पार्किंसंस रोग, शिज़ोफ्रेनिया और संबंधित मानसिक विकारों की क्रियाविधि को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी. एनसीबीएस (NCBS), बेंगलुरु के डॉ रघु पाडिन्यत ने बाइपोलर अफेक्टिवडिजीज (BPAD) के बारे में बात की और लिथियम का उपयोग अक्सर प्रथम पंक्ति की एंटी-साइकोटिक (मनोरोग-निवारक) दवा के रूप में किया जाता है और यह बीपीएड के लक्षणों को नियंत्रित करने में अत्यधिक प्रभावी भी हो सकता है. हालांकि बीपीएड वाले सभी रोगियों में लिथियम समान रूप से प्रभावी हो यह आवश्यक नहीं है. यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास मेडिकल ब्रांच, यूएसए का डॉ. जॉन ए एलन ने न्यूरो-चिकित्सा के लिए नए डोपामाइन डी1 रिसेप्टर एगोनिस्ट की खोज एवं उसके विकास पर अपने हाल के अनुसंधान को साझा किया. यह खोज डोपामिनर्जिक सिग्नलिंग से जुड़े न्यूरोलॉजिकलडिसओर्डर्स (मनोरोगों)के इलाज के लिएउम्मीद की नई किरण लाती है.
सीडीआरआई के निदेशक प्रोफेसर तपस कुमार कुंडू ने ओरल (मुख के) कैंसर के चिकित्सीय रेगुलेशन में एपिजेनेटिक दृष्टिकोण के बारे में अपने अनुसंधान के बारे में कहा कि हमने पाया है कि हिस्टोन के लाइसिन एसिटिलिटेशन और आर्जिनिन मिथाइलेशनकी मात्रा नाटकीय रूप से ओरल कैंसर रोगियों में बढ़ जाती है एवं जिससे उनकी अनेक क्रियात्मक गतिविधियां प्रभावित होती हैं. हालांकि इसके मोलिक्युलर मेकेनिज़्मकी विस्तृत जानकारी हेतु रिसर्च अभी जारी है. कोरिया की सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी,सिओल की डॉ. ह्यूनसुक ली ने बीआरसीए2जीन के जर्म-लाइन म्यूटेशन से संबंधित अपने निष्कर्षों पर चर्चा की, जो स्तन और अग्न्याशय (पैंक्रियाज़)में ट्यूमर के निर्माण को प्रेरित करता है. देर से निदान और उचित उपचार की कमी से ही अग्न्याशय का कैंसर सबसे घातक रोगबन जाता है. पैंक्रियाटिक कैंसर के बारे में अभी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है इस वजह से 90 प्रतिशत मरीज इसकी सर्जरी नहीं करा सकते हैं, जिससे मामला और खराब हो जाता है.