उत्तराखंड

जीवन जीने की कला जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने में ही है निहित – डॉ. विश्वेश्वरी देवी

हरिद्वार। श्री अवधूत मंडल आश्रम, हनुमान मन्दिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन पूज्य गौरदास जी महाराज वृन्दावन ने भगवान के 10 अवतारों का वर्णन करते हुए श्रोताओं को मंगलमय भगवान श्री कृष्ण की जन्म लीला का प्रसंग सुनाते हुए महाराज जी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म वासुदेव देवकी जी के यहां जेल में हुआ तो उनके सारे बन्धन खुल गए। उसी समय यशोदा जी के पुत्र और पुत्री दोनों का जन्म हुआ और वसुदेव नंदन और नंदनी दोनों मिलकर एक हो गए और ब्रज में जय जयकार हो गई इस उत्सव पर ग्वाल वालों एवं सखियों ने बधाई गान किया और स्वयं शंकर भगवान भी भगवान श्री कृष्ण का दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत से गोकुल पधारे। कथा व्यास ने अपनी रसमयी वाणी एवं भजनों से से समस्त श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

आज श्रीमद्भागवत कथा में प्रसिद्ध श्रीरामकथा वाचिका डॉ. साध्वी विश्वेश्वरी देवी जी का भी आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस मौके पर उन्होंने कहा कि जीव को अपने कर्मानुसार ही सुख अथवा दुःख मिलता है और शरीर को भोगना पड़ता है इसलिए जीवन में अच्छे कर्म करने चाहिए। उन्होंने कहा कि जीवन जीने की कला जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने में ही निहित है। आज कथा आरती पूजन में विश्व हिन्दू परिषद के जिलाध्यक्ष नितिन गौतम, विकास प्रधान, बालकृष्ण शास्त्री, विमल कुमार, रमेश उपाध्याय, रतन लाल, शशी उपाध्याय, राजकुमार गोयल, अश्वनी चौहान, रमेश राजपूत, सतीश प्रजापति, देवीप्रसाद, बृजवाला प्रमुख रूप से शामिल रहे।

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