दोहरे झटके के सबसे बड़े मुजरिम तो सलेक्टर्स, क्यों नहीं चुना पुजारा, रहाणे और हनुमा बिहारी को
संजीव मिश्र (बेबाक)। आस्ट्रेलिया से सीरीज खत्म हुए चार दिन हो चुके हैं लेकिन टीम इंडिया को लगे दोहरे झटके के जख्म का दर्द बार-बार उठ रहा है। रोज हम अपनी हार की वजहें तलाश रहे हैं। इस हार ने हमसे बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी ही नहीं छीनी बल्कि वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप से भी बाहर करवा दिया। दरअसल यह हार चयनकर्ताओं, कोच और शीर्ष बल्लेबाजों की गल्तियों का कम्बोपैक थी। अब प्याज के छिलकों की तरह पर्त दर पर्त उतर इस शिकस्त के कई कारण सामने आ रहे हैं। टीम में दो मुख्य बल्लेबाजों के खराब प्रदर्शन का असर बेशक पूरी सीरीज पर पड़ा हो लेकिन रोहित शर्मा और विराट कोहली पर ही हार का सारा नजला उतार हम दूसरे गुनहगारों को माफ नहीं कर सकते। यूं कहें कि इन दोनों को हार के मुजरिम के तौर पर पेश कर अन्य वजहों पर चुपचाप पर्दा डाला जा रहा है तो गलत नहीं होगा।
2021 के हीरो पुजारा और आंजिक्य रहाणे कहां थे इस बार
हम पिछली दो सीरीज को ही देखते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि हमारे चयनकर्ताओं ने चेतेश्वर पुजारा, अंजिक्य रहाणे और हनुमा बिहारी के विकल्प तलाशे बिना ही इन मिडिल ऑर्डर के दिग्गजों को अपनी योजना से बाहर कर दिया, जबकि 2021 के दौरे में इन तीनों की दम पर ही हम विराट कोहली के पहले टेस्ट के बाद लौट जाने के बावजूद चार टेस्ट मैचों की सीरीज 2-1 से जीतने में सफल रहे थे। वहां मिडिल ऑर्डर में गेंद की चमक फीकी करने का काम पुजारा, रहाणे और हनुमा ने ही किया था। इसका नतीजा यह रहा था कि आस्ट्रेलियाई गेंदबाज थककर अपनी लय खोते रहे और हम लड़ भिड़कर वह ऐतिहासिक सीरीज 0-1 से पिछड़ने के बाद भी 2-1 से जीत गए। हाल ही में बांग्लादेश और न्यूजीलैंड के खिलाफ हुई श्रृंखलाओं में भी जो कि आस्ट्रेलिया दौरे की तैयारी के रूप में ली जा सकती थी, पुजारा और रहाणे को मौका नहीं मिला। चयनकर्ताओं की आंखों में इन दो सीरीज में मध्यक्रम का हाल देखने के बावजूद पट्टी बंधी रही। इन्हें आस्ट्रेलिया के दौरे पर भी नहीं ले जाया गया। बीच दौरे पर जब कोच ने पुजारा की मांग भी की तो उसे नहीं सुना गया, जबकि पुजारा वहीं कमेंट्री कर रहे थे।
भविष्य की टीम चुनने में भूल गए आस्ट्रेलिया की चुनौती
इस बार चयनकर्ता तीनों के फॉर्म में होने के बावजूद भविष्य की टीम बनाने की धुन में इन्हें नहीं ले गए। यह भी भूल गए कि उन्हें आस्ट्रेलिया के बाउंसी और तेज विकेटों पर खेलना है। इन तीनों ने शरीर पर बाउंसरों की मार झेलते के बाद भी अपने विकेट नहीं फेंके थे। लेकिन इस बार इतना अनुभवी मिडिल ऑर्डर था ही नहीं, जबकि विराट फॉर्म में ही नहीं थे। ऐसे में जिसकी आशंका थी वही हुआ भी। इन तीनों की अनुपस्थिति में टीम का मिडिल ऑर्डर पूरी तरह से बोल गया। टीम इंडिया में स्पिन को खेलने वाले बल्लेबाज ही नहीं बचे। ऐसा कैसे हुआ और इसका दोषी कौन है? फिर इस हार में टीम बनाने की जिम्मेदारी जिन पर थी उन सेलेक्टर्स को आप कैसे बरी कर सकते हैं? आप जो टीम बनाकर देते हैं वही मैदान में उतरती है। फिर इस असफलता में इनका जिक्र क्यों नहीं हो रहा? वे कैसे इस सीरीज में मिली हार के दोषी नहीं माने जा रहे, जबकि टीम के खराब प्रदर्शन के असली गुनहगार तो चयनकर्ता ही नजर आ रहे हैं।
सलेक्टर्स को रोहित और विराट की खराब फॉर्म का पता था
माना कि रोहित शर्मा और विराट कोहली का प्रदर्शन बहुत खराब रहा लेकिन क्या दोनों आस्ट्रेलिया में ही जाकर फ्लॉप हुए? सेलेक्टर्स को यह बखूबी पता था कि इन दोनों के बल्ले से बांग्लादेश और न्यूजीलैंड सीरीज से ही रन नहीं आ रहे थे। ऐसे में आप क्यों नहीं कड़े फैसले ले पाए और कप्तान क्यों नहीं बदला? आपने चेतेश्वर पुजारा, आंजिक्य रहाणे और हनुमा बिहारी की तरफ क्यों नहीं रुख किया? इनकी अनदेखी कर विदेशी दौरेे पर हल्की टीम क्यों भेज दी? किसी भी विदेशी दौरे से पहले टीम को जहां-जहां मैच खेलने हैं उन विकेटों के बारे में चयनकर्ताओं, कोच और कप्तान के बीच वहां की परिस्थितियों, मौसम और विकेट के मिजाज को लेकर मंथन होता है। आपके ऐसा कुछ नहीं किया। आप लोकल क्यूरेटर के बयान पर अपनी प्लेइंग इलेवन उतारते रहे और मैच हारते रहे।
चयनकर्ता टीम चुनने से पहले होम वर्क में कैसे पिछड़ गए
विदेशी दौरे से पहले अपने सूत्रों से पता करवाया जाता है कि वहां आपके लिए कैसी विकेट तैयार करवाई जा रही है, क्योंकि लाख चाहने के बावजूद मेजबान टीम इन जानकारियों को गोपनीय नहीं रख पाती है। फिर आपने ऐसा क्यों नहंीं किया? आप सिडनी में क्यूरेटर के स्पिनरों को भी मदद करने वाली विकेट देने की बातों के झांसे में कैसे फंस जाते हैं और दो स्पिनर लेकर उतरते हैं, जबकि इस विकेट पर एक अतिरिक्त सीमर होना चाहिए था। वे अंतिम टेस्ट का महत्व समझ विकेट की गलत जानकारी देते हैं और आप उसमें फंसते रहे। अंतिम दिन यदि हर्षित राणा भी होते तो क्या टेस्ट और सीरीज का नतीजा बदल नहीं सकता था? वाशिंगटन सुंदर अंतिम टेस्ट में सिर्फ एक ओवर ही फेंकते हैं और दोनों पारियों में उनसे रन भी नहीं बन पाते। ऐसे में क्या एक विशेषज्ञ बल्लेबाज नहीं होना चाहिए था। जडेजा की जगह उसमें एक अतिरिक्त तेज गेंदबाज रखना चाहिए था लेकिन आपको तो नाम के सुपर स्टार खिलाड़ी ही चाहिए थे।
पुजारा, रहाणे और बिहारी की तिकड़ी ने 332 ओवर खेले थे
चलिए यह भी जान लीजिए कि पुजारा, रहाणे और हनुमा जैसे बल्लेबाजों को इस सीरीज में क्यों खेलना चाहिए था। 2021 में खेली गई वो कमाल की आस्ट्रेलिया सीरीज तो याद ही होगी, जिस पर बाद में सीरीज भी बनी। उसमें एडिलेड के पहले टेस्ट में भारत दूसरी पारी में सिर्फ 36 रनों पर आउट होने के बाद हार गया था। इस टेस्ट के बाद कप्तान विराट कोहली घर लौट गए थे। बाकी तीन मैचों के लिए आंजिक्य रहाणे ने कप्तानी की थी। उस सीरीज में आंजिक्य रहाणे, चेतेश्वर पुजारा और हनुमा बिहारी ने मिलकर 332 ओवर अकेले दम खेले थे। यानि इन तीनों ने मिलकर चार टेस्ट मैचों में मिचेल स्टार्क, जोश हेजलवुड, पैट कमिंस और कैमरन ग्रीन जैसे गेंदबाजों का डटकर सामना करते हुए 1992 गेंदें खेली थीं। इनमें चार-चार टेस्ट मैचों में पुजारा ने सबसे ज्यादा 928, रहाणे ने 752 और हनुमा बिहारी ने 312 गेंदें (तीन टेस्ट में) खेलीं, जबकि इस बार पूरी टीम के बल्लेबाज मिलकर पांच टेस्ट मैचों में 655 ओवर यानि कुल 3930 गेंदें ही खेल सके। मतलब पिछली बार रहाणे, पुजारा और हनुमा ने इन ओवरों के लगभग आधे अकेले ही खेल डाले थे। यही फर्क रहा इस और उस सीरीज के परिणाम का अंतर। आप इस बार इन तीनों के बिना खेले और नतीजा भुगत लिया।
पिछले दौरे के हीरो कमेंट्रेटर बॉक्स में टीम की फजीहत देख रहे थे
जिन्हें आस्ट्रेलिया के विकेट का अच्छा अनुभव था वे कमेंट्री बॉक्स में माइक लिए बैठे अपनी टीम की फजीहत देख रहे थे और जिनकी फॉर्म गायब थी वे मिचेल स्टार्क, पैट कमिंस और स्कॉट बोलैंड के सामने विकेट पर संघर्ष कर रहे होते हैं। हमारे चयनकर्ता कुछ नए बल्लेबाजों व गेंदबाजों के साथ टीम को आस्ट्रेलिया के लम्बे और कठिन दौरे पर भेज देते हैं। यह जानते हुए भी कि सीरीज कितनी महत्वपूर्ण है और उसमें अच्छा रिजल्ट ही टीम इंडिया को वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप का फाइनल खिलवाएगा। यह सही है कि टीम इंडिया ट्रांजेक्शन के पीरियड से गुजर रही है। रोहित, विराट, पुजारा की उम्र बढ़ रही है। ऐसे में आपको प्लानिंग के साथ अभिमन्यु ईश्वरन, देवदत्त पड्डिकल, साईं सुदर्शन जैसे बल्लेबाजों को एक-एक कर सीनियर्स की देखरेख में टीम में सेट करना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अब परिणाम आपके सामने है। हम प्वाइंट टेबल पर पहले नम्बर पर रहते हुए आस्ट्रेलिया पहुंचने के बावजूद विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप से बाहर हो चुके हैं।
अर्शदीप को क्यों नहीं ले गए, मोहम्मद शमी को क्यों नहीं बुलवाया?
गेंदबाजों को लेकर भी कुछ ऐसा ही रवैया दिखा। जसप्रीत बुमराह अपने घुटने और पीठ में तकलीफ की वजह से लगातार गेंदबाजी नहीं कर सकते हैं, यह जानते हुए भी आप अर्शदीप सिंह और मोहम्मद शमी को अपने आक्रमण की प्लानिंग का हिस्सा नहीं बनाते हैं, जबकि पर्थ टेस्ट के बाद ही शमी फिट हो चुके थे और अपनी स्टेट टीम से रणजी ट्रॉफी और फिर विजय हजारे ट्रॉफी खेलकर फॉर्म भी दिखा चुके थे। लेकिन इसके बावजूद उन्हें आस्ट्रेलिया नहीं भेजा गया। अर्शदीप सिंह तो लगातार अच्छी गेंदबाजी कर रहे थे। आप उन्हें भी टीम के साथ नहीं ले गए, क्योंकि आपको हर्षित राणा, प्रसिद्ध कृष्णा ही पसंद थे, जो अधिकांश समय टीम से बाहर ही बैठे रहे।
सीरीज में अश्विन पर सुंदर को क्यों तरजीह दी गई
विशेषज्ञ स्पिनर रवि चन्द्रन अश्विन को आप बैठाए रखते हैं जबकि ऑलराउंडर वाशिंगटन सुंदर को बल्लेबाजी मजबूत करने के नाम पर इलेवन में जगह देते रहते हैं। यह है न कमाल की बात कि जिन अश्विन के नाम छह शतक होते हैं वे तो बाहर हो जाते हैं, जबकि पूरी सीरीज में जिस खिलाड़ी को उन पर तवज्जो दी गई वह सिर्फ एक अर्द्धशतक ही लगा पाता है। बल्लेबाजी को नम्बर दस तक करने के लिए आप अपना गेंदबाजी पक्ष कमजोर कर लेते हैं। जब-जब मोहम्मद सिराज, नीतीश रेड्डी और रवीन्द्र जडेजा जैसे गेंदबाज विकेट नहीं निकाल पाते रहे थे, टीम बुमराह का मुंह देखने लगती थी। यह गेंदबाज छोटे-छोटे स्पेल में ही सही पर सारा बोझ अपने कंधों पर ढोता रहा और अंतिम टेस्ट की उस पारी में जब टीम को उसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी तब पीठ की ऐंठन की वजह से मैदान पर ही नहीं उतर सका।
चयनकर्ताओं ने खराब टीम चुनी और कोच ने प्लेइंग इलेवन
अब इसमें किसकी गलती है। पहली गलती चयनकर्ताओं की है जिन्होंने लम्बे दौरे और आस्ट्रेलियाई विकेटों के मुताबिक टीम का चयन नहीं किया। उसे पता होना चाहिए था कि इस टूर पर स्पिनर नहीं चलने वाले। अपने तेज आक्रमण को ही और पैना बनाकर ले जाना चाहिए था। दूसरी गलती टीम प्रबंधन की रही, जिसमें कोच गौतम गंभीर ने बार-बार टीम संयोजन बदलकर प्लेइंग इलेवन को प्रयोगशाला बना डाला था। जरा सोचिए जिस सीरीज में बार-बार कप्तान बदला हो, बार-बार प्लेइंग इलेवन बदली हो तो उस टीम में तालमेल कैसे बन पाता। ऐसी स्थितियों में टीम का जो हश्र होना था वही हुआ। इसके अलावा आपका जम्बो सपोर्टिंग स्टाफ क्या करता रहा? बल्लेबाजी और गेंदबाजी कोच की क्या भूमिका रही। कोहली को बल्लेबाजी कोच क्यों नहीं बता पाए कि बाहर की गेंदों के साथ कैसे संयम बरतना है। बुमराह पर वर्क लोड बढ़ते देख गेंदबाजी कोच ने क्यों आपत्ति जताई?
भविष्य की टीम तो ऐसे भी खड़ी की जा सकती है
चयनकर्ता और हेड कोच भविष्य की टीम खड़ा करना चाहते हैं। ठीक भी है यह एक सतत प्रक्रिया है, जो हर टीम के साथ कभी न कभी शुरू करनी ही पड़ती थी। सचिन तेंदुलकर, सौरभ गांगुली, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और वीरेंद्र सहवाग के समय भी ऐसा ही हुआ था। लेकिन एक साथ इन पांचों को बाहर न कर बारी-बारी इनके संन्यास हुए। इस दौरान विराट कोहली, रोहित शर्मा, पुजारा और रहाणे जैसे बल्लेबाज इन सीनियर्स के संन्यास के दौरान एक-एक कर टीम में सेट होते रहे। ऐसे में जब फैव फाइव रिटायर हुए तो टीम को नुकसान नहीं हुआ, क्योंकि तब तक नए खिलाड़ी सेट हो चुके थे और हनुमा बिहारी जैसे बल्लेबाजों को बाहर इंतजार करना पड़ रहा था। यही तरीका इस बार भी अपनाना चाहिए। भविष्य में आप अभिमन्यु ईश्वरन, साईं सुदर्शन और देवनाथ पड्डिकल को यह बताकर कि एक दो खराब पारियों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पूरी सीरीज में मौका दें। तीन चार सीरीज में आपकी नई और मजबूत टीम खड़ी हो जाएगी। इस दौरान सीरीज के रिजल्ट खराब भी आ सकते हैं, लेकिन जब एक बार नए खिलाड़ी पूरी तरह सेट हो जाएंगे तो वे आपको आगे कई सीरीज जितवाएंगे भी।