उत्तर प्रदेशराज्यवाराणसी

काशी में सजी भक्तिरस की चौपाल, देवी आगमन से महक उठा शहर

मां के दरबार में भक्ति, उल्लास और अद्भुत आस्था का रंग

देवी आगमन से काशी विभोर, 10 दिनों की अनंत आराधना प्रारंभ, शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन घट स्थापना से लेकर डांडिया की थिरकन तक, अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापना, ढोल-नगाड़ों से अगवानी, घाटों पर स्नान ध्यान करने के लिए भक्तों का रेला लगा

सुरेश गांधी

वाराणसी : “सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।” सांवरे आकाश पर उषा की पहली किरणों के संग काशी की गलियों में गूंजते इस मंगलमंत्र ने सोमवार भोर से ही शारदीय नवरात्र का दिव्य शुभारंभ कर दिया। अलसुबह गंगा के तटों से लेकर देहाती आंगनों तक हर घर, हर मंदिर और हर मन ने मां दुर्गा का स्वागत किया।

पहले दिन का प्रभात ही अपने साथ श्रद्धा का अद्भुत उन्मेष लेकर आया। घर-घर में घट स्थापना का पुण्यकाल जैसे ही प्रारंभ हुआ, आंगन वंदनवार और आम्रपल्लव से सजे। रंगोली की मोहक लकीरों में विश्वास के रंग भरे गए। मंदिरों के पट खुलते ही ढोल-नगाड़ों की गूंज ने नगर की रात्रि-निशा को भी आलोकित कर दिया। काशी का यह नवरात्र केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, उत्सव और सामाजिक एकता की वह महागाथा है, जहां हर गली, हर आंगन, हर हृदय माता के जयघोष से आलोकित है। दस दिनों तक यह नगर देवी शक्ति के अपार वैभव का साक्षी बनेगा, और हर भक्त के हृदय में समृद्धि, शांति और मंगल की अमिट छाप छोड़ जाएगा।

काशी में दुर्गा पूजा की शुरुआत करने का श्रेय भी बंगाली परिवार को ही जाता है। मित्रा परिवार ने ही शारदीय नवरात्र में बनारस को शक्ति की आराधना का मंत्र दिया था। सार्वजनिक दुर्गोत्सव समिति, टाउनहाल में इस साल 56वां दुर्गोत्सव का शुभारंभ किया गया। इसके साथ ही शारदा विद्या मंदिर गायघाट, श्री श्री दुर्गा समिति नवापुरा, एसबी दुर्गोत्सव समिति सुड़िया, श्री दारानगर दुर्गा पूजा समिति और बड़ा गणेश पर माता की प्रतिमाएं विराजमान की गयी. काशी में बंगाली ड्योढ़ी से शारदीय नवरात्र में दुर्गा पूजा की शुरुआत 251 साल पहले हुई थी। पूरे जिले में 512 से अधिक प्रतिमाएं विराजमान कराई जाती है। नवरात्र की प्रतिपदा के अलावा षष्ठी तिथि पर शहर के सभी पूजा पंडालों में माता की प्रतिमाएं विराजमान हो जाएंगी। बंगीय पूजा पंडालों में षष्ठी तिथि पर मूर्तियों के पहुंचने के साथ ही घट स्थापन, बोधन, आमंत्रण व अधिवास के अनुष्ठान कराए जाएंगे।

मां शैलपुत्री की पूजा, मंदिरों में उमड़ा जनसैलाब
शारदीय नवरात्र का प्रथम दिन मां के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की साधना को समर्पित रहा। दुर्गाकुंड, विशालाक्षी, मच्छोदरी, अन्नपूर्णा सहित काशी के सभी प्रमुख मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता दिनभर बना रहा। कहीं मां रौद्र रूप में महिषासुर मर्दिनी के रूप में विराजीं, तो कहीं शेर पर सवार होकर भक्तों को आशीष दे रही हैं। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बैरिकेडिंग और सुरक्षा के विशेष इंतज़ाम किए गए।

काशी विश्वनाथ धाम में कलश स्थापना
श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में कलश स्थापना। प्रातः पांच शास्त्रियों ने वेद-मंत्रों के बीच मां दुर्गा का आह्वान किया। नौ दिनों तक अनवरत दुर्गा सप्तशती का पाठ होगा। प्रतिदिन माता विशालाक्षी को चुनरी, सोलह शृंगार और बाबा विश्वनाथ की ओर से प्रसाद अर्पित किया जाएगा। इसी क्रम में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के श्री विश्वनाथ मंदिर में भी कलश स्थापना के साथ दुर्गा सप्तशती पाठ का आरंभ हुआ।

भक्ति और उल्लास का घर-घर संगम
सांझ ढलते ही काशी की गलियों और घाटों पर दीपों की लौ और भक्ति का उजास फैल गया। हर घर में मां का दरबार सजाया गया, महिलाओं ने अपने हाथों से भोग के लिए विविध पकवान तैयार किए। फलाहारी व्यंजनों की खरीदारी के लिए बाजारों में भीड़ उमड़ पड़ी। डांडिया और गरबा की थिरकन ने पर्व को उल्लास का नया आयाम दिया।

ज्योतिषीय महत्व और पांच गुना फल का वचन
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार का नवरात्र अद्भुत संयोगों से युक्त है, मां दुर्गा की आराधना करने वालों को पांच गुना फल प्राप्त होगा। उनका कहना है कि इस बार माता का आगमन हाथी पर हुआ, जिसका फल अधिक वर्षा और माता का गमन मानव के कंधे पर हो रहा। इसका फल अत्यंत लाभकारी व सुखदायक होता है। इस बार माता का आगमन और गमन दोनों अति शुभकारी है। इसके साथ ही आश्विन शुक्ल पक्ष में चतुर्थी तिथि की वृद्धि से यह पक्ष 16 दिनों का है जिससे यह पक्ष भी सुख-समृद्धि और शांति प्रदायक होगा।

विंध्य कारीडोर में 4 लाख श्रद्धालु, गुलाबी पत्थरों से सजा परकोटा
मां विंध्यवासिनी के दरबार का नजारा तो और भी अद्भुत रहा। चारों ओर गुलाबी पत्थरों से सजा परकोटा, राजस्थानी कारीगरों की नक्काशी और नई यज्ञशाला, साधना केंद्र तथा कंट्रोल रूम का भव्य दृश्य भक्तों को मंत्रमुग्ध कर रहा था। आंकड़ों के अनुसार दोपहर तक दो लाख और सायंकाल तक चार लाख श्रद्धालु माता के दर्शन कर चुके थे। चारों द्वारों से कतारबद्ध श्रद्धालु ‘जय माता दी’ का घोष करते हुए आगे बढ़ रहे थे। धाम में सोमवार की सुबह से भक्तों का तांता लगा है। मां की एक झलक पाने को श्रद्धालु बेताब दिखे। भोर में मंगला आरती होने के बाद ही माता के दर्शन- पूजन का सिलसिला शुरू हुआ, देर रात चलता रहा। ख्रास यह है कि भव्य श्रृंगार और मां के अलौकिक स्वरूप का दर्शन कर भक्त निहाल हो रहे है। देश के कोने- कोने से आए भक्तों का देवी दरबार में मत्था टेकना शिलशिला अब नवरात्र के अंतिम दिन ही समाप्त होगा. गंगा स्नान कर घंटों कतार में खड़े होने के बाद श्रद्धालु धाम में पहुंच रहे है।

माता के दरबार में युवा बच्चे व बुजुर्ग व महिलाएं माता की भक्ति में तल्लीन नजर आ रहे है। मंदिर पहुंचे श्रद्धालु माता की एक झलक पाने को बेताब दिखे। घंटा, घड़ियाल, शंख के साथ बजते नगाड़े की धुन के बीच पहाड़ावाली के जयघोष से संपूर्ण मंदिर परिसर गुंजायमान हो रहा था। लेकिन मन में मां की प्रति उनकी आस्था चरम पर रही। धाम की छत पर जगह- जगह आसन पर बैठे साधकों का पूजन अनुष्ठान अनवरत चलता रहा वही अष्टभुजा पहाड़ पर भी दूरदराज से आए संत महात्मा और साधक विविध मंत्रों बीच आदिशक्ति के पूजन अनुष्ठान में तन्मयता से तल्लीन नजर आए। त्रिकोण परिक्रमा पथ पर विराजमान महाकाली और मां अष्टभुजी के दरबार में भी सुबह से दर्शन पूजन का सिलसिला अनवरत चल रहा है।

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