
गोरखपुर के टेराकोटा और मणिपुर के काले चावल को ‘जियोग्राफिकल इंडीकेशन का टैग’


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घरेलू उत्पादों को चिंहित कराने और उनको उचित मूल्य और दर्जा दिलाने में हमेशा तत्परता के साथ सकारात्मक प्रयास किये है । उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2018 में इसे एक ‘जिला—एक उत्पाद’ योजनान्तर्गत सम्मिलित कर मान्यता दी थी। जियोग्राफिकल इंडीकेशन टैग में गोरखपुर के इस क्राफ्ट के साथ ही अब पूर्वांचल के कुल 13 उत्पादों को जीआई का दर्जा हासिल हो गया है। इनमें काला नमक चावल, बनारसी साड़ी, मेटल क्राफ्ट, गुलाबी मीनाकारी, स्टोन शिल्प, चुनार बलुआ पत्थर, ग्लास बीड्स, भदोही कालीन, मिर्ज़ापुर दरी, गाजीपुर वाल हैंगिंग, निज़ामाबाद आजमगढ़ की ब्लैक पॉटरी और इलाहाबाद का अमरूद शामिल है। जियोग्राफिकल इंडीकेशन टैग में गोरखपुर के टेराकोटा सहित बनारसी साडी और अन्य उत्पादों के रजिस्ट्रर होने पर योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर बधाई दी।
लखनऊ: भारत के भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री के डिप्टी रजिस्ट्रार ने हाल ही में गोरखपुर टेराकोटा और मणिपुर के काले चावल दोनों उत्पादों को भौगोलिक संकेतक ( जी आई ) टैग देने की पुष्टि की है। गोरखपुर का टेराकोटा कार्य सदियों पुरानी कला है जिसमें जहाँ स्थानीय कारीगरों द्वारा विभिन्न जानवरों जैसे कि घोड़े, हाथी, ऊँट, बकरी, बैल आदि की मिट्टी की आकृतियाँ बनाई जाती हैं। पूरा काम नग्न हाथों से किया जाता है तथा रंगने के लिये प्राकृतिक रंग का उपयोग करते हैं, जिसकी चमक लंबे समय तक रहती है। 1,000 से अधिक प्रकार के टेराकोटा के प्रकार यहाँ बनाए जाते हैं।
वहीं मणिपुर का काला चावल जिसे चाक-हाओ कहते हैं, एक सुगंधित चिपचिपा चावल है जिसकी मणिपुर में सदियों से खेती की जा रही है। यह अपने विशेष प्रकार की सुगंध के लिए जाना जाता है। इसका उपयोग सामान्यत: सामुदायिक दावतों में किया जाता है तथा इन दावतों में चाक-हाओ की खीर बनाई जाती है। गौरतलब है कि चाक-हाओ का पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में भी उपयोग किया जाता है। चावल की इस किस्म में रेशेदार फाइबर की अधिकता होने के कारण इसे पकाने में चावल की सभी किस्मों से अधिक, लगभग 40-45 मिनट का समय लगता है। वर्तमान में मणिपुर के कुछ हिस्सों में चाक-हाओ की पारंपरिक तरीके से खेती की जाती है। परंपरागत रूप से या तो बीजों को भिगोकर सीधे खेतों में बुवाई की जाती है या चावल की सामान्य कृषि के समान धान के खेतों में नर्सरी में उगाए गए चावल के पौधों की रोपाई की जाती है।
इसके अलावा कश्मीरी केसर जो जम्मू और कश्मीर के ऊंचाई वाले क्षेत्रों खासकर (करेवा उच्चभूमि) में उगाई जाती है, को भी भौगोलिक संकेतक का दर्जा दिया गया है। कश्मीरी केसर मुख्य रूप से पुलवामा, बड़गाम, किश्तवाड़ और श्रीनगर में उगाया जाता है। कश्मीरी केसर विश्व में एकमात्र केसर प्रजाति है जो औसत समुद्र तल से 1600 से 1800 मीटर की ऊंचाई पर उगाई जाती है।

मूंगफली और गुड़ से निर्मित कैंडी कदलाई मितई जो तमिलनाडु के कोविलपट्टी में बनाई जाती है को भी भौगोलिक संकेतक का दर्जा दिया गया है।
क्या है जियोग्राफिकल इंडीकेशन (भौगोलिक संकेतक) ?
जियोग्राफिकल इंडीकेशन (भौगोलिक संकेतक ) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है। इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है। दूसरे शब्दों में भौगोलिक चिन्ह या संकेत (जीआई) का शाब्दिक अर्थ है एक ऐसा चिन्ह, जो वस्तुओं की पहचान, जैसे कृषि उत्पाद, प्राकृतिक वस्तुएं या विनिर्मित वस्तुएं, एक देश के राज्य क्षेत्र में उत्पन्न होने के आधार पर करता है, जहां उक्त वस्तुओं की दी गई गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या अन्य कोई विशेषताएं इसके भौगोलिक उद्भव में अनिवार्यत: योगदान देती हैं। यह दो प्रकार के होते हैं- (1) पहले प्रकार में वे भौगोलिक नाम हैं जो उत्पाद के उद्भव के स्थान का नाम बताते हैं जैसे शैम्पेन, दार्जीलिंग आदि। (2) दूसरे हैं गैर-भौगोलिक पारम्परिक नाम, जो यह बताते हैं कि एक उत्पाद किसी एक क्षेत्र विशेष से संबद्ध है जैसे अल्फांसो, बासमती, रोसोगुल्ला आदि। जीआई टैग को औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।
किन वस्तुओं, पदार्थों को दिया जा सकता है जी आई टैग
विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के मुताबिक कृषि उत्पादों जैसे चावल, जीरा, हल्दी, नींबू आदि।
खाद्यान्न वस्तुओं जैसे रसगुल्ला , लड्डू , मंदिर के विशिष्ट प्रसाद आदि।
वाइन और स्पिरिट पेय जैसे शैम्पेन और गोआ के एल्कोहलिक पेय पदार्थ फेनी आदि।
हस्तशिल्प वस्तुएं (हैंडीक्राफ्ट्स) जैसे मैसूर सिल्क, कांचीवरम सिल्क तथा इसके साथ ही मिट्टी से बनी मूर्तियां (टेराकोटा) और औद्योगिक उत्पाद।
जीआई टैग से लाभ
जीआई टैग किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले उत्पादन को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।
जीआई टैग के द्वारा उत्पादों के अनधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है।
यह किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाली वस्तुओं का महत्व बढ़ा देता है।
जीआई टैग के द्वारा सदियों से चली आ रही परंपरागत ज्ञान को संरक्षित एवं संवर्धन किया जा सकता है।
जीआई टैग के द्वारा स्थानीय उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में मदद मिलती है।
इसके द्वारा टूरिज्म और निर्यात को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।

जनपद के किसी भी क्षेत्र में बनने वाले टेराकोटा को ही गोरखपुर टेराकोटा के नाम से बेचा जा सकता है। अब इस जनपद के बाहर बनाने वाले को गोरखपुर टेराकोटा नाम नहीं मिल सकता। वह गैरकानूनी होगा, इस कारण अब यहां के शिल्पियों को काफी काम मिलेगा। सरकार से जीआई क्राफ्ट के प्रमोशन लिए विशेष सहयोग, योजनाएं भी मिलेंगी।अब यह देश की बौद्धिक संपदा हो गया है।’’
डॉ रजनीकांत, जिला विकास प्रबंधक नाबार्ड
भारत और विश्व में जियोग्राफिकल इंडीकेशन टैग के कानून
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भौगोलिक संकेतक का विनियमन विश्व व्यापार संगठन के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं ( ट्रिप्स ) पर समझौते के तहत किया जाता है।
वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ। वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ जीआई टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद है। भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष के लिये मान्य होता है। इसके बाद इसे रिन्यू भी किया जा सकता है।
गौरतलब है कि महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर की ब्लू पॉटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू तथा मध्य प्रदेश के झाबुआ का कड़कनाथ मुर्गा सहित कई उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। जीआई टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी अलग पहचान का सबूत है। कांगड़ा की पेंटिंग, नागपुर का संतरा और कश्मीर का पश्मीना भी जीआई पहचान वाले उत्पाद हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घरेलू उत्पादों को चिंहित कराने और उनको उचित मूल्य और दर्जा दिलाने में हमेशा तत्परता के साथ सकारात्मक प्रयास किये है । उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2018 में इसे ‘एक जिला—एक उत्पाद’ योजनान्तर्गत सम्मिलित कर मान्यता दी थी। जियोग्राफिकल इंडीकेशन टैग में गोरखपुर के इस क्राफ्ट के साथ ही अब पूर्वांचल के कुल 13 उत्पादों को जीआई का दर्जा हासिल हो गया है। इनमें काला नमक चावल, बनारसी साड़ी, मेटल क्राफ्ट, गुलाबी मीनाकारी, स्टोन शिल्प, चुनार बलुआ पत्थर, ग्लास बीड्स, भदोही कालीन, मिर्ज़ापुर दरी, गाजीपुर वाल हैंगिंग, निज़ामाबाद आजमगढ़ की ब्लैक पॉटरी और इलाहाबाद का अमरूद शामिल है। जियोग्राफिकल इंडीकेशन टैग में गोरखपुर के टेराकोटा सहित बनारसी साडी और अन्य उत्पादों के रजिस्ट्रर होने पर योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर बधाई दी।
गोरखपुर में टेराकोटा उत्पादों को बनाने से लेकर उसे बेचने तक के काम को आसान बनाने के लिए लिए अलग-अलग कलस्टर बनाने हेतु उत्तर प्रदेश के उद्योग विभाग के संयुक्त आयुक्त आशुतोष त्रिपाठी का कहना है कि टेराकोटा के लिए क्लस्टर स्थापित करने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है जहां शिल्पियों को एक जगह पर हर तरह की सुविधाएं मिलेंगी। जिला उद्योग केंद्र ने कलस्टर बनाने के संबंध में शासन को प्रस्ताव भेज दिया है। एक जिला-एक उत्पाद (ओडीओपी) में चयनित टेराकोटा के विकास के लिए शासन-प्रशासन प्रयत्नशील है। भटहट के औरंगाबाद, भरवलिया, लंगड़ी गुलरिहा व एकला नंबर दो आदि गांवों में टेराकोटा शिल्पियों की सहूलियत के लिए बड़ा क्लस्टर बनाने की योजना बनाई गई थी। लेकिन गांवों के लोगों ने एक की बजाय अलग-अलग जगह कलस्टर बनाने का सुझाव दिया। इस पर जिला उद्योग केंद्र ने चार क्लस्टर बनाने की योजना तैयार की। मंजूरी मिलने के बाद इसका निर्माण शुरू हो जाएगा। कलस्टर में उत्पाद व उसकी मार्केटिंग से जुड़ी सभी सुविधाएं मौजूद होंगी।

गोरखपुर टेराकोटा को जीआई टैग प्रदान करने कि पूरी प्रक्रिया को लगभग 2 वर्ष पूर्व सितंबर 2018 में नाबार्ड के सहयोग से और ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के दिशा निर्देश में शुरू किया गया था। जिला उद्योग केंद्र के जागरूकता के साथ ही संस्था लक्ष्मी टेराकोटा मूर्ति कला केंद्र औरंगाबाद गुलरिया गोरखपुर के आवेदन के साथ इसे जी आई टैग दिलाने की शुरुआत की गई थी।
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