स्तम्भ

पेड़ के प्राण लेना अक्षम्य है !

सुप्रीम कोर्ट दंड तय करे !!

के. विक्रम राव

स्तंभ: वन की परिभाषा क्या है ? अब इस जानेमाने शब्द के आशय पर गत सप्ताह से भारत का सर्वोच्च न्यायालय माथापच्ची कर रहा है, सिर खपा रहा है। मुद्दा उठा था जब प्रधान न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने गत दिनों भारत सरकार को निर्दिष्ट किया कि शब्दकोश में उल्लिखित वन की परिभाषा को मान्य रखें। यह निर्णय 1996 में टीएन गोविंद रमन तिरुमूलपादवाली याचिका के निर्णय में निहित है। वर्तमान बहस का आधार था वन संरक्षण कानून 2023 के प्रावधानों पर सुनवाई। इसके साथ पशु सफारी पार्क और वनप्राणी स्थल पर भी उच्च न्यायालय का आग्रह था कि वही परिभाषा स्वीकारें। देखने पढ़ने में तो यह निर्धार सरल और सुगम दिखता है। पर वस्तुतः इतना बोधगम्य नहीं है। न्यायालय का प्रयास रहा कि वन कानूनों का प्रतिकूल प्रभाव चिड़ियाघरों, इको पर्यावरण, टोही सर्वेक्षणों जैसी परियोजनाओं पर न पड़े। यह 1980 वाला एक्ट भी निर्दिष्ट करता है कि वनों में कुछ क्रियाकलाप किए जा सकते हैं, जैसे चेक पोस्ट लगाना, फेंसिंग करना और पुल बनाना। चिड़ियाघर चलाने, सफारी और इको-टूरिज्म सुविधाओं की भी अनुमति देता है।

कानून वनों की कटाई या गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाता है। केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति से ऐसे प्रतिबंध हटाए जा सकते हैं। गैर-वानिकी उद्देश्यों में बागवानी फसलों की खेती या रीफॉरेस्टेशन के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए भूमि का उपयोग शामिल है। मगर वस्तुस्थिति आज क्या है ? वन की भूमि सदियों से लोभी तस्करों की गिद्ध दृष्टि में है। इसीलिए उच्चतम न्यायालय का सरोकार वाजिब है। भारतीय वन एक्ट, 1927, को लकड़ी और दूसरे वन संसाधनों के प्रबंधन के उद्देश्य से बनाया गया था। यह कानून राज्य सरकारों के लिए प्रावधान करता है कि वे अपने स्वामित्ववाली किसी वन भूमि को आरक्षित या संरक्षण वन अधिसूचित कर सकती हैं। ऐसी भूमि सभी भू अधिकार एक्ट के प्रावधानों के अधीन हैं। वन (संरक्षण) एक्ट, 1980 को बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को रोकने के लिए लागू किया गया था। अगर वन भूमि को गैरवानिकी उद्देश्यों के लिए परिवर्तित करना है तो इस कानून के तहत केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी जरूरी है।

विडम्बना देखें कभी कहा जाता था कि डकैत जंगल में रहते हैं। अब ये लोग जंगलों में ही डकैती करने लगे हैं। पशुओं के बहुमूल्य खालों की, शेरों के हड्डियों की, गेंडे के छाल की, हाथी दांत की, हिरन के मांस की, चंदन की तस्करी की। अर्थात वनक्षेत्र भी आज डकैती का केंद्र हो गया है। इसीलिए एक याचिका की सुनवाई करते गत सप्ताह प्रधान न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जमशेद पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्र ने निर्दिष्ट किया था कि नया चिड़ियाघर खोलने या वन भूमि पर ‘सफारी’ शुरू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी अनिवार्य होगी। शीर्ष अदालत ने 2023 के संशोधित वन संरक्षण कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए देश भर में वन संरक्षण के लिए कई निर्देश जारी किए। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने इस दलील पर ध्यान दिया कि वन संरक्षण संबंधी 2023 के संशोधित कानून के तहत जंगल की परिभाषा में लगभग 1.99 लाख वर्ग किमी वन भूमि को ‘वन’ के दायरे से बाहर रखा गया है जिसका उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए किया जासकता है। शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले विवरण को 15 अप्रैल तक अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराएगा। अदालत ने कहा, पूर्व अनुमति के बिना वन भूमि के तहत किसी चिड़ियाघर/सफारी को अधिसूचित नहीं किया जाएगा।

अतः इन मूक वन्य जीव के लिए संरक्षण अधिनियम 1972 भारत सरकार ने इस उद्देश्य से पारित किया था कि उनका अवैध शिकार तथा उसके हाड़-माँस और खाल के व्यापार पर रोक लगाई जा सके। इसे सन् 2003 में संशोधित किया गया है। इसके तहत इसमें दण्ड तथा जुर्माना और कठोर कर दिया गया है। भारत के वनों के संदर्भ में इजराइल का उदाहरण पेश आता है। यह मध्य एशियाई भूभाग बंजर और रेतीला था। पानी की किल्लत थी। फिर हरित क्रांति आई। आज पेड़ की अवैध कटाई पर कठोरदंड भी दिया जाता है।

इसी संदर्भ में मेरा निजी अनुभव भी है। उन दिनों मैं मुंबई में “टाइम्स आफ इंडिया” में रिपोर्टर था। क्योंकि जूनियर था अतः नाइट ड्यूटी लगती थी। एक रात की बात है, अचानक टेलीफोन की घंटी बजी। मैंने आवाज सुनी : “मैं पेद्दर रोड से बोल रहा हूं, यहां कुछ लोग एक पेड़ को काट रहे हैं। आप तत्काल फोटोग्राफर के साथ यहां आ जाइए। उनलोगों को रोकने का प्रयास करना होगा।” कुछ अजीब सा लगा मुझे। मैंने नाम पूछा। उधर से जवाब आया : “मैं डॉ होमी भाभा बोल रहा हूं। घर जाते वक्त मैंने यह दृश्य देखा। पेड़ बचाना हमारा धर्म है।” मैं चकित रह गया कि देश के ख्यात वैज्ञानिक, भारत के अनुविज्ञान का जनक, एक पेड़ बचाने में तत्पर है। मैं तुरंत पहुंचा। पेड़ बच गया। यदि सभी भारतीय डॉ भाभा जैसे हो जायें तो ? कितना हरा रहेगा भारत ?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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