गुप्तकाशी : उत्तराखंड स्थित द्वितीय केदार मद्महेश्वर के कपाट खुलने की तिथि तय हो चुकी है। बैसाखी पर्व पर श्री ओंकारेश्वर मंदिर में रावल जगद्गुरु की उपस्थिति में वेदपाठी आचार्य और हक -हकूकधारी ग्रामीणों द्वारा द्वितीय केदार श्री मद्महेश्वर के कपाट खुलने की तिथि 19 मई घोषित की गई। घोषित तिथि और लग्न का लिखित रूप, जिसे दिनपट्टा कहा जाता है। इसे थौर भण्डारी श्री मद्महेश्वर धाम को सुपुर्द किया जाता है।ओंकारेश्वर मुख्य मंदिर में भगवान मद्महेश्वर की भोग मूर्तियों के सिंहासन को नियुक्त पुजारी, मद्महेश्वर के साथ दो अन्य प्रधान अर्चकों द्वारा नंदी की सवारी और परिक्रमा करायी गई। तत्पश्चात भगवान को यथास्थान पर सजाकर वेदपाठी आचार्यों द्वारा भगवान की राशियों के दान की पूजा करायी गई। इसके बाद विजय भाणे, घण्टी, शंखध्वनि और मंगल विजय ध्वनि के साथ प्रधान अर्चकों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ सिंहासन को सभामण्डप में लाया गया। पहले भगवान काे स्नान कराया जाता है। धूप आरती, एकमुखी, त्रिमुखी और पञ्चमुखी आरती की जाती है। इसके बाद भगवान के रुद्राभिषेक पश्चात भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है।
भगवान का श्रृंगार करते हुए प्रधान अर्चक महाराज शंकर लिंग कहते हैं कि मद्महेश्वर भगवान को श्रृंगार प्रिय हैं। इसके पश्चात भगवान को बालभोग लगाया जाता है। भगवान की मूर्तियां का वैदिक मंत्रों के साथ उस वर्ष मद्महेश्वर में पूजा करने के लिए नियुक्त पुजारी द्वारा विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। सायंकाल में बूढ़ा मद्महेश्वर पुष्परथ, जिसके ऊपर से चांदी के पंच कलश लगे होते हैं, को नाना प्रकार के पुष्पों से सजाया जाता है। इसे जौ की हरियाली से सजाने की पूर्व परम्परा है।अब पुष्परथ में भगवान के सिंहासन को रखा जाता है, जिसके पश्चात श्री ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ की परिक्रमा की जाती है। इनके साथ ही अनेक निशान सम्मिलित रहते हैं। परिक्रमा पश्चात् पुन: भगवान की मूर्तियों को श्री ओंकारेश्वर गर्भ गृह में यथा स्थान रखा जाता है।