उत्तराखंड

अंग्रेजों ने पहली बार पहुंचायी थी ‘बिजली’, जानें ऊर्जा प्रदेश उत्तराखंड में ‘बिजली’ का रोचक इतिहास…

देहरादून (गौरव ममगाई): आज तकनीकी युग में मनुष्य की चांद तक पहुंच है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब मनुष्य के लिए बिजली का प्रयोग करना भी किसी सपने से कम नहीं था। आज भले ही उत्तराखंड को बिजली प्रदेश के नाम से जाना जाता हो, लेकिन याद करिए 1907 से पहले के वो दिन, जब यहां एक भी घर में बिजली नहीं हुआ करती थी। रात का अंधेरा लालटेन के सहारे काटी जाती थी।

आइये आपको बताते हैं ऊर्जा प्रदेश उत्तराखंड में पहली बार बिजली का उत्पादन कब और कैसे हुआ था ? अंग्रेजों ने बिजली उत्पादन के लिए कितना संघर्ष किया था ?


बात वर्ष 1905 की है, जब अंग्रेजों ने अपने पसंदीदा हिल स्टेशन मसूरी में बिजली पैदा करने का फैसला लिया था। इसके बाद अंग्रेजों ने पानी के जहाज से बड़ी टरबाइनों को मुंबई तट तक पहुंचाया और फिर मालगाड़ी की मदद से देहरादून रेलवे स्टेशन लाये। यहां से मसूरी की ओर चढ़ाई वाला रास्ता था, जिस कारण भारी टरबाइनों को मसूरी तक पहुंचाना आसान नहीं था। अंग्रेजों ने टरबाइनों को पहुंचाने में बैलगाड़ी की मदद ली। किसी तरह टरबाइनें मसूरी पहुंचा दी गई। इसके बाद भट्टा फॉल के पानी से टरबाइन को चलाया गया। करीब 1 साल की कड़ी मेहनत के बाद वर्ष 1907 तक बिजली उत्पादन शुरू हो सका। इस परियोजना को हम आज ग्लोगी परियोजना के नाम से जानते हैं।

मसूरी व देहरादून के कई क्षेत्रों में आई थी पहली बार बिजली::
ग्लोगी परियोजना से पैदा हुई बिजली को अंग्रेजों ने मसूरी के अलावा अनारवाला व आस-पास के कई इलाकों में पहुंचाया। यहां पहली बार बिजली आयी थी। जब पहली बार लोगों ने बिजली का प्रयोग किया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। उन्हें ऐसा लगा मानों वो चांद पर पहुंच गए हों। हालांकि, इस परियोजना का लाभ चुनिंदा इलाकों में ही मिल पाया। अधिकांश इलाकों में बिजली अगले कई सालों तक सपना ही बनी रही। बता दें कि इस परियोजना को उत्तर भारत की पहली व भारत की शीर्ष-तीन विद्युत परियोजना माना जाता है। इस लिहाज से देश में सबसे पहले बिजली से गुलजार होने वाले स्थानों में उत्तराखंड के मसूरी का भी नाम है।

टिहरी शासक कीर्ति शाह ने भी टिहरी में पहुंचायी थी बिजली::
मसूरी में बिजली उत्पादन शुरू होने के बाद टिहरी के शासक कीर्ति शाह ने भी वर्ष 1909 के आस-पास टिहरी में पहली बार बिजली पहुंचायी थी। इतिहासकारों के अनुसार, कीर्ति शाह बेहद आधुनिक सोच के थे, उनके अंग्रेजों के साथ मधुर संबंध भी थे। इसी कारण अंग्रेजों ने कीर्ति शाह को बिजली उत्पादन की तकनीक साझा की। इस तरह आज से 116 वर्ष पहले उत्तराखंड में बिजली पैदा करने का श्रेय अंग्रेजों को दिया जाता है, लेकिन स्वंतत्रता के बाद भारत ने भांगड़ा नागल, टिहरी बांध जैसी अनेक बहुद्देशीय परियोजनाओं का निर्माण किया। उत्तराखंड जल संसाधनों से संपन्न होने के कारण यहां बिजली उत्पादन तेजी से होता रहा, जिसका नतीजा यह रहा कि आज उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश के नाम से जाना जाता है। वहीं, जब-जब प्रदेश को यह उपलब्धि दी जाएगी, तो उत्तराखंडवासियों के जहन में 116 पहले पहली बार बिजली उत्पादन को किया संघर्ष भी याद आता है।

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