दस्तक-विशेष

मुखिया पद के लड़ैय्या, सम्पन्न बनाम सर्वहारा !!

के. विक्रम राव

स्तंभ: राष्ट्रपति चुनाव (18 जुलाई 2022) के मतदान के पूर्व भारत के 1761 सांसदों और 4120 विधायकों को ठीक से समझ लेना चाहिये कि विपक्ष के प्रत्याशी, पूर्व नौकरशाह (ख्यात अहंकारी) यशवंत सिन्हा कैसे व्यक्ति हैं? उनका नजरिया और भावना आमजन (सर्वहारा) के प्रति कैसी है? उनके लिये जनता के लोग बस ”ऐरे गैरे” ही हैं। उन दिनों (1969) में सिन्हा साहब, आईएएस, जनजाति बहुल जिला डुमका (अब झारखण्ड) में जिलाधिकारी थे। इस जनविरोधी घटना का उल्लेख मशहूर और सम्मानित कम्युनिस्ट मंत्री और अर्थशास्त्री बाबू इन्द्रदीप सिन्हा की आत्मकथा ”संघर्ष के पथ पर” (पृष्ठ 196—97, प्रकाशक : अन्वेष, पटना) में हुआ है। तब वे काबीना मंत्री थे। इन्द्रदीप सिन्हाजी का क्षेत्र वेगूसराय रहा जो भारत का लेनिनग्राड कहलाता था। वे गहरे मार्क्सवादी, स्वतंत्रता सेनानी, हजारीबाग के ब्रिटिश जेल में डॉ. लोहिया के संगी थे। इन्द्रदीप सिन्हाजी ने लिखा : ”एक बार दुमका में महामाया प्रसाद और चन्द्रशेखर सिंह जो उस समय सिंचाई मंत्री थे, दोनों विजिट करने गये। देखा कि करीब 4—5 सौ लड़के एक ब्लाक आफिस को घेरे हुए हैं और पुलिस हथियार लेकर खड़ी है और बूंदकें तान रखी थी। इसी बीच ये लोग पहुंच गये, पूछा कि ”क्या हो रहा है”? तो बीडीओ ने कहा, ”हुजूर ये लोग कहना नहीं मानते हैं।” चन्द्रशेखर सिंह ने कहा : ”पहले सिपाहियों को वापस कीजिए, बंदूक नीचे कराइए, इनका क्या कहना है, इनकी क्या मांग है, सुनो, उनको क्या कहना है।” उस वक्त वहां डिप्टी कमिश्नर यशवन्त सिन्हा थे जो आजकल वित्त मंत्री हैं। वह कहने लगा, ”मैं ऐरे गैरे लोगों से नहीं मिलता हूं।” चन्द्रशेखर सिंह ने कहा, ”देखिए, हम लोग तुम्हारे मिनिस्टर हैं, तुम अफसर हो, हम कह रहे हैं, उनका डेलीगेशन बुलाकर बात करो, उनकी क्या शिकायत है, सुनो।” तो वह कहने लगा कि : ”मैंने बहुत मिनिस्टर देखें हैं।” महामाया प्रसाद सिंह और चन्द्रशेखर सिंह, यह सुनने के बाद पटना चले आए। शाम को पटना हवाई अड्डे पर ही मुलाकात हो गयी। तो वहां इन लोगों ने मुझको बताया कि उस दिन दुमका में क्या हुआ। मैंने पूछा कि ”आप लोगों ने क्या किया ?” इन्होंने कहा ”हम लोगों ने वहां पर कमिश्नर था, उनको बता दिया, उसने डिप्टी कमिश्नर को डांटा।” मैंने कहा, ”और उसके बाद उन्होंने क्या किया?” उन्होंने कहा, ”क्या करते, छोड़ दिया।” मैंने कहा : ”मुख्यमंत्री के यहां ​चलिये।” हम लोग महामाया के यहां आए। हम चन्द्रशेखर सिंह और महामाया तीनों बैठे और चीफ सेक्रेटरी को बुलाया हमने कहा : ”कि उसने (सिन्हा) बहुत गलत किया है। मैं टेलीफोन पर उसको डांट दूंगा।” मैंने कहा कि ”बस ?”

मैंने कहा : ”देखिए, आप कमिश्नर को यहां से आदेश भेजिए कि जो नैक्सट सीनियर अफसर है उसको इसी वक्त चार्ज हैंडओवर कर दे और पटना सेक्रेटरिएट में आकर रिपोर्ट करे।” वह कहने लगे ”बहुत हार्श पनिशमेंट होगा।” मैंने कहा, आप नहीं समझते है हार्श पनिश्मेंट वह डिजर्व करता है। एक डिप्टी कमिश्नर है, आईएएस अफसर है और मिनिस्टर के साथ ऐसे व्यवहार करता है। हम लोगों को मालूम है, जब कांग्रेस का राज था तो ये डिप्टी कमिश्नर लोग मिनिस्टरों के जूते पोंछते थे, मिनिस्टरों के जूतों का फीता खोलते थे।” तो उसने कहा, ”सर, जैसा कहा जाए।” मैंने कहा कि ”आप ये आदेश दे दीजिए।” चीफ सेक्रेटरी ने सूचना भेज दी। इसके बाद यशवंत सिन्हा ने हिदायत तो नहीं माना। भाग कर दिल्ली चला आया। यशवन्त सिन्हा के ससुर एपसी श्रीवास्तव सप्लाई सेक्रेटरी थे, वह भी आईसीएस अफसर थे, वह दिल्ली में बैठा रहा, पैरवी करके अपना ट्रांसफर केन्द्र में करवा लिया। लेकिन हम लोगों से झगड़ा हो गया। तो मैंने चीफ सेक्रेटरी को कहा कि : ”देखिए, आपका एक अफसर इस तरह से बदतमीजी करेगा, कहना नहीं मानेगा तो हमको पंच करना ही होगा। रामायण में लिखा है ‘जो दण्ड करो नहीं तोरा, भ्रष्ट हो हि श्रुति मार्ग मोरा’, प्रशासन तो ऐसे नहीं दुरुस्त होगा।” तो यह आदेश गया तो वहीं से भाग कर दिल्ली चला गया। कुछ दिन बाद जब संयुक्त मोर्चे की गवर्नमेंट टूट गयी तो वह फिर पटना आया, लेकिन उसके बाद त्यागपत्र दे दिया और राजनीति में आ गया और आज वित्त मंत्री बना है। लेकिन इस घटना ने पूरे बिहार के आईएएस अफसरों में यह संदेश पहुंचा दिया कि यह मिनिस्टरी ऐसे नहीं मानेगी, यह अगर अनुशासन चाहती है तो अनुशासन मानना पड़ेगा। तो एक डिप्टी कमिश्नर को सजा करने से सभी डिप्टी कमिश्नर ठीक से व्यवहार करने लगे।”

मगर सिन्हा का बाल बांका भी नहीं हो पाया। उनका कम्युनिस्ट मंत्रियों के सामने दावा था कि : ”मैं मिनिस्टर बन सकता हूं। आप मेरी भांति आईएएस नहीं बन सकते।” तो ऐसे हैं जनाब अगले होने वाले राष्ट्रपति महोदय। इस प्रतीक्षारत पन्द्रहवें राष्ट्रपति (यशवंत सिन्हा) की समता करें प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद से। वे आधा वेतन—भत्ता ही लेते थे। सामान्य गांधीवादी जीवन शैली में रहते थे। जनवादी थे। प्रसंगवश यहां देश के महानतम मार्क्सवादी, कट्टर सिद्धांतवादी, तेलुगु नियोगी विप्र येचूरी सीताराम का चेन्नई दैनिक ”दि हिन्दू” (18 जून 2022) के इन्टर्व्यू की कुछ बातों का जिक्र हो जाये। वे बोले : ”आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में यह (राष्ट्रपति निर्वाचन) गांधी बनाम गोडसे वाला है। वैचारिक संघर्ष है। बड़ा महत्वपूर्ण है क्योंकि 2024 में लोकसभा चुनाव के ठीक पहले का है। इसी कारणवश माकपा ने बापू के पोते गोपालकृष्ण गांधी का नाम प्रस्तावित किया है।” मगर येचूरी भूल गये कि उनके माकपा मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के समय गोपालकृष्ण गांधी ने बंगाल की माकपा सरकार द्वारा फिजूलखर्ची के विरुद्ध राजभवन में बिजली की कटौती कर दी थी।

यशवंत सिन्हा के विषय में कुछ और भी। वे ठकुर—सुहाती में माहिर है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अगुवा स्व. दत्तोपंत थेंगडी से सिन्हा खुद मिलने गये। भेंट से पहले उनकी सारी किताबें पढ़ लीं थीं। उसका बखान भी कर डाला। अब थेंगड़ीजी बड़े प्रमुदित हो गये। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से सिफारिश कर दी। यशवंत सिन्हा सरकार में आ गये। अटल काबीना में। यशवंत सिन्हा की एक और बड़ी स्मरणीय उपलब्धि मानी जाती है। ठाकुर चन्द्रशेखर सिंह, बलियावाले, के प्रधानमंत्री काल में सिन्हा ने वित्त मंत्री के नाते भारत के स्वर्ण को स्टाक लंदन में नीलाम कर दिया। भारतीयों के घर का सोना तब बेचा जाता है, जब घर का दिवाला निकट आ जाता है।

यशवंत सिन्हा की तुलना में द्रौपदी मुर्मू की बात हो। वे अभावों में पलीं। जनजाति वालीं हैं। खेतिहर विरंची नारायण टुडु की पुत्री। द्रौपदी के पति और दो पुत्रों की अकाल मृत्यु हो गयी थी। अध्यापिका थीं फिर सरकारी सिंचाई विभाग में कनिष्ट क्लर्क रहीं। पार्षद निर्वाचित होकर राजनीति में आयीं। दो दफा विधायक रहीं। श्रेष्ठतम विधायक हेतु नीलकण्ठ पारितोष पाया। काबीना मंत्री बनीं। झारखण्ड की पहली महिला राज्यपाल बनीं। नरेन्द्र मोदी की भांति स्वातंत्र्योत्तर भारत में जन्मी वे अब राष्ट्र की नेता बनेंगी। प्रथम सर्वहारा राष्ट्रपति। सोनिया गांधी की अनुयायी प्रतिभा पाटिल नारी थीं। वकील ​थीं। जमीन्दार थीं। सामंत और धनाढ्य भी। मगर बड़े पसोपेश में होंगे नीतीश कुमार। क्या वे स्वप्रदेशी उच्चवर्णीय सिन्हा का समर्थन करेंगे ? या जनजाति की दबेकुचले वर्ग की द्रौपदी का ? नीतीश को लोहिया की तनिक याद तो होंगी। ग्वालियर की महारानी विजयराजे सिंधिया के विरुद्ध लोकसभा चुनाव में महानगरपालिका की मेहतरानी सुखोरानी को सोशलिस्ट प्रत्याशी नामित किया था। तो लोहियावादी अतिपिछड़ा जाति के पैरोकार नीतीश कुमार किसे चुनेंगे ? संपन्न बिहारी को या सदियों से पीड़ित आदिवासी को ? उन्हें दिल की सुनना होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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