जीवनशैलीस्वास्थ्य

बच्चे को जन्म देने की प्राचीन पद्धति है वॉटर बर्थ, आधा हो जाता है दर्द

नई दिल्ली: आज से करीब 50 साल पहले अधिकतर बच्चों के जन्म घरों में ही हुआ करते थे। देश के कुछ एरिया तो ऐसे हैं, जहां आज भी गर्भवती महिलाएं एक दाई मां की मदद से घर में ही बच्चे को जन्म देती हैं। बच्चों को जन्म दिलाने की प्रक्रिया को सहज बनाने के लिए पुराने समय में जो तकनीक अपनाई जाती थीं, उनमें जल चिकित्सा के अंतर्गत जल में बच्चे का जन्म कराने की प्रक्रिया भी शामिल थी…

क्या होती है वॉटर बर्थ प्रॉसेस?
-वॉटर बर्थ प्रॉसेस के समय गर्भवती महिला को जब लेबर पेन शुरू होता है तब उसे पानी से भरे एक पूल जैसे बड़े डब में बैठा देते हैं।

इस समय महिला की शारीरिक अवस्था (पोश्चर) ऐसा होता है जैसे कि बेड पर बच्चे को जन्म देने के दौरान होता है। बस उसके शरीर का ऊपरी हिस्सा पानी से बाहर होता है।

-इस दौरान पूल या टब में जो पानी भरा जाता है, वह हल्का गुनगुना होता है। इससे महिला के शरीर में दर्द कम होता है। क्योंकि उसके शरीर के स्किन सेल्स और टिश्यूज सॉफ्ट हो जाते हैं।

-पानी के अंदर रहने से प्राकृतिक तौर पर महिला के शरीर में मन को रिलैक्स रखनेवाले एंडोर्फिन हॉर्मोन का उत्पादन अधिक होता है। इससे उसका दर्द इतना कम हो जाता है कि कई बार पेन किलर्स की भी आवश्यकता नहीं होती है।

कैसे प्रभावी है बच्चे को पानी में जन्म दिलाना?
-प्राचीन चिकित्सा पद्धति और आयुर्वेद के जानकारों का कहना है कि पानी में बच्चे का जन्म कराने यानी वॉटर बर्थ की प्रक्रिया को अपनाने से गर्भवती महिला को होनेवाला दर्द जिसे लेबर पेन कहते हैं वह 50 फीसदी तक कम हो जाता है।

इसके हैं कुछ तय मानक
-ऐसा नहीं है कि बच्चे का जन्म जल के भीतर कराने के लिए डब का साइज और पानी की मात्रा कितनी भी हो सकती है। इसके लिए कुछ तय मानक है, जिन्हें अपनाने पर ही चिकित्सा का पूरा और सही लाभ मिलता है।

-जानकारी के अनुसार, वॉटर बर्थ प्रॉसेस के लिए जो पूल बनाया जाता है, वह ढाई से 3 फीट लंबा होना चाहिए और उसमें 300 से 500 लीटर तक पानी होना चाहिए। महिला की बॉडी के हिसाब से इसे अजेस्ट किया जा सकता है।

-इस पूल में पानी का तापमान इतना हो कि महिला के शरीर को आराम मिले ना कि जलन या ठंडक का अहसास हो। साथ ही इसका तापमान एक समान रहना चाहिए।

इस समय ले जाते हैं महिला को
-जब किसी महिला को लेबर पेन शुरू होता है तो उसे पेन उठने के 3 से 4 घंटे के बीच पूल में ले जाया जाता है। इस पानी के अंदर महिला के शरीर का दर्द लगभग आधा रह जाता है।

-इस प्रक्रिया को यदि एक्सपर्ट द्वारा और सभी सुविधाओं को ध्यान में रखकर किया जाए तो ना केवल गर्भवती महिला को दर्द कम सहन करना पड़ता है, साथ ही सामान्य डिलिवरी की तुलना में बच्चे के जन्म की प्रक्रिया में कम समय लगता है।

इन्फेक्शन का नहीं होता डर
-जब प्राकृतिक चिकित्सा के विशेषज्ञ इस प्रक्रिया के द्वारा किसी बच्चे का जन्म कराते हैं तो अपने ज्ञान के आधार पर वे उन सभी मानकों का ध्यान रखते हैं कि मां और नवजात शिशु दोनों को किसी तरह का खतरा ना हो।

  • पानी के अंदर रहने से महिला का शारीरिक और मानसिक तनाव कम होता है। इस दौरान उसका बीपी नियंत्रित रखने में सहायता मिलती है। इसके साथ ही बच्चा जब गर्भ से बाहर आता है तो पानी के सही तापमान के कारण उसे गर्भ जैसा वातावरण ही बाहर भी मिलता है।
  • एक्सपर्ट्स का कहना है कि नॉर्मल डिलिवरी के समय बच्चे के मूव्स और गर्भनाल से जुड़ी जो आम समस्याएं फेस करनी पड़ती हैं, वॉटर बर्थ के दौरान वैसी समस्याएं नहीं होती हैं। क्योंकि पानी और पानी का तापमान बच्चे के मूव्स को सही रखने में किसी चमत्कार की तरह काम करता है।

-कई देशों के एक्सपर्ट्स का मानना है कि
नॉर्मल और सिजेरियन डिलिवरी की तुलना में वॉटर बर्थ बेहतर प्रक्रिया है। गर्म पानी हमारे शरीर की नर्व्स को आराम देता है। उनका तनाव और खिंचाव कम करता है।

-त्वचा के ऊतकों को मुलायम बनाकर बच्चे के जन्म के समय योनी के आकार को फैलने में सहायता करता है। पानी में रहने से गर्भवती महिला के शरीर में ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन को बढ़ाता है। इससे बच्चे का जन्म शीघ्र और कम पीड़ा में हो जाता है।

Related Articles

Back to top button