–गोपाल सिंह पोखरिया
क्या उत्तराखंड में वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में जिस प्रकार से मिथक टूटा, उसी तर्ज पर एक बार फिर उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव 2021 में भी मिथक टूटेगा, इसे लेकर इन दिनों हर चौक चौराहे में चर्चाएं सुनी जा सकती हैं। उत्तराखंड की धामी सरकार के पहले दो वर्ष के कार्यकाल पर नजर दौड़ाएं तो लगता है कि एक बार फिर उत्तराखंड में मिथक टूटेगा। राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में यह पांचवां लोकसभा चुनाव हो रहा है। उत्तराखंड का चुनावी इतिहास कई अनूठे रंगों और मिथकों को समेटे हुए है। इनमें एक मिथक 2019 के लोकसभा चुनाव में टूटा था। 2014 के लोस चुनाव तक यह धारणा बन गई थी कि राज्य में जिस दल की सरकार होगी, उसका संसदीय चुनाव में बेड़ा पार नहीं हो सकता। 2019 के लोस चुनाव में भाजपा ने इस मिथक को तोड़ा। अब 2024 के चुनाव में एक बार फिर सियासी हलकों में सवाल तैर रहा है कि यह मिथक फिर टूटेगा या बरकरार रहेगा। प्रदेश में पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार है और अबकी बार इस मिथक को तोड़ने का दारोमदार उन्हीं के कंधों पर है।
राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में यह पांचवां लोकसभा चुनाव हो रहा है। इससे पहले उत्तराखंड चार लोकसभा चुनाव का गवाह रह चुका है। पहला लोस चुनाव 2004 में हुआ था। उस समय प्रदेश की सत्ता पर कांग्रेस काबिज थी। एनडी तिवारी सरकार के समय हुए इस चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ नैनीताल सीट पर संतोष करना पड़ा था। वह चार सीटें हार गई थी। 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। उस वक्त मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी (सेनि.) मुख्यमंत्री थे। उनके समय में हुए लोस चुनाव में भाजपा पांचों सीटें हार गई थीं। फिर 2014 के लोकसभा चुनाव आए। उस दौरान प्रदेश में कांग्रेस राज था। भाजपा में नरेंद्र मोदी की लहर उठने लगी थी। इस चुनाव में कांग्रेस को पांचों सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा। तत्कालीन विपक्षी दल भाजपा ने लोस की पांचों सीटें जीत लीं। यानी एक बार फिर राज्य में जिसकी सरकार, लोस में उसकी हार का मिथक बरकरार रहा। जब 2019 के लोकसभा चुनाव आए तो भाजपा प्रदेश में प्रचंड बहुमत से सत्ता पर काबिज थी, लेकिन इस बार भाजपा ने लोकसभा की पांचों सीटें जीत कर मिथक को तोड़ दिया। राज्य के मतदाताओं पर पीएम मोदी का ऐसा जादू चला कि विधानसभा चुनाव में बारी-बारी से सरकार बदलने का मिथक 2022 विस चुनाव में टूट गया। भाजपा ने 2017 के बाद 2022 में अपनी सरकार बनाने का कारनामा कर दिखाया। अब 2024 के लोस चुनाव में भाजपा के सामने पूर्व में बने मिथक को दोबारा तोड़ने की चुनौती है। भाजपा 2024 के लोस चुनाव में नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने के संकल्प के साथ उतरी है।
हालांकि यहां पर कह सकते हैं कि प्रदेश की धामी सरकार ने पिछले दो साल में कई अभूतपूर्व कार्य किए हैं। इसमें सबसे पहले आता है समान नागरिक संहिता कानून जो लागू होने जा रहा है। बताते चलें कि यूसीसी से महिला सशक्त होगी, उनकी सुरक्षा होगी, बच्चों की सुरक्षा होगी, लिव-इन रिलेशनशिप का भी ध्यान रखा गया है। इसके बाद दूसरा नंबर आता है नकल रोकने के लिए सख्त नकल विरोधी कानून भी राज्य सरकार लेकर आयी है। इसके बाद सरकार देवभूमि के सौंदर्य बिगाड़ने वालों के खिलाफ भी सख्त कानून लाने की तैयारी कर रही है। सरकार का कहना है कि जो भी व्यक्ति सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। साथ ही सख्त सजा का प्रावधान भी किया जाएगा। अंत्योदय योजना के अंतर्गत तीन नि:शुल्क गैस सिलेंडर दिए जा रहे हैं। भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड के लिए 1064 जारी किया गया है। सतर्कता विभाग इसको और मजबूत करने का काम कर रहा है। 2012 के मुकाबले इस बार का बजट बड़ा है। ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में 2.50 लाख करोड़ का लक्ष्य रखा था, लेकिन 3.54 लाख करोड़ रुपये के एमओयू करार हुए। अब तक 81 हजार करोड़ की ग्राउंडिंग की जा चुकी है, जो आने वाले समय में मील का पत्थर साबित होगा। सरकारी उत्तराखंड के उत्पादों को ग्लोबल लेबल तक पहुंचाने के लिए हाउस आफ हिमालय की स्थापना करने की तैयारी भी कर रही है। सरकार ने 2026 तक गंगा कॉरिडोर बनाने का लक्ष्य रखा है। जमरानी बांध परियोजना को स्वीकृति मिल चुकी है। देहरादून में जलापूर्ति के लिए आने वाले 50 वर्षों तक सौंग डैम परियोजना को स्वीकृति मिल चुकी है।
बेहतर हवाई सेवा को लेकर सरकार तेजी से काम कर रही है। पंतनगर का एयरपोर्ट अंतरराष्ट्रीय बनाने के लिए राज्य सरकार काम कर रही है। देहरादून से दिल्ली तक एलिवेटेड रोड बनाने का काम तेजी के साथ चल रहा है। इससे अब मात्र दो से ढाई घंटे में दिल्ली पहुंच सकेंगे। चारधाम यात्रा पर बेहतर कनेक्टिविटी हुई। 2022 की तुलना में 2023 में 10 लाख का आंकड़ा बड़ा है। सरकार ने दो साल में करीब 8 आठ हजार से अधिक युवाओं को सरकारी सेवा में नियुक्ति दी है। आयुष्मान योजना में 10 लाख लोगों को अब तक लाभ मिल चुका है। किच्छा में राज्य का दूसरा एम्स का सेटेलाइट बनने जा रहा है। राज्य में एक लाख 25 हजार लखपति दीदी बनाने का भी लक्ष्य रखा है। डबल इंजन की सरकार में 60 लाख लोग प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना से अन्न ले पा रहे हैं। नौ लाख किसानों को किसान सम्मान निधि का लाभ मिल रहा है। इन कार्यों के बल पर कहा जा सकता है कि धामी सरकार के सामने वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर उत्तराखंड का मिथक तोड़ने के लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं है। हालांकि यहां पर एक और बात का भी उल्लेख करना जरूरी है कि भाजपा का प्रदेश में लगातार वोटिंग प्रतिशत भी बढ़ा हुआ है। पिछले पांच लोस चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करने के बाद यह तथ्य सामने आता है कि 2009 के लोस चुनाव में 28.29 फीसदी वोटों तक सिमटी भाजपा के वोट बैंक में 33.37 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 40.98 प्रतिशत वोट लिए थे। 2014 के लोस चुनाव में उसका वोट बैंक बढ़कर 55.93 प्रतिशत हो गया। 2019 के लोस चुनाव में यह 61.66 प्रतिशत तक पहुंच गया। 2024 के लोस चुनाव में पार्टी ने 75 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करने का लक्ष्य बनाया है। वर्ष 2014 के बाद से प्रदेश में भाजपा के मजबूत होते जाने का अंदाजा इससे लग सकता है कि पार्टी किसी भी बड़े चुनाव में पराजित नहीं हुई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में उसके पांचों प्रत्याशियों ने प्रतिद्वंद्वियों पर 2.33 से लेकर 3.39 लाख मतों के अंतर से बड़ी जीत दर्ज की थी। हालत यह है कि जिन पर्वतीय और ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस की पैठ मजबूत मानी जाती रही, वहां भी प्रमुख विपक्षी दल जीत के लिए तरस रही। प्रदेश में पिछले दो लोकसभा चुनाव के दौरान दो विधानसभा चुनाव भी हो चुके हैं। इन दोनों में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रदेश में कुल 62.15 प्रतिशत मतदान हुआ। इसमें भाजपा को 55 प्रतिशत से अधिक तो कांग्रेस को 34 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। टिहरी, पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल-ऊधमसिंहनगर और हरिद्वार समेत सभी पांचों सीटों पर कांग्रेस प्रमुख प्रतिद्वंद्वी तो रही, लेकिन भाजपा को हरा नहीं सकी। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में कुल 61.50 प्रतिशत मतदान हुआ था। 2014 की तुलना में मतदान में 0.65 प्रतिशत की कमी आई, पर भाजपा प्रत्याशियों के जीत का आंकड़ा और बढ़ गया। अब वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। प्रदेश में मुख्य मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच ही तय है। विपक्षी दलों में कांग्रेस से इतर कुछ प्रभाव बसपा का है।
बसपा फिलहाल भाजपा और कांग्रेस के लिए भी बड़ी चुनौती पेश करने की स्थिति में नहीं दिख रही है। 2014 में बसपा को 4.7 प्रतिशत मत मिले थे। वर्तमान में भी पार्टी के पास हरिद्वार में विधानसभा की दो सीटें थीं। इनमें से एक विधायक सरवत करीम अंसारी के निधन के कारण रिक्त है। 2004 में हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से जीत दर्ज करने वाली सपा अब लंबे समय से लोकसभा चुनावों में किसी बड़ी चुनौती के रूप में स्वयं को स्थापित नहीं कर सकी है। अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर ब्रांड नरेन्द्र मोदी के रथ पर सवार है। ऐसे में वर्तमान राजनीतिक वातावरण में प्रदेश में भी भाजपा कठिनाई महसूस करती दिखाई नहीं दे रही है। कांग्रेस का प्रयास है कि इस बार पार्टी का खाता जरूर खुले। इसके लिए लोकसभा क्षेत्रवार तैयारियां तेज की गई हैं। पार्टी हाईकमान भी इन तैयारियों पर सीधी नजर रख रहा है। पिछले पांच लोकसभा चुनावों के नतीजों का अध्ययन करने से यह तथ्य सामने आता है कि राज्य में बसपा, सपा समेत अन्य राजनीतिक दलों का वोट बैंक धीरे-धीरे कम होता गया और भाजपा के वोट बैंक में इजाफा होता चला गया। कांग्रेस के वोट बैंक में बहुत अधिक अंतर नहीं दिखा। पांचों लोकसभा चुनाव में उसके वोट 30 फीसदी से ऊपर रहे हैं। 2009 में भाजपा 28.29 फीसदी वोटों पर सिमट गई थी। तब अन्य दलों का वोट 45 फीसदी से अधिक था। लेकिन 2014 और 2019 के लोस चुनाव में अन्य दलों के वोट बैंक में भारी गिरावट आई। भाजपा ने बसपा व अन्य दलों के वोट बैंक में सेंध लगाकर अपना वोट बैंक बढ़ाया।