देहरादून (विवेक ओझा): मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सामाजिक न्याय को मूल मंत्र के रूप में लेकर चल रहे हैं और उत्तराखंड की जनजातियों को मजबूत करना उनका मक़सद है। हाल ही में मुख्यमंत्री धामी ने कहा है कि थारू जनजाति समाज को हमेशा से ही विपक्षी पार्टियों ने गुमराह किया है। थारू समाज को उनकी जमीन से बेदखली का भय दिखाकर उनका राजनीतिक इस्तेमाल किया गया। सिर्फ भाजपा है जो शुरू से ही थारू समाज की हितैषी रही है। मुख्यमंत्री धामी ने खटीमा को मिनी इंडिया के रूप में व्यक्त करते हुए उत्तराखंड की जनजातियों के विकास के लिए अपने पास मजबूत ब्लू प्रिंट होने की बात कही। मुख्यमंत्री धामी खुद जनजातीय समुदाय के लोगों से प्रत्यक्ष संपर्क रखते हैं। सीएम धामी कह चुके हैं कि वह खटीमा के दूरस्थ गावों रघुलिया, वन महोलिया, भिलैय्या, नौसर, बंडिया आदि के सभी लोगों से परिचित हैं।
मुख्यमंत्री धामी जनजातियों के लिए कुछ वैसी ही सोच और कार्यवाही का माद्दा रखते हैं जैसे पीएम मोदी । एक तरफ पीएम मोदी ने नॉर्थ ईस्ट की जनजातियों के लिए पीएम डिवाइन योजना, वन धन योजना चलाके उनके लिए आजीविका सुरक्षा की है वहीं मुख्यमंत्री धामी का राज्य जनजातीय शोध संस्थान की ओर से आयोजित जनजातीय महोत्सव में भाग लेना , उत्तराखंड में तीन एकलव्य मॉडल स्कूल, 3 इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट , 4 जनजातीय हॉस्टल और 16 आश्रम पद्धति विद्यालयों के संचालन को दिशा देना उनके जनजातीय कल्याण की सोच को दर्शाता है। जनजातियों के बच्चों को क्वॉलिटी एजुकेशन देने में इंफ्रास्ट्रक्चर आड़े न आए इसके लिए मुख्यमंत्री धामी ने कई प्रयास किए हैं। धामी सरकार द्वारा जनजातीय क्षेत्रों के विकास हेतु अधिनियम बनाकर समस्त विभागों को अपने वार्षिक बजट का 3 प्रतिशत जनजातीय क्षेत्रों में व्यय करने का प्रावधान भी किया गया है। मुख्यमंत्री धामी का उत्तराखंड की जनजातियों को ये भरोसा दिलाना की यूनिफॉर्म सिविल कोड का उनकी संस्कृति, प्रथा, परंपरा, धर्म विधान पर कोई गलत प्रभाव नहीं पड़ने दिया जायेगा, यह इस बात का सूचक है कि धामी एक विधि निर्माता के रूप में कानून के मूल उद्देश्यों को जानते हैं। मुख्यमंत्री धामी किसी कानून को थोपने में भरोसा नही करते, वो कानून में ऐसे प्रावधान रखवाते है जिससे सभी उस कानून को सहमति देने को बाध्य हो जाए। इसके लिए धामी स्वयं अलग अलग समितियों के लिए ऐसे चेयरमैन को जिम्मेदारी देते हैं जो सबसे तार्किक निष्कर्ष दे सकते हैं। यूसीसी इस बात का जीता जागता उदाहरण है। जनजातियों का गौरव, सम्मान और उनके उत्थान के लिए मुख्यमंत्री धामी का विशेष प्रयास निश्चित रूप से काबिले तारीफ है।
मुख्यमंत्री धामी द्वारा पिथौरागढ़ और चमोली में दो नए एकलव्य आवासीय विद्यालय खोलने, विभागीय विद्यालयों में पढ़ रहे जनजातीय समुदाय के 5 हजार छात्र छात्राओं को टैबलेट उपलब्ध कराने और राज्य में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जीवन परिचय पर आधारित संग्रहालय की स्थापना का अनुरोध भी केंद्र सरकार से किया जा चुका है। जनजातीय समुदाय में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए भी धामी सरकार प्रतिबद्ध है। उत्तराखंड में पांच तरह की जनजाति निवास करती हैं। इनमें थारु जनजाति उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में रहती है। उत्तराखंड के उधम सिंह नगर और नैनीताल के क्षेत्र में रहने वाली थारू जनजाति की अनूठी संस्कृति है। वहीं ये लोग बेहद मेहनतकश होते हैं। इस जनजाति के लोगों की मेहनत और हुनर की चमक विदेशों में भी पहुंच रही है। उत्तराखंड के खटीमा, सितारगंज जैसे इलाकों में रहने वाले थारू जनजाति के लोग मूंज घास से हैंडलूम तैयार करते हैं। इन्हें विदेशों में एक्सपोर्ट कराने का प्रयास किया जा रहा है। जनजातीय उत्पादों ऑर्डर पर बनवाकर ऑनलाइन मंच देने का भी प्रयास आज उत्तराखंड में किया जा रहा है।आज धामी जी की ही प्रेरणा से उत्तराखंड में वालंटियर गांव में जाकर जनजातीय लोगों को ट्रेनिंग देकर उनमें स्किल पैदा करते हैं।
गौरतलब है कि थारू जनजाति उत्तराखंड व कुमाऊं का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है। इसके बाद जौनसारी राज्य की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है। वहीं, भोटिया जनजाति प्रदेश की सबसे प्राचीन मानी जाती है। थारू, बोक्सा, जौनसारी, भोटिया और राजी जनजातियों को 1967 के अनुसूचित जाति के अंतर्गत रखा गया है। इन जनजातियों के अपने अलग रीति रिवाज हैं।