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डब्ल्यूटीओ बैठक में थाईलैंड ने चावल निर्यात के मुद्दे पर भारत को घेरा , जानिए क्या है मामला:

नई दिल्ली ( दस्तक ब्यूरो) : 164 देशों वाले विश्व व्यापार संगठन की बैठक में भिन्न भिन्न देश अपना मत और अपना मतभेद दोनों समय समय पर जाहिर करते रहते हैं। देशों के बीच व्यापार से जुड़े विवादों का समाधान इसी मंच पर करने की कोशिश की जाती है। अब ताजा मामला दक्षिण पूर्वी एशियाई देश थाईलैंड का सामने आया है जिसने चावल निर्यात के मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन में भारत को घेरने की कोशिश की है और इससे दोनों देशों के बीच राजनयिक तनाव पैदा हुआ है। डब्लूटीओ में थाईलैंड की दूत पिमचानोक वोंकोरपोन पिटफ़ील्ड ने भारत पर आरोप लगाया है। आरोप भारत के पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम से जुड़ा हुआ है। थाईलैंड ने आरोप लगाया कि भारत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सस्ती दरों पर चावल ख़रीदकर अंतरराष्ट्रीय चावल निर्यात बाज़ार पर क़ब्ज़ा कर रहा है। भारत ने थाईलैंड की इस टिप्पणी का कड़ा विरोध किया है।

थाईलैंड के आरोप के पीछे के कारण और तर्क :

थाईलैंड के आरोप के पीछे के कारण और तर्क को देखें तो भारत के खाद्य सुरक्षा कानूनों में वो बातें दिखती हैं जिसको आधार पर भारत को सवालों के घेरे में लाने की कोशिश की जाती है। केंद्र सरकार की नई एकीकृत खाद्य सुरक्षा योजना 1 जनवरी 2023 से शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा किए गए निर्णय के अनुसार नई योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत 81.35 करोड़ लाभार्थियों को साल 2023 के दौरान मुफ्त खाद्यान्न प्रदान किया गया। थाईलैंड जैसे देशों का मानना है कि भारत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सस्ती दरों पर चावल ख़रीदकर अंतरराष्ट्रीय चावल निर्यात बाज़ार को प्रभावित करता है।

भारत द्वारा चावल निर्यात पर रोक भी है मुद्दा :

भारत ने घरेलू बाज़ार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए धीरे-धीरे चावल के निर्यात पर रोक लगाने की जो कार्यवाही की वो भी कई देशों के भारत विरोध का आधार बनी। 2022 में जब घरेलू बाज़ार में चावल के दाम बढ़ रहे थे तब भारत ने धीरे-धीरे पाबंदी लगानी शुरू की थी। पहले टूटे हुए चावल पर रोक लगाई फिर सफेद चावल के निर्यात को रोका। चावल की कुछ क़िस्मों पर निर्यात कर लगाया गया। इसके अलावा ग़ैर बासमती चावल पर भी निर्यात कर लगाया गया, ताकि घरेलू बाज़ार में क़ीमतों को नियंत्रित किया जा सके। सरकार ने अपने भंडार से भी कम क़ीमत पर चावल की बिक्री की। जब भारत ने ये प्रतिबंध लगाए थे तब थाईलैंड ने इसे एक मौक़े की तरह देखा था और थाईलैंड सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री ने कहा था कि थाईलैंड इस स्थिति का फ़ायदा उठाने की कोशिश करेगा। हालाँकि, पिछले कुछ सालों में भारत का चावल का निर्यात बढ़ा है। भारत विश्व में चावल के निर्यात में 40 प्रतिशत तक चला गया था। थाइलैंड भी एक बड़ा चावल निर्यातक है, थाईलैंड को लगता है कि भारत उसके बाज़ार पर कब्ज़ा कर रहा है।

खाद्य भंडारण पर सीमा है बड़ा मुद्दा: WTO के नियमों के तहत जनता के लिए खाद्य भंडारण पर सीमा निर्धारित है। अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने इसे लेकर स्थायी समाधान को कई बार रोका है। भारत खाद्य सुरक्षा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर देश में कुल चावल उत्पादन का क़रीब 40 प्रतिशत ख़रीदता है। इससे अंतर्राष्ट्रीय चावल बाजार प्रभावित होता है। ऐसा कई देशों का मानना है। वरिष्ठ पत्रकार और कृषि विशेषज्ञ हरवीर सिंह कहते हैं, “भारत ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस के लिए ख़रीददारी करने के लिए एमएसपी पर ख़रीदारी की है। भारत को पीडीएस के लिए ख़रीदारी करने के लिए पब्लिक स्टॉक लिमिट में छूट मिली हुई है। यानी भारत सरकार जनता में बाँटने के लिए जो चावल ख़रीदती है उस पर भंडारण करने की सीमा लागू नहीं होती है। हालाँकि वे मानते हैं कि थाईलैंड के ऐसे आरोप तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है।

हरवीर सिंह कहते हैं, “रिकॉर्ड के हिसाब से ऐसा नहीं है. भारत सरकार का ये कहना है कि वह पीडीएस के लिए जो चावल ख़रीदती है, उसे एक्सपोर्ट नहीं करती है बल्कि भारत के निर्यातक बाज़ार में बाज़ार भाव पर चावल ख़रीदते हैं और उसे निर्यात करते हैं। थाईलैंड का आरोप है कि भारत सस्ते दाम पर चावल ख़रीदकर उसे निर्यात कर रहा है और इससे बाज़ार को अस्थिर कर रहा है। लेकिन तथ्य इन आरोपों से अलग हैं।

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