नई दिल्ली : कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि होने से इंसानों के हार्मोन, चयापचय और उनका समग्र भावनात्मक संतुलन प्रभावित हुआ है। इसके चलते तनाव, अवसाद, चिंता जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां आम होने लगी हैं। यह जानकारी वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अधीन राष्ट्रीय विज्ञान संचार और नीति अनुसंधान संस्थान की निदेशक प्रो. रंजना अग्रवाल ने भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ (आईडब्ल्यूएसए) के सहयोग से आयोजित मानसिक स्वास्थ्य परिचर्चा सत्र में दी। उन्होंने कहा कि खुद, परिवार और दोस्तों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना समय की जरूरत है।
प्रो. अग्रवाल ने कहा, ‘हम आमतौर पर अपने शारीरिक स्वास्थ्य पर चर्चा करते हैं, लेकिन सामाजिक कलंक हमें मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करने से रोकता है। हालांकि मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।” मानव विकास, भावना और पर्यावरण परिवर्तनों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि लगभग पिछले दो दशक में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है। इसका मानव स्वास्थ्य पर कई अलग अलग तरह का प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में स्वास्थ्य चुनौतियों को लेकर लोगों में जानकारी होना बहुत जरूरी है।
यूरोपीय संघ के जलवायु नीति प्रमुख फ्रैंस टिमरमैंस ने बृहस्पतिवार को सुझाव दिया कि भारत-यूरोपीय संघ, व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद का इस्तेमाल कर हरित ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित करे। इसके माध्यम से हरित ऊर्जा के लिए तकनीक और कच्चा माल जुटाकर जलवायु संकट का सामना किया जा सकेगा। उत्सर्जन में कमी और स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन के विकास पर चर्चा करने के लिए टिम्मरमैंस दो दिवसीय भारतीय दौरे पर हैं। यात्रा के पहले दिन टिम्मरमैंस ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अक्षय ऊर्जा उत्पादन लक्ष्य को सामूहिक रूप से हासिल करने का आह्वान किया। उन्होंने यहां ‘भारतीय उद्योग परिसंघ वार्षिक सत्र 2023’ को संबोधित किया।